मजक्या : भीष्म कुकरेती
वर्षा ऋतु -ह्यां ये भाऊ (छोटी बहिन ) शरदि ! ड्यारम माँ -पिताजी जी ठीक छन ? हौरि चारि बैणि सुखि छन कि ना ? अर तुम पंचि बैणि आपस मा झगड़ा त नि करणा रौंदा ना ?
शरद ऋतु -हम त कबि बि झगड़ा नि करदां। झगड़ालु त त्वी अर ग्रीष्मा ही छंवां । जख बि रैलि तख औडळ बीडळ मा व्यस्त रौंदी। ना मनुष्य लोक मा ना अपण घौरम कै तैं बि चैन से बैठण दींदी ?
शरद ऋतु -हम त कबि बि झगड़ा नि करदां। झगड़ालु त त्वी अर ग्रीष्मा ही छंवां । जख बि रैलि तख औडळ बीडळ मा व्यस्त रौंदी। ना मनुष्य लोक मा ना अपण घौरम कै तैं बि चैन से बैठण दींदी ?
वर्षा -देख हाँ ग्रीष्म दीदी अर तू म्यार पैथर भौत पड्यां रौंदा हाँ ! अर माँ -पिताजी बि कुछ नि बुल्दन। अर भगवान काकाक त बुलण इ क्या च ! नामौ जज छन।
शरद -हाँ बिच्छू अपर डंक दिखुद नी च अर म्वारौ कुण ब्वाद कि तैकु डंक खतरनाक च। अफु त तू जब चांदी बगैर बारीक , बगैर अपण नंबर अयाँ जैबरी बि चांदी हैंक ऋतुक टैम पर बरख जांदी अर भगवान काका तैं दोष दीणी छे कि काका जजमेंट नि करदन।
वर्षा -ह्यां पर जब हौर मौसम मा म्यार गुठ्यार मा जब पाणि भर्याल तो मीन बरखण नी च ? ते मा त जरा ठंड भरे ना कि तू आषाढ़ ही बिटेन म्यार पैथर पोड जांद कि चौड़ घौर आ।
शरद -अरे हेमंत भुलि मेरी पैथर पोड़लि तो मीन त्यार पैथर पड़नि च।
वर्षा -मीन भगवान काका से यी त ब्वाल कि तेरी जरूरत ही नी च। मीन कथगा दैं वै काका तैं समझाई बि च त्वे तैं वीआरएस देकि घर बिठाळ दे पर भगवान काका बि मनमोहन सिंघौ तरां क्वी रिस्क ही नि लीन्दन अर हमेशा डिसिजन लीणम गयेळि करणा रौंदन। पता च भगवान काका क्य बुल्दन ?
शरद -क्या ?
वर्षा -हिंहिं !
शरद -बिंडी नि हौंस हां। जा अब त्यार समय ड्यार जाणो ह्वे गे। फंड जा।
वर्षा -हाँ ! जब गर्मी डेढ़ मैना जादा रै सकदी तो मि नि रै सकद ?
शरद -ह्यां पण तू डेढ़ मैना जादा तक इख रैली तो मि लोगुं तैं गुलाबी ठंड कब द्योलु ? तब तलक त हेमंती अपण बरफ की चल्लि लेक ऐ जालि।
वर्षा -मि तैं क्या पुछणि छे। ग्रीष्म दीदी तैं पूछ कि वा इथगा देर तलक भूलोक मा किलै राइ ?
शरद -ह्यां ! छ त वा दीदी च पर कबि बि हमर दगड़ दीदी तरां बर्ताव नि करदि। हर समय दुर्बासा तरां विकराल लाल काखड़ बणि रौंदि। बिंडी ब्वालो तो आग लगाणो तयार ह्वे जांद।
वर्षा -त क्या ब्वाल भगवान काकान ?
