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Tuesday, April 17, 2012

यूनानी कथा :गाँव मूसु अर कस्बौ मूस

गाँव मूसु अर कस्बौ मूस
                        यूनानी कथा को कथाकार: ईसॉप
                       अनुवाद : भीष्म कुकरेती
(ईसॉप (६२०-५६४ इसवी पूर्व) -यूनान को महान लोक कथाकार ह्व़े, ईसॉप एक गुलाम थौ.
पंचतंत्र कि कथाओं से प्रभावित ईसॉप कि कथाओं मा जानवरूं विषय छन. जेम्स न सन
१८४८ ई. मा गाँव मूसु अर कस्बौ मूस कथा क अनुवाद अंग्रेजी मा कार )
 
भौत समौ पैलाक छ्वीं छन. एक गांवक मुसौ दगड्या कस्बा मा रौंद थौ. एक दिन कस्बा क मूस गाँव आई. गांवक मूसो क ड़्यार
बेतरतीब अर सब जगा गंज मंज छौ अर वैन कस्बौ मूसो बड़ी आदिर खातिर कार. कस्बौ मूसो तै गांवक मूसो रौण खाण (जौ आदि) पसंद नि आई.
कस्बौ मूसन गांवक मूसौ कुणि बोल," इन कन ! यार तू इन उज्जड अर उजाड़ जगा मा किलै रौंदी ? क्या तू त मिंडकौ जन दुंळ मा रौंदी.पाख पख्यड़ मा रौण बि
क्वी रौण ह्वाई. या बि क्वी जिन्दगी च चल म्यार दगड शहर चल. उखाकी जिन्दगी मजेदार च "
गांवक मूस शहरौ मूसो बुलण मा ऐ गे. अर शहर जाणो तैयार ह्व़े गे
 
             ऊं दुयूंन अपणि जातरा रत्या होंदी शुरू कार अर अदा रात मा शहर का मूसौ क्वाटर मा पौन्छी गेन . शहरौ मूसौ बड़ो झल्सादार घौर छौ.
कुर्सी , मेज, झालर, पर्दा, बढिया झुल्ला , सौब कुछ भव्य छौ.
 
अब शहरौ मूसो बारी आदिर खातिर करणै छे ,शहर का मूसौ न गांवक मूसु कि बडी आदिर खातिर कार. बढिया खाणक मेज मा बढिया थाळी, कटोर्युं मा दे.
गांवक मूस अपण बदल्यूं भाग पर पुळेण बिस्याई कि अब त शहर मा जिन्दगी भलि राली. शहर मा बड़ा बड़ा ठाट राला. बस गांवक मूस खुश छौ कि अब त वैका
भाग जगी गेन. वो अग्वाड़ी क मजेदार जिन्दगी क बारा मा सोचिक खुश होणु इ छौ कि भैर बिटेन धडाम से द्वार उघाडे गेन. ड्यारो मालिक को दगड्या
देर रातौ पार्टी करणो मालिको दगड ऐन.अर यूँ लोगूँ डौरन द्वी मूस लुकणो भाजिन. जै तै जो बि कुण्या मील वो उख लुकी गे. भौत रात तलक कमरा मा
पार्टी करण वाळु धमड्याट घमघ्याट मच्युं रै। गांवक मूस बेचैन होंद गे. फिर जब पार्टीबाजुं पार्टी ख़तम ह्वाई अर शान्ति क उम्मेद बंध त मालिकौ
कुकुर भुकण बिसे गेन.कुकरूं भुकण से वातवरण मा डौर, दैसत फ़ैली गे.
 
                    जब ब्यणस्यरक से थ्वडा पैल कुकरूं भुकण बन्द ह्व़े अर जरा शान्ति दिख्याई त गांवक मूस लुकणो जगा से भैर आई अर वैन शहरो मूसौ ब्वाल,' भया त्यार शहर त्वेकूण मुबारक . पण
म्यार छ्वटो दुंळ, उज्जड-उजाड़ गाँव, उज्जड-उजाड़ पाख-पख्यड़ अर जौ को म्वाटो खाणक इ भलो च. जख शान्ति अर निडरता, दैसतहीणता, सुरक्षा, बचाव इ
नि ह्वाओ त उख रैक क्या फैदा? मी त अपण गौं जाणो छौं, जख शान्ति च, सुरक्षा च, बचाव च "

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