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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, April 9, 2012

Garhwali Poems by Dr Narendra Gauniyal

***********खिंखराण*************

जात-पात कि ज्यूड़ी
ऊँच-नीच कि खुटळी
कुटेब कि भरमार
दारू कि बाढ
जुआ कु घोल
दुन्य भर कि
गन्दगी कु झोळ
नक़ल कि छौंक
भ्रष्टाचार कु भोग
बेशर्मी कि डकार 
चरि तरफ
खिंखराण
हे प्रभु
इनमा क्य जी कन
कख जि जाण.....
***उपकार***

हमन घुप्प अंध्यर मा
जगदु मुछयलन
बाटु दिखै जैतै
उज्यलु हूँण पर
वी
चुटैगे मुछ्यला
हमारा बरमंड मा ....
 
***यकुलांस ***
मि द्यखणू छौं
कन जाणा छन लोग
एक हैंका पैथर
सरासर इथैं-उथैं
पण मि त
अजक्युं रै गयुं
ये भिभड़चल मा
यखुल्या-यखुलि ....
****जड़ कटै****
जैंई डाळी तै मि
खाद-पाणि देकी
फुलदा-फलदा
द्यखण चांदु
वाई डाळी
म्यार जलड़ा काटी कै
उपाड़ी दींद .....

***सीख ***
बरामदा मा
अध्फटीं चटै मा
दगड़ी बैठ्याँ
कुछ नौनि-नौना
जोर-जोर से
चिल्लाणा छया-
''क '' से कबूतर
''ख '' से खरगोश
''ग'' से गधा
अर गुरूजी
छवाड़ पर बैठि कै
बीड़ी सुलगाणा छाया .....

     डॉ नरेन्द्र गौनियाल

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