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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, April 22, 2012

Hindi Poem by Dr. Narendra Gauniyal

Hindi Poem by Dr. Narendra Gauniyal
 
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Hindi Poems by Kumauni Poets, Hindi Poems by Garhwali  Poets -Series
 
********दर्द ही जीने का सहारा है ******
मुझे
कोई गम
क्या बेचैन करे
जब दर्द ही
जीने का सहारा है

हजार ग़म
ढाए सितम
क्यों मायूस रहूँ
एक बस फर्ज
कुछ करने का
बहाना है
मुझे
कोई ग़म
क्या बेचैन करे
जब दर्द ही
जीने का सहारा है
चाहत नहीं
दुनिया में मुझे
कुछ भी
क्या गर्ज है
जीने की
मुझे मालूम नहीं
मुझे
कोई ग़म
क्या बेचैन करे
जब दर्द ही
जीने का सहारा है

माँ का दूध
अन्न धरती का
अन्य कोई कर्ज
मुझे मालूम नहीं
मुझे
कोई ग़म
क्या बेचैन करे
जब दर्द ही
जीने का सहारा है

जलता रहता
ये दिल
किसी आग में
बस यही एक मर्ज
जीने का
बहाना है
मुझे
कोई ग़म
क्या बेचैन करे
जब दर्द ही
जीने का सहारा है ....

  डॉ नरेन्द्र गौनियाल  ..(दृष्टिकोण -एक समर्पण)
Hindi Poem by Dr. Narendra Gauniyal

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