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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, September 18, 2014

यी सतनज्या डौर अबि बि डरांदन !

खरोऴया :: भीष्म कुकरेती 


    अब मि नाती नतिण्यूं वाळ ह्वे ग्योँ तो भि बचपन मा सुण्यां  कथगा इ शब्द आज बि परोक्ष या अपरोक्ष रूप से आँख दिखाणा रौंदन , धमकाणा रौंदन , खुट पर कुटंसि बांधणा रौंदन। 
   सरा जिंदगी यूँ कथगा ही डौरुं तैं खुकली पर उठैक लिजाणु रौं , कंधों मा जनकैक लिजाणु रौं , जिकुड़ी पर चिपकैक लिजाणु रौं अर  आज बि हर समय अपड दगड़ सिवाळणु रौंदु। 
          जब मि अपण बचपन पर नजर मारदु त बचपन की पैली याद पकड्वा की डौर च।  मतबल होश संभाळणो पैली  केवल अर केवल डौर की च। ब्वेका वु शब्द अबि बि याद आंदन कि   - ये भैर नि जै , देळि से भैर गे ना कि पकड्वा पकड़िक लीजाल, पकड्वा त्यार रामतेल  निकाळल जन कि कई साख्युं पैल एक दैं फलण गांवक अलण ज्योरूक पड़ददा कु झड़ दादा तैं पकड्वा पकड़िक लीग छौ अर फिर पकड्वान ऊँ ज्योरू तैं ऊल्टु लटकैक रामतेल निकाळि छौ ।  हरेक मा , हरेक दादी अपण बच्चा तैं देळि से भैर नि आणो बान एक ऐतिहासिक सच्चो खलनायक याने मुस्लिम उठाईगीर का चित्रण करिक डरांदि छे अर हम बालक -बालिका देळि से भैर एक नई दुनिया की खोज करण चांदा छा किन्तु वो पकड्वा डौर हम तैं सुलभ , प्रकृति दत्त गुण सतत  अन्वेषण  करण से दूर कर दीन्दी छे।  आज बि मा अन्वेषण करण मा मि तैं डौर लगद, नया -नया क्षेत्र मा जाणो सुचदि पग्गड़धारी , भयानक , निर्दयी पकड्वा याद ऐ जांद जाँसे शरीर मा अस्यो -पस्यो (पसीना ) का धारा बगण शुरू ह्वे जांदन अर अंतमा पिछलग्गु बणन मा फायदा चितांदु।  
   फिर जब हम फिरण लैक ह्वे जांद छा त सरा गांका हमसे बड़ा -बूड़ लोग डरांदा छा कि अंक्वैक जावो निथर नवा कखि तुमर घुण्ड फुटि जाल , मुंड फुटि जाल , हथ -खुट टूटि जाल , भट्युड़ थिंचे जाल, त्वे पर रोग लग जाल ।   जख हमर शरीर अर मन कठिन किन्तु रोमांचक यात्रा (गांवक सैर ) करणो उत्साहित करदा छा तो हमर वरिष्ठ हमारी रोमांचिक प्रवृति पर डौर का गरम गरम रंगुड़ फेंकिक हमारी रोमांचक प्रवृति सदा सदा का वास्ता खतम करी दींद छा।  आज यीं उमर मा बि शारिरिक नुक्सान का बारा मा सोचिक हि डौर लगण शुरू ह्वे जांद अर सच्ची पूछो तो ता जिंदगी का रोमांच इख तलक कि बस या साइकल यात्रा मा बि शारीरिक नुक्सान कु डौर  लगद। 
डौर हमर दिमाग मा कीटि कीटिक भरे जांद छे।  हमारी सामाजिक शिक्षा कु आधार ही डौर छौ।  
जब बिटेन होश संभाळ अर आज तक अपण वरिष्ठों से एक वाक्य हर दिन सुणदु -   तन नि कौर! लोग क्या ब्वालल   अर यी लोग क्या ब्वालल वाक्यन मि तैं ऊँ यी पुराणो रस्तों पर चलणो मजबूर कार जू रस्ता लकीरों का फकीरों का वास्ता आरक्षित छन।  हमेशा से इच्छा हूंदी छे कि मि अफुकुण एक अभिनव , नया रस्ता बणौ  किंतु वरिष्ठों सिखयुं वाक्य "तन नि कौर! लोग क्या ब्वालल  " मि तैं पिट्याँ -खत्याँ,बेकार, ढंगार, उबड़ -खाबड़, थकाँद रस्तों पर ही चलणो मजबूर करद। 
एक हैंक डरौण्या वाक्य च जु अबि बि सब में से बुल्दन - ये भीषम तू तन करणी छे अर कखि रिस्तेदार , भाई -बंद नाराज ह्वे गे तो ? अर ये वाक्यन मि तैं सफाचट निकज्जु बणै दे।  मि तैं हर समय डौर रौंद कि मि इन करुल , मि तन करुल तो कखि ब्वे- बाब, भै -बंध में से प्यार की जगा घृणा करण बिसे जाल तो ? अर कैक प्रेम नि ख्वे जावो का डौरन मि कुछ बि नि करदो। 
भूत का डौर तो हम तैं जन्मदि दूधो दगड़ पिलाये जांद अर दगड़ मा बुड्या हूणों खुराक बि दूधौ दगड़ ही ही पिलाये जांद अर फिर हम ताजिंदगी वर्तमान मा रौण ही भूल जाँदा अर यूँ डौरुं चक्कर मा यु लोक ((वर्तमान ) अर परलोक (भविष्य ) की सब खुसी भेळ जोग ह्वे जांदन। 
मृत्यु की तो डौर अफिक ऐ जांद अर या डौर हमारी सब संभावित तागत पर हर समय जंक लगाणी रौंद , हर संभावना पर मृत्यु भय पलस्तर लगाणु रौंद। 
अब द्याखो ना ये लेख टाइप करणो बाद मि तैं डौर सताणि च कि -
पता नि पाठक Like करदा छन कि ना ?
पता नी पाठक पढ़दा छन कि ना ?
पता नि पौढिक पाठ्कुं तैं लेख पसंद आलो कि ना ?
पता नि म्यार देवदूत याने प्रेमी पाठक टिप्पणी करदा छन कि ना ?
खैर हे पाठको ! तुम नि डौरो अपणि राय निडर ह्वेक बताओ।  ह्यां आपकी टिप्पणि से मि तुमर कुछ बि नि बिगाड़ सकद तो आलोचना करण बि पोडो  तो आलोचना कारो ना ! पर कुछ तो कारो ! मेरी नराजी से नि डौरो।  उल्टां डौर तैं डराओ !  


Copyright@  Bhishma Kukreti 18 /9/ 2014

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