कन्द्यूर्या, प्रत्यक्षदर्शी ::: भीष्म कुकरेती
उत्तराखंडी लुब्या (राजमा )- च्च्च ! चच्च !
सोया बड़ी -ये ये ! घ्वाड़ा छौं मि कि जु तू मि तैं च्च्च ! चच्च ! करिक खदेड़नि छे , भगाणी छै ?
लुब्या -छि छि छे छे !
सोया बड़ी -अरे मि क्वी खुजली वाळ कुत्ता छौं जु तु मि तैं इन भगाणि छै ?
लुब्या -अरे तू त वाडसरक्वा छे।
सोया बड़ी -क्या ?
लुब्या -तू त भूमाफिया छे जु दुसरो जमीन जायजाद पर जबरदस्ती कब्जा कर दींदु।
सोया बड़ी -ह्यां मि अबि इज्जत से बात करणु छौं हाँ !
लुब्या -अरे ! जा ते पर फूल नि ऐन !
सोया बड़ी -हूँ !
लुब्या -जा म्यार ब्रह्म सच ह्वाल तो फूल ऐन बि तो त्यार बीज बुसे जैन! बीज नि बुसेन त त्वै पर टेर लग जैन!
सोया बड़ी -यी क्या बकबास च ?
लुब्या -अर जु तबि बि तेरी बड़ी बण बि जैन त बणदि त्वे पर कुयड़ लग जैन , फंगस जैन धौं !
सोया बड़ी -अरे गाळि दीण मि तैं बि आंद। इन घात घळळु कि आवाज दक्षिण अमेरिका तलक पौंछि जाली। पता त चौल कि ह्वाइ क्या च ?
लुब्या -हूँ ! पुछणु छे कि क्या ह्वाइ ? अरे बेशरम , बदजात इन पूछ कि क्या नि ह्वाइ ?
सोया बड़ी -बकबास करण मा तू बेलवाल भुट्टो ह्वे गे।
लुब्या -ऐ तू मि तैं सुंगर बोलि दे पर बेलवाल भुट्टो कि गाळि नि दे हाँ !
सोया बड़ी -यां पागल जन बात करील तो मिन त्योकुण बेलवाल भुट्टो जरदारी हि बुलण।
लुब्या -अरे यदि क्वी बदजात कैकु राज ताज छीनल तो जैक ताज -राज जालु तो वैन गाळि नि दीण तो क्या करण ? मुंड मा बिठाल ? बड़ै माँगल (प्रशंसा गीत ) ?
सोया बड़ी -ह्यां पर मीन त्यार क्या बिगाड़ ?
लुब्या -अच्छा सरा पुंगड़ी पर कब्जा करिक पुछणी छे कि मीन क्या कार ? मेरि सरा कूड़ी खै गे अर फिर बि अजाण ह्वेक पुछणि छे कि क्या ह्वे ?
सोया बड़ी -अरे या बकबास मेरी समज से भैर च।
लुब्या -त्वे पता च , मकुण राजमा बुले जांद छौ याने दाळु राजमाता ! अर अब ?
सोया बड़ी -अब क्या ?
लुब्या -पैल रविवारौ कुण बड़ी लगन से राजमा दाळ बणाद छा। हरेक खंदेर , हरेक दुकानदार मि तैं बड़ी इज्जत दींद छौ।
सोया बड़ी -अर अब ?
लुब्या -अब जब बिटेन यी बहुराष्ट्रीय कम्पन्यूंन त्यार प्रचार प्रसार कार अब क्वी मि तैं पुछ्दु इ नी च। अरे संडे तो छवाड़ो अब त उड़द की दाळ मा मेरी जगा त्वे तैं डाळि दींदन। इनि हाल राल तो पता नि मि हर्ची इ नि जौं !
सोया बड़ी -हाँ तो मीम प्रोटीन च , फैट च पर सोडियम कतै नी च , कोलेस्ट्रोल नी च कर्बोहाइड्रेट्स छन। कैल्सियम च, विटामिन्स छन आदि आदि
लुब्या -अरे पर मीम बि त सी गुण छन कि ना ?