वर्षा -ह्यां पर जब हौर मौसम मा म्यार गुठ्यार मा जब पाणि भर्याल तो मीन बरखण नी च ? ते मा त जरा ठंड भरे ना कि तू आषाढ़ ही बिटेन म्यार पैथर पोड जांद कि चौड़ घौर आ।
शरद -अरे हेमंत भुलि मेरी पैथर पोड़लि तो मीन त्यार पैथर पड़नि च।
वर्षा -हाँ तो वीं कुण बोल कि ठेलम ठेल नि कौर। म्यार पैथर नि पड़ा कौर।
शरद -अरे म्यार काम च लोगुं तैं गुलाबी ठंड दीण। जब तलक तू नि जैलि अर हेमंती में से दूर इ नि रैलि मि लोगुं तैं गुलाबी ठंड कनकै द्योलु ?वर्षा -मीन भगवान काका से यी त ब्वाल कि तेरी जरूरत ही नी च। मीन कथगा दैं वै काका तैं समझाई बि च त्वे तैं वीआरएस देकि घर बिठाळ दे पर भगवान काका बि मनमोहन सिंघौ तरां क्वी रिस्क ही नि लीन्दन अर हमेशा डिसिजन लीणम गयेळि करणा रौंदन। पता च भगवान काका क्य बुल्दन ?
शरद -क्या ?
वर्षा -बल बिचारी शरदि ! वींक क्वी एक्सक्लुजिविटी याने विशेषता ही नी च। काका बुलद बल रण द्या तैं शरदि तैं, क्या फरक पड़द शरद रा या नि रावु ।
शरद -हाँ त तू जांदी नि छे अर हेमंत छ्कच्याट करिक छकछक ऐ जांदीवर्षा -हिंहिं !
शरद -बिंडी नि हौंस हां। जा अब त्यार समय ड्यार जाणो ह्वे गे। फंड जा।
वर्षा -अरे कनकै जा ? पता च यीं दैं गर्मी डेढ़ मैना देर तलक भूलोक मा राइ।
शरद -त तीन बि डेढ़ मैना ज्यादा भूलोक मा रौण ?वर्षा -हाँ ! जब गर्मी डेढ़ मैना जादा रै सकदी तो मि नि रै सकद ?
शरद -ह्यां पण तू डेढ़ मैना जादा तक इख रैली तो मि लोगुं तैं गुलाबी ठंड कब द्योलु ? तब तलक त हेमंती अपण बरफ की चल्लि लेक ऐ जालि।
वर्षा -मी नि जाणदु! मीन त अबि डेढ़ मैना हौर रौण।
शरद -ह्यां पर मेरी अग्ल्यार कब आली ?वर्षा -मि तैं क्या पुछणि छे। ग्रीष्म दीदी तैं पूछ कि वा इथगा देर तलक भूलोक मा किलै राइ ?
शरद -ह्यां ! छ त वा दीदी च पर कबि बि हमर दगड़ दीदी तरां बर्ताव नि करदि। हर समय दुर्बासा तरां विकराल लाल काखड़ बणि रौंदि। बिंडी ब्वालो तो आग लगाणो तयार ह्वे जांद।
वर्षा -हाँ त वींक सिकैत कौर ना भगवान काकाम !
शरद -कौरी छे ना !वर्षा -त क्या ब्वाल भगवान काकान ?
शरद -बुलण क्या छौ। रघुकुल सदा चल रीति वळ हिसाब च। जन भारत मा चुनाव आयोग उच्छेदी नेताओं तैं प्रताड़ना देकि माफ़ करदु ना ! ऊनि भगवान काका बि हमेशा गरमी दीदी तैं मुँहजवानी प्रताड़ना देकि छोड़ दींद
वर्षा -पता च यांक क्या मतबल हूंद ?
शरद -क्या ?
वर्षा -पता च यांक क्या मतबल हूंद ?
शरद -क्या ?
वर्षा -कि न्याय बि कमजोरूं साथ नि दींदु अपितु बलवानुं साथ दींदु।
Copyright@ Bhishma Kukreti 21 /9/ 2014
*लेख में घटनाएँ , स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख की कथाएँ , चरित्र व्यंग्य रचने हेतु सर्वथा काल्पनिक है
*लेख में घटनाएँ , स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख की कथाएँ , चरित्र व्यंग्य रचने हेतु सर्वथा काल्पनिक है
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