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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, September 14, 2014

नजर उत्तराखंडै कुर्सी

विद्वान कवि ; पूरन पंत 'पथिक'
मिस्यां छन बस घोषणौ पर ,
जौंको उत्तराखंडै  कुर्सी।  
अहा भैजि शिल्यानास,
नजर  उत्तराखंडै  कुर्सी। 
सूणां दाज्यू उद्घाटन,
चयेंद उत्तराखंडै  कुर्सि । 
धर्म लोकार्पण इबारे ,
बचै रखण अपणि कुर्सी।
लाल बत्ती -गाडी -घ्वाड़ा हम सणि ,
चयेंद छ्वटि -म्वटि या उच्ची कुर्सी।
अबि मिलीं छन, बचै रखणि,
 टैम्परैली अपणि  कनि बि कुर्सी।
शान या इज्जत हमारी 
एम्बेसेडर दगड या कुर्सी।
प्रोटोकॉल, रिगदा लोग 
कोष ई च हमारी कुर्सी। 
लूछि दियां , लमडै दियां ना ,
लाल बत्ती अर या कुर्सी।
अहा कुर्सी , वाह कुर्सी ,
हमारी जो तु छे कुर्सी।
हमारी ब्वेन पिवै कुर्सी ,
खवै अर पेराई कुर्सी।
ढिक्याण -डिसाण  उठण -बैठण 
हम खुण्ये   या बणै कुर्सी।
सांग बी जब सज्यालु तबि बि तू दगड़ इ रैली ,
किलै,
कैकुण, 
क्योक बिसरण या 
कुर्सी।
हमारी छे तू , त्वे कुण हम ,
बिन तेरा कंगाल हम, ये कुर्सी।
चौदा साल कन खस्स खस्किन ,
अहा कुर्सी,  वाह कुर्सी। 
वक्त कम, ठेकेदारी बिंडी 
कनि बचीं रैली तू मेरी गळकंठी कुर्सी।
Copyright @ Puran Pant 'Pathik' Dehradun 
garhwali.dhai100@gmail.com

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