सोया बड़ी -पर जु बहुउपयोग म्यार ह्वे सकुद स्यु त्यार नि ह्वे सकद।
लुब्या -यी सब साम्राज्यवादी, सामंतवादी , पूंजीवादी पोषित बहुदेशीय कंपन्यूँ शरारत च कि त्वै तैं प्रमोट करणा छन।
सोया बड़ी -हं हं ! जब बि कै पर भीत पोड़ना वु कम्युनिस्ट बण जांद , बामपंथी बण जांद। जैदिन अम्बानी या मल्लया पर भीत पोड़ल ना वूंन कम्युनिष्टि भाषा बुलण मिसे जाण। तू बि फटेहाल दिनुं आशंका मा कम्युनिष्ट ह्वे गे अर
लुब्या -पर तू पहाड़ों की संस्कृति , परम्परा तैं नुक्सान क्या खतम ही करणी छे। तू संस्कृति भंजक छे , परम्परा तोडू सिद्ध हुणि छे।
सोया बड़ी -वाह ! छनि तो बोले बोले , चंळु -मंट्यळु बि बोले जिसमे बड़े छप्पन छेद !
लुब्या -क्या मतबल ?
सोया बड़ी -तीन बि त अठारवीं -उनीसवीं सदी मा भारतमा खानपान संस्कृति पर अतिक्रमण कौर छौ अर जोर शोर से अतिक्रमण कौर छौ।
लुब्या -ये बिंडी नि बोल हाँ। मीन त्यार दांत तोड़ि दीणण हाँ !
सोया बड़ी -चोर का चर्र चर्र चार बचन !
लुब्या -मीन क्या चोरी कौर ? क्या चोरी कार हैं ?
सोया बड़ी -मि तैं सब पता च। त्यार असली मैत दक्षिण अमेरिका याने पेरू , मैक्सिको च अर यूरोपी ब्यापारी त्वै तैं दक्षिण अमेरिका बटें यूरोप लैन अर फिर भारत लैन।
लुब्या -गलत। मेरी कुछ जाती अफ़ग़ानिस्तान अर हिमालय मा बि पुरण जमाना से छौ.
सोया बड़ी -हाँ पर उ लुब्या तो तू नि छे ना। तीन बि एक दैं भारत की खानपान संस्कृति पर जबरदस्त धक्का लगै छौ। अर संस्कृति क्वी तालब नी च जु रुक्युं राव , संस्कृति तो बगदि नदी च ।
लुब्या -नै नै ! मीन भारत तैं फायदा ही दे छौ।
सोया बड़ी -हाँ अफु पर बितदि तो हरेक तैं संस्कृति टूटणो डौर लगद। खानपान मा जै बि अनाज , दाळ , भुज्जी , फल माँ पौष्टिक तत्व ह्वाल , बहुप्रयोग ह्वाल वो खाद्य पदार्थ पुरण खाद्य पदार्थ तैं पैथर धकेळदु।
लुब्या -दिखुल त्वै तैं कि तू म्यार साम्राज्य तैं खंड मंड करदि दैं !
सोया बड़ी - हां हा हा ! कॉंग्रेस हारी गे किन्तु अबि बि भाजपा कुण बुलणि च कि मीइ ही वास्तविक राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी छौं। त्यार बि हाल कॉंग्रेस जन छन तू अबि बि मानणो तयार नि छे कि अगला दशक किडनी बीन्स ना अपितु सोयाबीन्स का छन !
Copyright@ Bhishma Kukreti 22 /9/ 2014
*लेख में घटनाएँ , स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख की कथाएँ , चरित्र व्यंग्य रचने हेतु सर्वथा काल्पनिक है
*लेख में घटनाएँ , स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख की कथाएँ , चरित्र व्यंग्य रचने हेतु सर्वथा काल्पनिक है
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