Hindi Poem by Dr. Narendra Gauniyal
दुनिया में मुझे
कुछ भी
क्या गर्ज है
जीने की
मुझे मालूम नहीं
मुझे
कोई ग़म
क्या बेचैन करे
जब दर्द ही
जीने का सहारा है
माँ का दूध
अन्न धरती का
अन्य कोई कर्ज
मुझे मालूम नहीं
मुझे
कोई ग़म
क्या बेचैन करे
जब दर्द ही
जीने का सहारा है
डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..(दृष्टिकोण -एक समर्पण)
Hindi Poem by Dr. Narendra Gauniyal
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Hindi Poems by Kumauni Poets, Hindi Poems by Garhwali Poets -Series to be continued ...
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********दर्द ही जीने का सहारा है ******
मुझे
कोई गम
क्या बेचैन करे
जब दर्द ही
जीने का सहारा है
हजार ग़म
ढाए सितम
क्यों मायूस रहूँ
एक बस फर्ज
कुछ करने का
बहाना है
मुझे
कोई ग़म
क्या बेचैन करे
जब दर्द ही
जीने का सहारा है
चाहत नहीं मुझे
कोई गम
क्या बेचैन करे
जब दर्द ही
जीने का सहारा है
हजार ग़म
ढाए सितम
क्यों मायूस रहूँ
एक बस फर्ज
कुछ करने का
बहाना है
मुझे
कोई ग़म
क्या बेचैन करे
जब दर्द ही
जीने का सहारा है
दुनिया में मुझे
कुछ भी
क्या गर्ज है
जीने की
मुझे मालूम नहीं
मुझे
कोई ग़म
क्या बेचैन करे
जब दर्द ही
जीने का सहारा है
माँ का दूध
अन्न धरती का
अन्य कोई कर्ज
मुझे मालूम नहीं
मुझे
कोई ग़म
क्या बेचैन करे
जब दर्द ही
जीने का सहारा है
जलता रहता
ये दिल
किसी आग में
बस यही एक मर्ज
जीने का
बहाना है
मुझे
कोई ग़म
क्या बेचैन करे
जब दर्द ही
जीने का सहारा है ....
ये दिल
किसी आग में
बस यही एक मर्ज
जीने का
बहाना है
मुझे
कोई ग़म
क्या बेचैन करे
जब दर्द ही
जीने का सहारा है ....
डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..(दृष्टिकोण -एक समर्पण)
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