विद्वान कवि ; पूरन पंत 'पथिक'
मिस्यां छन बस घोषणौ पर ,
जौंको उत्तराखंडै कुर्सी।
अहा भैजि शिल्यानास,
नजर उत्तराखंडै कुर्सी।
सूणां दाज्यू उद्घाटन,
चयेंद उत्तराखंडै कुर्सि ।
धर्म लोकार्पण इबारे ,
बचै रखण अपणि कुर्सी।
लाल बत्ती -गाडी -घ्वाड़ा हम सणि ,
चयेंद छ्वटि -म्वटि या उच्ची कुर्सी।
अबि मिलीं छन, बचै रखणि,
टैम्परैली अपणि कनि बि कुर्सी।
शान या इज्जत हमारी
एम्बेसेडर दगड या कुर्सी।
प्रोटोकॉल, रिगदा लोग
कोष ई च हमारी कुर्सी।
लूछि दियां , लमडै दियां ना ,
लाल बत्ती अर या कुर्सी।
अहा कुर्सी , वाह कुर्सी ,
हमारी जो तु छे कुर्सी।
हमारी ब्वेन पिवै कुर्सी ,
खवै अर पेराई कुर्सी।
ढिक्याण -डिसाण उठण -बैठण
हम खुण्ये या बणै कुर्सी।
सांग बी जब सज्यालु तबि बि तू दगड़ इ रैली ,
किलै,
कैकुण,
क्योक बिसरण या कुर्सी।
क्योक बिसरण या कुर्सी।
हमारी छे तू , त्वे कुण हम ,
बिन तेरा कंगाल हम, ये कुर्सी।
चौदा साल कन खस्स खस्किन ,
अहा कुर्सी, वाह कुर्सी।
अहा कुर्सी, वाह कुर्सी।
वक्त कम, ठेकेदारी बिंडी
कनि बचीं रैली तू मेरी गळकंठी कुर्सी।
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