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बजट दिखणो , पढ़णो , समजणो सौंग तरीका
अजाण वाणिज्य शास्त्री : भीष्म कुकरेती
म्यार बुबा जी मुंबई मा छा तो ऊंन बम्बै मा सुण्युं छौ कि बीकॉम कारो तो नौकरी कै बि ऑफिसम मिल जान्दि तो ऊंन रैबार दे छौ कि मि तैं बीकॉम याने बैचलर ऑफ कॉमर्स की डिग्री पैरिक बम्बै आण चयेंद। पर मि तैं तब बि वाणज्य शास्त्र याने कॉमर्स की हिंदी शब्दावली तो छोडो अंग्रेजी टर्म्स बि समज मा नि आंद छौ अर आज बि मि कमर्शियल टर्म्स का मामला मा भैंस छौं या गधा छौं या जयूँ बित्युं छौं। आज बि जब बि रेल बजट या वार्षिक बजट आंद त मि डिक्सनरी लेक बैठ जांद। पिछ्ला तीस सालुंम चार अंग्रेजी -हिंदी डिक्सनरी डिक्सनरी फ़टी गेन पर अबि बि बजट मेरी समज से भैर च। अब आप अप्रोपिरेसन (Appropriation) शब्द ही ले ल्यावो। लोकसभा मा बजट मंत्री अपण भाषण पढ़दन त मि केरीओवर अप्रोपिरेसन अर कन्टीन्युअस अप्रोपिरेसन का अर्थ समजणो कोशिस करदो तो तैबरि तलक बजट मंत्री इंक्युमब्रेन्स अर इंट्राश्युड्यूल पर पौंछि जांदन अर तैबरि इ लोकसभा मा रूलिंग बेंच से मेज थपथपाणो अर विरोधी बेंच बिटेन 'शेम शेम' की आवाज ऐ जान्दि तो मि बुद्धु जन बैठ जांदु।
फिर बुल्दन ना बल भयंकर बीमारी मा नीम हकीमुं तैं बि धनवन्तरी माने जांद उनि मि बजट समजणो बान टीवी चैनेलुं विश्लेषण दिखण मिसे जांदु। भौत सा पत्रकार बजट पर जब अपण राइ दींदन त मे सरीखा अजाण बि ऊंक विश्लेषण सुणिक खिजे जांद। क्वी बजट समजाणो बान मार्क्स की अटपटी परिभाषौं व्याख्या करण लग जांद तो क्वी डेविड कास की बात करद तो क्वी हू -जून -चांग का उद्धरण दींद। बकै इना -ऊना की बात करिक समजाणो जगा भरमाणो कोशिस करद। पत्रकारों बहस से आप बजट नि समझ सकदा उल्टां टीवी फुड़नै इच्छा ह्वै जांद। जब टीवी चैनेल वाळ कै अर्थशास्त्री या टैक्स सलाहकार तैं टिप्पणी दीणो पुछद अर विशेषज्ञ अपण बात बुल्दो तो मि या तुम तो छवाड़ो टीवी एकर बि अपण मुंड फुड़न लग जान्दि /जांद। इ विशेषज्ञ बजट नि समजान्दन पर आप तैं बजट शब्दावली से घृणा करणो सलाह दींदन।
अब बारी आदि राजनीतिक जोकरूं की तो राजनीतिक जोकरूं की बात इ क्या करण ?
पी चिदंबरम बजट की बुराई करणा छया तो क्वी पुछण वाळ नि छया कि पिछला दस सालम तुमन कौन सा तीर मारि देन कि तुम बजट पर कुछ बि बुलणा छाया। उनि सोनिया गांधीन बोलि बल बजट प्रो कॉर्परेट च। तो प्रश्न उठद कि अच्छा तो सन 1991 बिटेन कॉंग्रेस प्रो कॉर्परेट नि छे ?
कौमनष्टी कम्युनिष्टु की तो बात इ क्या बुलण ! पिछ्ला चालीस साल से आर्थिक दृष्टि से बंगाल का बुरा हाल करण पर लग्यां छया अर अब लोगुं तो बजट समजाण मा शरम बि नि लगदी ?
मायावती अर मुलायम तैं यादव अर दलितों अलावा कुछ दिखेंद नी च त ऊंक नुमाइंदौं से बजट विश्लेषण की उम्मीद कम इ रौंद।
भाजपा का प्रवक्ताऊँ सबसे बुरा हाल छयो। ऊंक तो बिंगण मा नि आयि कि बजट मा छ क्या च। तबि त हरेक प्रवक्ता अलग अलग भौण मा बजट परिभाषित करणा छया।
तो बजट समजणो मीम द्वीई विकल्प छयो - एक पिछ्ला तीस -चालीस सालुं मा भारत रत्न व्यंग्यचित्रकार आर के लक्ष्मण का बजट संबधी व्यंग्य चित्र देखूं या बजट का बारा मा कुछ नि सोचुँ कि जु हूणु च हूण द्यावो - किस किस को रोएँ , किस किस को हंसें , आराम बड़ी चीज है मुंह ढक के सोइये !
1/3/15 ,Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India
*लेख की घटनाएँ , स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल व्यंग्य रचने हेतु उपयोग किये गए हैं।
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