कन्द्युरा :: भीष्म कुकरेती
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कुमार - काजी जी ! काजी जी ! खेचल ह्वे गे
कॉन्स्टेबल -कैक कज्याण कैक दगड़ भाजी गे।? चल भाग इक बटें ,
कुमार - काजी जी ! काजी जी !
कॉन्स्टेबल -अबे तेरी ब्वेन बूड़याँद दैं त्यार कठबाबु धरि दे जु तू मितै तंग करणु छे ? या ते छौंद तेरी कज्याणिन कठाळु (विधवा का उपपति ) धरि दे ? या क्वी कॉंग्रेसी भूक हड़ताल पर बैठणो सुचणु च ?
कुमार -ना ! ना ! इन अनर्थ नि ह्वे।
कॉन्स्टेबल -त फिर किलै मेरी कुल्ली खाणि छे ? ऊनि बि अदकपाळी हुईं च।
कुमार - मे पर वांसे बि बड़ी आपदा आईं च।
कॉन्स्टेबल -पता च राजस्थान मा कथगा बड़ी आपदा आयीं च ? यांसे बड़ी आपदा राजस्थान मा कबि क्या आली ?
कुमार -नै जी मेरी आपदा से बड़ी क्वी आपदा ह्वेइ नि सकद !
कॉन्स्टेबल -ओ अदखिचर ! सरा शहर का पुलिस विभाग भागम भाग मा लग्युं च अर तु बुलणु छे बल तेरी आपदा से बड़ी आपदा राजस्थान मा नि ह्वे सकद ! पुलिस वाळु हगणि -मुतणी बंद हुईं च।
कुमार - हैं ? पर मीन त नि सूण कि राजस्थान मा भयंकर सूखा पड्युं च। यांसे बड़ी आपदा क्वी नि हूंदी।
कॉन्स्टेबल -ओ निर्भागी हिन्दुस्तानी ! बाढ़ -सूखा तैं हम पुलिस वाळ आपदा नि समझदवां । (अफिक ) यो तो एक बड़ी कमाई कु जरिया ह्वे जांद।
कुमार -यदि पुलिस वाळु हगणि -मुतणी बंद हुईं च तो क्या राजस्थान मा द्वी धरम वाळु मध्य दंगा ? पर मीन नि सूण कि क्खि दंगा फसाद ह्वावन !
कॉन्स्टेबल - अबै कै पुलिस वाळ तैं दंगा फसाद से दुःख हूंद ? हैं ? धार्मिक दंगा फसाद तो भारतौ कुण अठ्वाड़ जन धार्मिक कर्मकांड च , बस ब्यालों -बुगठ्यों जगा मनिख कटे जांदन।
कुमार - अच्छा जु बि आपदा होलि हूण द्यावो , जब तक में पर वा आपदा नि ह्वावो मि वीं तैं आपदा नि मानि सकुद। किन्तु काजी जी मेरी मुसीबत राजस्थान मा सूखा से अधिक महत्वपूर्ण आपदा च।
कॉन्स्टेबल -देख बै ! दिखणि छे। सरा कोतवाली खाली च। आज किरम्वळ बि नि दिखेणा छन इख।
कुमार -पर मेरी कम्पलेंट तो आप तैं लिखण इ पोड़ल !
कॉन्स्टेबल -कनो तू क्वी बड़ो काजी जी, कै बड़ो अधिकारी या कै मंत्रिक ख़ास आदिम छे कि मि तैं कम्पलेंट लिखण इ पोड़ल हैं ?
कुमार - काजी जी ! म्यार सरा परिवार वे पर इ निर्भर च।
कॉन्स्टेबल -देख हाँ ! म्यार दिमाग नि खा हाँ ! आज राजस्थान का पुलिस वाळ बहुत हि व्यस्त छन। चा पीणो बि फुर्सत नी च ऊंमा।
कुमार -पर साब ! मेरी रोजी रोटी कु सवाल च।
कॉन्स्टेबल -अच्छा चौल बोल क्या कम्पलेंट च ?
