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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, March 25, 2015

हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर इतिहास संदर्भ में विभिन्न सामाजिक मान्यताएं

Social Norms in Mhabharata Kulind Kingdom in contexHistory of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  

                         
                
                       हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर   इतिहास संदर्भ में विभिन्न सामाजिक मान्यताएं
                             History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  Part  -- 
85

                                  

                     हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -      85                


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती  


                             संतान प्राप्ति 
महाभारत में संतान प्राप्ति को मनुष्य का प्रमुख कर्तव्य मन गया। 
पुत्र प्राप्ति को महत्व दिया गया है। 
निसंतान अथवा निपुत्र होने पर अपनी बहिन या पुत्री के पुत्र को गोद  लेना अथवा ने के पुत्र को गॉड लेने की प्रथा थी। दूसरे महापुरुष (ब्राह्मण ) से अपनी पत्नी से संसर्ग करवाकर भी संतान प्राप्ति की जाती थी। कुंती , आदि ने नियोग द्वारा दूसरे पुरुष से संतान प्राप्ति की  थी और नाम पति का हो जाता था। 
संतानप्राप्ति के लिए तप किया जाता था। 
                 संस्कार पूजन 
विभिन्न जातिकर्म संस्कारों का वर्णन महाभारत में मिलता है।  मनुस्मृति अथवा ऋषि भार्गव स्मृति (शुक्रनीति ) के उल्लेख से साबित होता है की ४४ नही तो १६ जाति कर्म संस्कार महत्वपूर्ण थे।  अर्जुन के जंदिवस मनाने का वणर्न भी यही संदेश देता है।  
                  परिवार 
महाभारत में उत्तराखंड से संबंध में एकचक्र  ब्राह्मण परिवार का जिक्र है जिसमे पती , पत्नी , पुत्र , पुत्री का वर्णन है। 
हिडंबा अपने भाई  रहते भी स्वछंद गामिनी थी। 
                      दाह संस्कार 
पाण्डु , धृतराष्ट्र , गांधारी , विदुर आदि के प्रेत संस्कार का वर्णन है और दाह संस्कार हेतु गंगा का महत्व साबित होता है। 
सती प्रथा का जन्म हो चुका था
                परिवार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता 

गंगाद्वार की नागपुत्री उलिपि भी स्वछंद थी।  अतः कहा जा सकता है कि परिवार का महत्व था किन्तु व्यक्तिगत स्वतंत्रता का महत्व कम नही हुआ था। 
शकुंतला , उलिपि , हिडंबा की कथाएँ दिशा देती हैं कि स्त्रियां अपने मायके में अपना अलग परिवार भी बसाती थीं।
              गृहणी 
 गृहणी का समाज में अधिक उत्तरदायित्व था। यज्ञ हेतु पत्नी आवश्यक होती थी। पत्नी को अर्धांगनी का दर्जा हासिल था। नारीजीवन को सदाव्रत से जोड़ा जाता था व नारी को उत्कृष्ट समाज निर्माता माना जाता था। पुत्र व पुत्री को तकरीबन एक ही अधिकार प्राप्त थे।
                  शिष्टाचार 
शिष्टाचार का अत्यंत महत्व था। गुरुजन , बड़े , बूढ़ों , ज्ञानियों को आदर देना आवश्यक था। ज्ञानियों , बुजर्गों की सेवा अत्यावश्यक था। 
                        स्वाध्याय 
द्विजों /ब्राह्मणो के लिए स्वाध्याय जरूरी कर्म था।
                 शरणागत रक्षा 
शरणागत की रक्षा एक सामाजिक कर्तव्य  माना जाता था। 
              अतिथि सत्कार 
अतिथि को देव तुल्य अधिकार माना जाता था।
              समाज उत्सव 
समाज उत्सव  आम बात थी और लगातार होते रहते थे।  समाज उत्सवमें नाच गान , मनोरंजन , खान -पान , जुआ , खेल आदि साधारण बात थी।
                 शिकार 
शिकार प्रथा आवश्यक थी।
                     दास प्रथा 
दास क्रय -विक्रय सामाजिक नेति के भाग थे।
                 चार वर्ण 
श्रम  आबंटन व्यवस्था आगे बढ़ कर चार वर्णो में प्रवेश कर चुका था।  मुख्य वर्ण - ब्राह्मण , राजपूत , वैस्य व शूद्र थे किन्तु ने वर्णो जैसे म्लेच्छों , यवनों का भी वर्णन महाभारत  में है।
               विद्याध्यन 
विद्याधयंन हेतु आश्रम व व्यक्तिगत अध्यापकों (आज के ट्युसन जैसे ) प्रबंध थे।  विद्यानुसार ब्राह्मणो का उप वर्ग विभाजन होता था। विद्यापीठों में छात्र जीवन अनुशासन व सात्विक होता था। 
             जीवन आश्रम 
जीवन को चार भागों में बांटा गया था 
ब्रह्मचर्य आश्रम 
गृहस्थाश्रम 
वानप्रस्थ आश्रम 
ताप सवृति (वैराग्य )
सन्यास 
योगी जीवन आदि 
                      अन्य सामजिक संस्थाएं व विश्वास आदि 
धर्म निष्ठा 
सत्य निष्ठां 
पाप से भय 
पितरों को श्राद्ध 
पुरहिति पर विश्वास 
ज्योतिष पर विश्वास 
 शकुन व अपशकुन पर विश्वास 
शुद्ध वातवरण पर विश्वास 
दान महिमा पर विश्वास 
भिक्षकों , कमजोर वर्ग, शिक्सार्थियों , विद्यालयों  हेतु समाज में व्यवस्था 
                    मनोविज्ञान 
गीत अध्याय से मालूम होता है कि मनोविज्ञान अपनी युवावस्था से उच्चावस्था की और अग्रसर था।  औटो -सजेसन (Autosuggestion ) अपनी चरमवस्था  में था। 
           
                   प्रसाशन 


कुलिंद जनपद का पांडवों से अच्छे संबंध थे।
          
             सैन्यशक्ति 
सुबाहु की सैन्यशक्ति प्रबल थी। 
हठी , घोड़े आदि का प्रयोग युद्ध में होता था।  रथ बिजनौर , हरिद्वार में चलते थे। 
सैनिकों का बल मल्ल्युद्ध , धनुर्युद्ध आदि में जाता था। 
सेना दलों (बटालियन ) में बांटी जाती थी। 
साम , दाम , दंड , भेद, व उपेक्षा राजकारणी का मुख्य अंग था। 

 ** संदर्भ - ---
वैदिक इंडेक्स
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड  इतिहास - भाग -२
राहुल -ऋग्वेदिक आर्य
मजूमदार , पुसलकर , वैदिक एज 
घोषाल , स्टडीज इन इंडियन हिस्ट्री ऐंड कल्चर 
आर के पुर्थि , द एपिक सिवलीजिसन 
Copyright@
 Bhishma Kukreti  Mumbai, India 24 /3/2015 
   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --86

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -
86


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