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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, September 23, 2014

वर्षा अर शरद ऋतु मा झगड़ा

मजक्या : भीष्म कुकरेती 
                      
वर्षा ऋतु  -ह्यां ये भाऊ (छोटी बहिन ) शरदि  !  ड्यारम माँ -पिताजी जी ठीक छन ? हौरि चारि बैणि सुखि छन कि ना ? अर तुम पंचि बैणि आपस मा झगड़ा त नि करणा रौंदा ना ?
शरद ऋतु  -हम त कबि बि झगड़ा नि करदां।  झगड़ालु त त्वी अर ग्रीष्मा ही छंवां ।  जख बि रैलि तख औडळ बीडळ मा व्यस्त रौंदी। ना मनुष्य लोक मा ना अपण घौरम कै तैं   बि चैन से बैठण दींदी ?
वर्षा -देख हाँ ग्रीष्म दीदी अर तू म्यार पैथर भौत पड्यां रौंदा हाँ ! अर माँ -पिताजी बि कुछ नि बुल्दन। अर भगवान  काकाक त बुलण इ क्या च ! नामौ जज छन। 
शरद -हाँ बिच्छू अपर डंक दिखुद नी च अर म्वारौ  कुण ब्वाद कि तैकु डंक खतरनाक च। अफु त तू जब चांदी बगैर बारीक , बगैर अपण नंबर अयाँ जैबरी  बि चांदी हैंक ऋतुक  टैम पर बरख जांदी अर भगवान काका तैं दोष दीणी छे कि काका जजमेंट नि करदन।
वर्षा -ह्यां पर जब हौर मौसम मा म्यार गुठ्यार मा जब पाणि भर्याल तो मीन बरखण नी च ? ते मा त जरा ठंड  भरे  ना कि तू आषाढ़ ही बिटेन म्यार पैथर पोड जांद कि चौड़   घौर आ।
शरद -अरे हेमंत भुलि मेरी पैथर पोड़लि तो मीन त्यार  पैथर पड़नि च। 
वर्षा -हाँ तो वीं कुण बोल कि ठेलम ठेल नि कौर।  म्यार पैथर नि पड़ा कौर। 
शरद -अरे म्यार काम च लोगुं तैं गुलाबी ठंड दीण।  जब तलक तू नि जैलि अर हेमंती में से दूर इ नि रैलि मि लोगुं तैं गुलाबी ठंड कनकै द्योलु ?
वर्षा -मीन भगवान काका से यी त ब्वाल कि तेरी जरूरत ही नी च।  मीन कथगा दैं वै काका तैं समझाई बि च त्वे तैं वीआरएस देकि घर बिठाळ दे पर भगवान काका बि मनमोहन सिंघौ तरां क्वी रिस्क ही नि लीन्दन अर हमेशा डिसिजन लीणम  गयेळि करणा रौंदन।  पता च भगवान काका क्य बुल्दन ?
शरद -क्या ?
वर्षा -बल बिचारी शरदि ! वींक क्वी एक्सक्लुजिविटी याने विशेषता ही नी च।  काका बुलद बल रण द्या तैं शरदि तैं, क्या  फरक पड़द शरद रा या नि रावु  ।  
शरद -हाँ त तू जांदी नि छे अर हेमंत छ्कच्याट करिक छकछक   ऐ जांदी
वर्षा -हिंहिं !
शरद -बिंडी नि हौंस हां।  जा अब त्यार समय ड्यार जाणो ह्वे गे।  फंड जा। 
वर्षा -अरे कनकै जा ? पता च यीं दैं गर्मी डेढ़ मैना देर तलक भूलोक मा राइ। 
शरद -त तीन बि डेढ़ मैना ज्यादा  भूलोक मा रौण ?
वर्षा -हाँ ! जब गर्मी डेढ़ मैना जादा रै सकदी तो मि नि रै सकद ?
शरद -ह्यां पण तू डेढ़ मैना जादा तक इख रैली तो मि लोगुं तैं गुलाबी ठंड कब द्योलु ? तब तलक त हेमंती अपण बरफ की चल्लि लेक ऐ जालि।
वर्षा -मी नि जाणदु!  मीन त अबि डेढ़ मैना हौर रौण। 
शरद -ह्यां पर मेरी अग्ल्यार कब आली ?
वर्षा -मि तैं क्या पुछणि छे।  ग्रीष्म दीदी तैं पूछ कि वा इथगा देर तलक भूलोक मा किलै राइ ?
शरद -ह्यां ! छ त वा दीदी च पर कबि बि हमर दगड़ दीदी तरां बर्ताव नि करदि।  हर समय दुर्बासा तरां विकराल लाल काखड़ बणि रौंदि। बिंडी ब्वालो तो आग लगाणो तयार ह्वे जांद।
वर्षा -हाँ त वींक सिकैत कौर ना भगवान काकाम !
शरद -कौरी छे ना !
वर्षा -त क्या ब्वाल भगवान काकान ?
शरद -बुलण क्या छौ। रघुकुल सदा चल रीति वळ  हिसाब च।  जन भारत मा चुनाव आयोग उच्छेदी नेताओं तैं प्रताड़ना देकि माफ़ करदु ना ! ऊनि भगवान काका बि हमेशा गरमी दीदी तैं मुँहजवानी प्रताड़ना देकि छोड़ दींद
वर्षा -पता च यांक क्या मतबल हूंद ?
शरद -क्या ?
वर्षा -कि न्याय बि कमजोरूं साथ नि दींदु अपितु बलवानुं  साथ दींदु।
Copyright@  Bhishma Kukreti 21 /9/ 2014       
*लेख में  घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं ।
 लेख  की कथाएँ , चरित्र व्यंग्य रचने  हेतु सर्वथा काल्पनिक है 
 
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