*******माँ******
यह मैंने किया
यह मेरा है
यह मेरी बदौलत है
हम सब
ऐसा ही कहते हैं
बहुत थोडा सा
करते हैं
ढिंढोरा
बहुत बड़ा
पीटते हैं.
कुछ करते हैं
उसका श्रेय मिलने की
चाहत रखते हैं
जबतक
श्रेय न मिले
लोग धन्यबाद न कहें
तबतक
बेचैन रहते हैं
असली करने वाला
चुपके से कर जाता है
बिना बताये
खिसक जाता है
वह कुछ करके
आनंद ले चुकता है
श्रेय की उसे
कोई चाहत नहीं होती
कोई जरूरत नहीं होती
माँ भी कभी
नहीं कहती
उसने अपने बच्चों को
दूध पिलाया है
अपने बच्चे को
दूध पिलाने से
उसे सुख
मिल जाता है स्वयं
श्रेय की कोई
चाहत नहीं होती
यह सौदा नहीं
स्वार्थ नहीं
उसका कर्तव्य है
वात्सल्य है
जो श्रेय चाहेगी
वह
माँ नहीं हो सकती .
डॉ नरेन्द्र गौनियाल
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