Kurukshetra Mahabharata Battle in context History Haridwar, Bijnor and Saharanpur
हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर इतिहास सब्दर्भ में कुरुक्षेत्र (महाभारत ) युद्ध
History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur Part --78
हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -78
इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
Vidur Kuti in context History Haridwar, Bijnor
बिजनौर इतिहास सब्दर्भ में विदुर कुटी , बिजनौर
कुरुक्षेत्र (महाभारत ) युद्ध
कौरवों व पांडवों के आपसी कलह का अंत महासमर कुरुक्षेत्र में हुआ जिसमे शायद लाखों मनुष्यों को हत होना पड़ा था। यह युद्ध अट्ठारह दिन चला और भारत के प्रत्येक राजा को या तो पांडवों का साथ देना पड़ा या कौरवों का।
** संदर्भ - ---
वैदिक इंडेक्स
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड इतिहास - भाग -२
राहुल -ऋग्वेदिक आर्य
मजूमदार , पुसलकर , वैदिक एज
Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India 14 /3/2015
History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur to be continued Part --79
हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास to be continued -भाग -79
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History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur Part --78
हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -78
महाभारत में वर्णन है कि कौरव -पांडवों के चचा महात्मा विदुर दोनों पक्षों के कलह कारण कुछ दिन अपनी कुटी में अलग रहे। बिजनौर के नजदीक विदुर कुटी या विदुर आश्रम को कहा जाता है कि महात्मा विदुर यहां रहते थे।
पांचाल नर्शों ने पांडवों की सहायता की थी। क्या इसका अर्थ लगाना चाहिए कि बिजनौर के सैनिकों ने पांडवों का साथ दिया था ? अथवा सहारनपुर व बिजनौर कौरवों याने कुरु वंश के अधीन थे ?
हरिद्वार से अर्जुन पुत्र इरवान ने कुरुक्षेत्र में भाग लिया था और युद्ध में पांडवों का साथ देते शहीद हुआ था।
उत्तराखंड भाभर पुत्र घटोत्कच्छ ने कुरुक्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी कि महाभारत के एक पर्व का नाम घटोतकच्छ पर्व हैं (अध्याय ) .
उत्तराखंड के कुलिंद नरेश ने पांवों का साथ दिया था।
युधिस्ठिर के गंगा किनारे किनारे यात्रा से अनुमान लगाया जा सकता है कि गंगा किनारे ढाँगगढ़ (झैड़ , तल्ला ढांगू , पौड़ी गढ़वाल , रिसिकेश से 21 मील दूर ) के राजा ने पांडवों का साथ दिया होगा।
बहुत से उत्तराखंडी आयुधजीवियों ने कौरवों का भी साथ दिया था।
गंगाद्वार में तर्पण
महाभारत युद्ध के बाद गांधारी व कुंती ने अपने मृत पुत्रों व संबंधियों को देखने की इच्छा जताई। मुनि व्यास धृतराष्ट्र, गांधारी , कुंती , मृत बीरों की विधवाओं को गंगाद्वार ले गए और वहां सबने मृत बीरों . विधवाएं गंगा जी में गोता लगाकर स्वर्ग सिधार गयीं। धृतराष्ट्र , गांधारी , कुंती आदि गंगाद्वार ( हरिद्वार ) के वनों में आश्रम बनाकर रहने लगे। हरिद्वार के वनों ई आग में सभी जल गए व युधिष्ठिर ने उनकी अस्थियों का विसर्जन व तर्पण गंगाद्वार में किया(हरिद्वार ) में किया।
श्रीकृष्ण का उत्तराखंड आदि भ्रमण
श्रीकृष्ण पांडवों से वनवास में मिलने वनों में आते थे अतः हरिद्वार , सहारनपुर आदि क्षेत्र में भी आये होंगे। संतान प्राप्ति हेतु श्रीकृष्ण उपमन्यु वन भी आये थे। श्रीकृष्ण कालसी भी गए थे याने रास्ते ही कालसी गए होंगे।
** संदर्भ - ---
वैदिक इंडेक्स
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड इतिहास - भाग -२
राहुल -ऋग्वेदिक आर्य
मजूमदार , पुसलकर , वैदिक एज
घोषाल , स्टडीज इन इंडियन हिस्ट्री ऐंड कल्चर
आर के पुर्थि , द एपिक सिवलीजिसन Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India 14 /3/2015
History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur to be continued Part --79
हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास to be continued -भाग -79
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