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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, March 9, 2015

हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर इतिहास संदर्भ में युधिष्ठिर

Yudhisthir in context History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur

                                    हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर   इतिहास संदर्भ में युधिष्ठिर
                                              History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  Part  --74


                                             हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर  
 इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -74  

                                                                   इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती  

                  महाभारत कथाओं के संदर्भ में ऐसा लगता है कि सहारनपुर हस्तिनापुर क्षेत्र में था।  गंगाद्वार (हरिद्वार)  व बिजनौर क तुलनात्मक दृष्टि से कौरव -पांडवों के मुकाबले आदिवासी क्षेत्र रहा होगा।  गंगा का माहत्म्य शुरू हो गया था और कनखल एक विख्यात आश्रम व विद्याध्ययन क्षेत्र बन चुका था। हरिद्वार के पास ही भृगुश्रृंगी पर भृगु आश्रम था।  हरिद्वार के समीप पौड़ी गढ़वाल के उदयपुर पट्टी में भृगुखाल स्थान को भृगुश्रृंगी माना जाता है।  भृगुखाल के कुछ दूरी पर एक गाँव है रिख्यड जो ऋषि अड्डा का अपभरंश माना जाता है। 
                                             युधिष्ठिर 
युधिष्ठिर पांडु पुत्रों में सबसे बड़े थे।  पांडु मृत्यु के बाद कुंती युधिष्ठिर सहित अन्य पुत्रों को हस्तिनापुर लायी थी। यद्यपि कुछ लोगों ने इन्हे पाण्डु पुत्र मैंने में संसय किया था पर ये पाण्डु पुत्र ही कहलाये।  इनकी शिक्षा दीक्षा भी धृतराष्ट्र पुत्र कौरवों के साथ द्रोणाचार्य के नेतृत्व में हुआ।  युधिस्ठिर को कुरु की राजगद्दी हेतु कुंवा बनाया गया किन्तु दुर्योधन की रणनीति तहत जैसे लक्षागृह में जलाने  का प्रयत्न तो कुंती को पांडुओं वनवास में छुपना पड़ा और इस समय वे गंगाद्वार के निकट किसी वन में छुपे जहां भीम ने  हिडम्ब राक्षस को मर उसकी भीं हिडंबना राक्षसी से विवाह किया. उनसे घटोतकच्छ पुत्र हुआ जो बड़ा वीर व दुस्साहसी था. 
फिर पांडव एकचक्रांनगरी (वर्तमान चकरौता ) गए।  वहां यमुना तट पर भीम ने  बक राक्षस का वध किया। 
महाभारत के आदिपर्व के वर्णन से लगता है कि पांडवों का यह वनप्रवास सहारनपुर, हरिद्वार, बिजनौर , गढ़वाल क्षेत्र में बीता था। पांडवों ने इस दौरान ब्राह्मण वेश में मत्स्य , त्रिगर्त , पंचाल व कीचक क्षेत्रों में भी प्रवास किया।  मत्स्य , त्रिगर्त , पंचाल व कीचकबिजनौर से दक्षिण पूर्व में थे। 


 ** संदर्भ - ---
वैदिक इंडेक्स
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड  इतिहास - भाग -२
राहुल -ऋग्वेदिक आर्य
मजूमदार , पुसलकर , वैदिक एज 
घोषाल , स्टडीज इन इंडियन हिस्ट्री ऐंड कल्चर 
आर के पुर्थि , द एपिक सिवलीजिसन 
Copyright@
 Bhishma Kukreti  Mumbai, India 8 /3/2015 
   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --75

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -
75
    
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