प्रतीकात्मक कथा
A Symbolic Short Story
बिचारो ल्वार , कारो त क्या कारो ?
भीष्म कुकरेती
आज भाना ल्वार परेशान, ब्याकुल उद्विग्न, छौ. दुखी छौ, संताप मा जाणु छौ. अणसाळौ
काज मा आज ध्यान इ नि लगै सकणु छौ. घंगतोळ मा छौ, चिंतित मा छौ, चित्त जगा मा नि छौ .
भाना ल्वारो समज मा इ नि आणु बल काम त वैन ठीकी कौर छौ पण हर दफैं वैको उदेश्य असफल इ किलै होंद गे ?.
भाना ल्वारन कूटी गड़ी जां से कूटी खेती पातिक काम कौर साक. पैल पैल त कूटी अपण काम करण मा लगीं राई,
अपण धरम मा राई . पण जनी वीं कूटी तैं घमंड ह्व़े कि वींक अलावा यीं धरती मा क्वी नी च त फिर वींको कुकर्मों बारा मा क्या बुलण! अरे
अपण काम छोड़िक दूसरों मूळा उखाडि द्याओ, दूसरों प्याज उखाड़ी द्याओ, दूसरों बच्चों तैं जिंदि खड़्यार द्याओ.
दिखदा दिखदी कूटी अल्ता भल्ता काम करण लगी गे.
भाना ल्वारौ तैं अपणि बणईं कृति कूटी पर से विश्वास उठी गे. वैन घडे घुडेक, सोची समजिक गैंती, फाळू , सब्बळ बिल्चा
गौड़ी दिने. कुछ दिन त गैंती, फाळू, सब्बळ अर बिल्चौंन कूटी तै काबू मा कार पण फिर गैंती, फाळू अर बिल्चौं पर घमंड नामौ
बीमारी लग, पापक भयानक बीमारी लग अर गैंती, फाळू , बिल्चा गैर जुमेवारी से लगी गेन नद्युं छालूं तै खुदण पर, बेमानी,
बेन्यायी क पीठ मा चौढि क गैंती, फाळू ,सब्बळ अर बिल्चा कम्यड़, चूना की खांड्यू तै खत्याण बिसे गेन .
भाना ल्वारन फिर अकल लगाई, रचना देवी की पूजा कार अर दाथी, दथुड़ो गढी देन. दाथी, दथुड़ो कुछ दिन त
धरम करम मा रैका भला काम करदा गेन पण फिर बेधर्मी से ले जंगळ का जंगळ धळकाण बिसे गेन.
भाना ल्वार अपण जंगळू बरखबान हून्द् देखिक रुणफति ह्व़े गे अर जगता सगती मा भाना ल्वारन
चक्कु-छुरा गढी दे. चक्कू छुरौ न पैल त अपणो धरम निभाई पण पैथर दाथी, दथुडों दगड सकड़ पकड़ कौरिक कतल
जन जघन्य काम करण लगी गेन .
भाना ल्वारन हिकमत नि हारी अर खुन्करी, तलवार कि रचना कार . पण यि खुन्करी, तलवार बि अपण काम छोड़िक
दुराचारी, अनाचारी , आततायी काम मा दाथी, दथुडों चक्कु-छुरोँ से अग्वाड़ी ह्व़े गेन.
भाना ल्वार अपणो रचनाऊँ से इ तंग ऐ गे अर भाना ल्वारो समज मा इ नि आणु बल काम त वैन ठीकी कौर छौ पण
हर दफैं वैको उदेश्य असफल इ किलै होंद गे ?. भाना ल्वार अब हौरी नई रचनाओं कल्पना मा लग्युं च जु यूँ स्ब्युं तै अडै सौकन , काबू
मा लै साकन.
Copyright@ Bhishma Kukreti
A Symbolic Short Story
बिचारो ल्वार , कारो त क्या कारो ?
भीष्म कुकरेती
आज भाना ल्वार परेशान, ब्याकुल उद्विग्न, छौ. दुखी छौ, संताप मा जाणु छौ. अणसाळौ
काज मा आज ध्यान इ नि लगै सकणु छौ. घंगतोळ मा छौ, चिंतित मा छौ, चित्त जगा मा नि छौ .
भाना ल्वारो समज मा इ नि आणु बल काम त वैन ठीकी कौर छौ पण हर दफैं वैको उदेश्य असफल इ किलै होंद गे ?.
भाना ल्वारन कूटी गड़ी जां से कूटी खेती पातिक काम कौर साक. पैल पैल त कूटी अपण काम करण मा लगीं राई,
अपण धरम मा राई . पण जनी वीं कूटी तैं घमंड ह्व़े कि वींक अलावा यीं धरती मा क्वी नी च त फिर वींको कुकर्मों बारा मा क्या बुलण! अरे
अपण काम छोड़िक दूसरों मूळा उखाडि द्याओ, दूसरों प्याज उखाड़ी द्याओ, दूसरों बच्चों तैं जिंदि खड़्यार द्याओ.
दिखदा दिखदी कूटी अल्ता भल्ता काम करण लगी गे.
भाना ल्वारौ तैं अपणि बणईं कृति कूटी पर से विश्वास उठी गे. वैन घडे घुडेक, सोची समजिक गैंती, फाळू , सब्बळ बिल्चा
गौड़ी दिने. कुछ दिन त गैंती, फाळू, सब्बळ अर बिल्चौंन कूटी तै काबू मा कार पण फिर गैंती, फाळू अर बिल्चौं पर घमंड नामौ
बीमारी लग, पापक भयानक बीमारी लग अर गैंती, फाळू , बिल्चा गैर जुमेवारी से लगी गेन नद्युं छालूं तै खुदण पर, बेमानी,
बेन्यायी क पीठ मा चौढि क गैंती, फाळू ,सब्बळ अर बिल्चा कम्यड़, चूना की खांड्यू तै खत्याण बिसे गेन .
भाना ल्वारन फिर अकल लगाई, रचना देवी की पूजा कार अर दाथी, दथुड़ो गढी देन. दाथी, दथुड़ो कुछ दिन त
धरम करम मा रैका भला काम करदा गेन पण फिर बेधर्मी से ले जंगळ का जंगळ धळकाण बिसे गेन.
भाना ल्वार अपण जंगळू बरखबान हून्द् देखिक रुणफति ह्व़े गे अर जगता सगती मा भाना ल्वारन
चक्कु-छुरा गढी दे. चक्कू छुरौ न पैल त अपणो धरम निभाई पण पैथर दाथी, दथुडों दगड सकड़ पकड़ कौरिक कतल
जन जघन्य काम करण लगी गेन .
भाना ल्वारन हिकमत नि हारी अर खुन्करी, तलवार कि रचना कार . पण यि खुन्करी, तलवार बि अपण काम छोड़िक
दुराचारी, अनाचारी , आततायी काम मा दाथी, दथुडों चक्कु-छुरोँ से अग्वाड़ी ह्व़े गेन.
भाना ल्वार अपणो रचनाऊँ से इ तंग ऐ गे अर भाना ल्वारो समज मा इ नि आणु बल काम त वैन ठीकी कौर छौ पण
हर दफैं वैको उदेश्य असफल इ किलै होंद गे ?. भाना ल्वार अब हौरी नई रचनाओं कल्पना मा लग्युं च जु यूँ स्ब्युं तै अडै सौकन , काबू
मा लै साकन.
Copyright@ Bhishma Kukreti
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आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments