उत्तराखंडी ई-पत्रिका की गतिविधियाँ ई-मेल पर

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Monday, September 22, 2014

गढ़वाल का सुंगुर नजीबाबाद शिफ्ट हूणों सुचणा छन

सुचघर मा मंत्रणा -- भीष्म कुकरेती



   सुंगर - अरे बिंडी राड़ घाळिल तो मीन त्यार सि थुंथुर थींचि दीण हां।  तब रैलि बगैर थुन्थरक सुंगुर  बौणि घुमणु !
 सुंगरौ बच्चा -नै नै ! म्यार ज्यु तो पिंडाळु खाणौ हूणु च।  तुम कन बुबा छंवां कि मेरी इच्छा पूरी नि कर सकणा छंवां ?
सुँगुर -अबे सुंगर की औलाद ! इलै इ मनिख बुल्दन बन "द लगा बल सुंगरुं दगड़ मांगळ " ।हम जानवर इच्छा अनुसार काम नि करदां अपितु वर्तमान परिस्थिति देखिक कार्य निपटाँदा   
सुंगरौ बच्चा -पर पोर तुमन ये मौसम मा जै तैं मनिख ऑक्टोबर -नवंबर बुल्दन बोलि छौ कि हैंक साल पिंडाळु  घिण्डक खलौलु। फिर मि अगस्त बटें याद दिलाणु छौं कि मीन पिंडाळु खाण , पिंडाळु खाण। 
सुँगुर -ले! पिंडाळु जगा म्यार मुंड खा !
सुंगरौ बच्चा -मि सुंगर का बच्चा छौं , मनिखो बच्चा नि छौं जु अपण मनख्यात छोड़ि दींदन।  मि सुंगर छौं अपण सुंगर्यात नि छोड़ी सकद कि सुंगरौ मुंड छोड़ि द्यों 
सुँगुर -हाँ पर सुंगर इच्छा बि त नि करद। 
सुंगरौ बच्चा -मीन एक रात द्याख कि मनिखो बच्चा घी रुटि राड़ घाळ तो वैक ब्वेन वैक ब्वेन वै बच्चा तैं घी रुटि दे द्याई।  बस मी बि इच्छा करण सीख ग्यों , राड़ घळण सीखी ग्यों।   
सुँगुर -साले मनुष्य की औलाद !
सुंगरौ बच्चा -देख हाँ तू बाब ह्वेक बि मनुष्य की गाळी दीणि छे हाँ ! मीन त्यार थुंथुर बुकै दीण हाँ !
सुँगुर -अबै त पिंडाळु खाणौ राड़ घाळण बंद कौर !
सुंगरौ बच्चा -ह्यां पर तुम अर ननि , बुड़ननि त बुलणा छा कि एक जमाना मा तुम मौसम मा खूब ना सै पर फिर बि एकाद पिंडाळु घिंडक खै लींदा छा। 
सुँगुर -हाँ ! तब यी गढवळि लोग पिंडाळु लगांद छा , पिंडाळु खेती करदा छा।  अब यूंन   पिंडाळु लगाण बंद करि  याल। 
सुंगरौ बच्चा - गढ़वळयूंन किलै पिंडाळु खेती बंद कार ?
सुँगुर -बल  सुंगर ऊंक पिंडाळु खै जाँदा तो गढ़वळयूंन पिंडाळु लगाण बंद करि दे 
सुंगरौ बच्चा -ह्यां पर हम सुंगरुँन अब कख जाण ? 
सुँगुर -वी तो मि बुलणु जंगळ हमकुण रयां नि छन।  यी गढ़वळि इथगा ज्यादा खेती बि नि करदन कि थोड़ा भौत  हम सुंगर खै बि लेवां तो कुछ फरक नि पोड़ो।  अब द्वी दाणी पिंडाळु लगांद छा तो वु हमकण बि पूर नि पड़दो छौ।  अर अब त दूर दूर तक कखि बि पिंडाळु नि लगाये जांद। 
सुंगरौ बच्चा -तो यी गढवळि अब पिंडाळु नि खांदन ?
सुँगुर -नि खांदन हाँ ! कनि खांदन। अब यी लोग बजार बिटेन पिंडाळु लंदन। 
सुंगरौ बच्चा -बाबा ! बाबा ! सि चार सुंगर ! यी सुंगर हमर डार (समूह ) का नि छन। हो 
सुँगुर -ये बाहरी सुवर के बच्चो वहीं रुको , वहीं रुको !
दुसर सुँगुर - भाई ! हिंदी  क्यों बचळयातो  हो।  हमर अर तुमर झड़ नानी एकी छे।  वु त ये गदन भीड़ ह्वे गे छे तो हमर परिवार पल्ली पार दुसर गदन चलि गे छा। 
पैलाक सुंगर -नै नै ! इख गदन मा उनि बि भीड़ च।  तुमकुण इख जगा नी च।  
दुसर सुंगर -हम ये गदन बसणो नि अयाँ छंवां। 
पैलाक सुंगर -तो ?
दुसर सुंगर -अरे क्या बतौवां ! हमर बच्चा विटामिन की कमी से बीमार पड़णा छन।  अर वैद जीन ब्वाल बल भळती पौधा की जड़  खलावो।  अर जब बिटेन गढ़वाळम कुरी याने लैन्टिना कु झाडी कु प्रसार ह्वे तो भळती पौधा ही निबटि गेन।
पैलाक सुंगर -अरे काण्ड लगिन यूँ कुरी या लैन्टिना का झाड्यूं पर।  हमर इख भि भळती पौधा निबटि गेन।  चार पांच दिन ह्वे गेन हमर डार का बि चार सुंगर्याणी  भळती पौधा का खोज मा वल्ली पार जयां छन कि भळती पौधा जलड़ खाल तो दूध मा विटामिन ह्वे जाल अर फिर बच्चों तैं वु भळती विटामिन मिल जालो। 
दुसर सुंगर -अरे वल्लि पार क्या सरा हौरि क्षेत्र मा बि भळती पौधा  निबट गेन।  हम तैं ये क्षेत्र से आस छे अर तु बुलणु छे कि ये क्षेत्र से बि भळती पौधा निबटि गेन।
पैलाक सुंगर -हाँ।  हमर झड़ नातिक सौं।
दुसर सुंगर -त अब नजीबाबाद जिना पलायन करणो दिन ऐ गेन।
पैलाक सुंगर -हाँ ! हमर डार मा यु निर्णय हुयुं च कि भळती पौधा  नि मीलल तो हमन बि बिजनौरो जंगळ चल जाण।
दुसर सुंगर - ठीक च उखी कखि मिलला हाँ !
सुंगरौ बच्चा - ऊख बिजनौर मा लोग पिंडाळु लगांद छन कि ना ?
सुंगर - हाँ भाई हाँ !
सुंगरौ बच्चा - तो आजी पैत धारो बिजनौर जाणो वास्ता।  क्या च ये गढ़वाळ मा धर्युं ? ना पिंडाळु अर ना ही जंगली जड़ी बूटी ?


Copyright@  Bhishma Kukreti 208 /9/ 2014  

No comments:

Post a Comment

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments