Philosophical Hindi Poetries by Dr Narendra Gauniyal
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लेखमाला
*******भाव *********
कवि: डा. नरेंद्र गौनियाल
रात के अँधेरे में
सड़क पर चलते हुए
एक दिन
लापरवाही में अचानक
बहुत ऊंचाई से
गिर गया नीचे
कठोर जमीन पर
घुटने थिंच गए
पसलियाँ भचक गयी
दोनों आँखों के बीच
नाक के ऊपर
गहरा घाव हो गया
हाथ-पैर टटोले
घाव पर रुमाल रखकर
चुपके से उठ गया
लचकते-लचकते
घर पहुँच गया
चोट-घाव का उपचार करके
रात को
निश्चिन्त सो गया
मै खुद
अपनी गलती से
लापरवाही से
गिरा था
किसी ने
धक्का नहीं दिया
मेरे गिरने में
कोई व्यक्ति
कारण नहीं बना
बनता तो
भाव बदल जाता
मेरा रक्तचाप
बढ़ जाता
विवाद हो जाता
नींद भंग हो जाती
शरीर की पीड़ा के साथ
मन की पीड़ा होती
अपने इलाज की
चिंता से अधिक
बदले की भावना होती
कोई कारण न था
मन में
कोई पीड़ा न थी
शरीर की पीड़ा
जल्दी ही
दूर हो गयी
नहीं विकृत हुआ
मन का भाव
जल्दी ठीक हो गए
शरीर के
गहरे घाव ..
डॉ नरेन्द्र गौनियाल (दृष्टिकोण से )
मन में
कोई पीड़ा न थी
शरीर की पीड़ा
जल्दी ही
दूर हो गयी
नहीं विकृत हुआ
मन का भाव
जल्दी ठीक हो गए
शरीर के
गहरे घाव ..
डॉ नरेन्द्र गौनियाल (दृष्टिकोण से )
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to be continued….
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