कुमार - काजी जी म्यार गधा हर्ची ग्याइ ।
कॉन्स्टेबल -अबे साले ! तूने पुलिस स्टेसन अपने बाब्प का ससुराल समझा है जो गधा खोने के कम्पलेंट कर रिया है यहां ?
कुमार -काजी जी ! खोया -पाया की शिकैत त कोतवाळी मा इ करे जांद कि ना ?
कॉन्स्टेबल -मतबल अब पुलिस वाळ गधा खुज्याल हैं ?
कुमार - काजी जी गधा नि मीलल तो म्यरो परिवार भूक मोरी जाल !
कॉन्स्टेबल -अर मि गधा हर्चणो एफआईआर लिखल तो म्यार अधिकारी मे तैं सस्पेंड कर द्याल।
कुमार -किलै ?
कॉन्स्टेबल -अरे गधा जन जानवर तैं खुज्याणो पुलिस वाळ जाल ? पुलिस की यांसे ज्यादा बेज्जती क्या होलि कि वा गधा खुज्याली ?
कुमार - पर साब म्यार सरा परिवार को आमद गधा पर हि निर्भर च। गधा एक दिन बि नि मीलल तो समज ल्यावो हमारा इक आग नि जळी सकद। गधा नि मीलल तो सरा परिवार भूकन मोर जाल।
कॉन्स्टेबल -अबे अददिमागौ मनिख ! सूण हम इख गधा खुज्याणो नि बैठ्याँ छंवां। समझे ! जा अफिक ढूंढ अपण गधा तैं।
कुमार -पर काजी जी ! बगैर गधा का म्यार परिवार खतम ह्वे जाल।
कॉन्स्टेबल -खतम ह्वे जाल तो हूण दे। इखमा पुलिस वाळु क्या गलती ? अरे साले , हरामी ! गधा खोजने के लिए हम पुलिस वाले ही मिले तुझे ?
कुमार - काजी जी कम्पलेंट लेखी द्यावो अर गधा खुज्याण मा मेरी मदद कारो जी ! हमर सरा परिवार गधा पर ही निर्भर च। जन किसान कु सरा दारोमदार खेती पर हूंद ऊनि म्यार परिवार को आसरा म्यार घड़ा ही च।
कॉन्स्टेबल -मीन बोली याल गधा क्या हम कोतवाली मा गौड़ी हर्चणै शिकायत बि नि करदा। अर जोर जबरदस्ती से कंपलेंट दर्ज बि कर द्योल्या तो हम पुलिस कबि बि जानवर नि खुज्यांदा।
कुमार - पर काजी जी !
कॉन्स्टेबल - अर आज तो सरा शहर मा राजस्थान पुलिस बहुत ही व्यस्त च। कैक कज्याण या कैकि बेटी बि हर्ची गए तो बि कै बि कोतवाली मा क्वी बि शिकायत दर्ज नि ह्वे सकद , हरेक पुलिस वाळ अति व्यस्त च।
कुमार - किलै राजस्थान पुलिस इथगा अति व्यस्त च ?
कौंस्टेबल - मंत्री जीक कुत्ता हर्ची गे अर एसपी , इंस्पेक्टर , कॉन्स्टेबल सबि स्वास्थय मंत्री जीक कुत्ता खुज्याण मा लग्यां छन। मीन बि जाण छौ पर चूँकि म्यार खुट पर ढाल हुयुं च तो मि कोतवाली मा छौं।
Copyright@ Bhishma Kukreti 23 /9/ 2014
*लेख में घटनाएँ , स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख की कथाएँ , चरित्र व्यंग्य रचने हेतु सर्वथा काल्पनिक है
*लेख में घटनाएँ , स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख की कथाएँ , चरित्र व्यंग्य रचने हेतु सर्वथा काल्पनिक है
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