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नेताओं मा संवेदनशीलता किलै नि मिल्दि ?
चबोड़्या , चखन्यौर्या , हंसोड्या - भीष्म कुकरेती
उत्तराखंड का एक विधायक जी तुंगनाथ मंदिर गेन अर भौत देर तक तुंगनाथ जीक प्रार्थना करणा रैन। अंत मा भगवान तुंगनाथ प्रसन्न ह्वेन।
भगवान तुंगनाथ ( विधायक जी कुण ) - तेरी प्रार्थना से मि प्रसन्न छौं। बोल! एक वर मांग !
विधायक -जी ! मि तै सब पॉलिटिकल नेता चिरडान्दन कि बीस सालुं से मि विधायक छौ अर आज तक मंत्री नि बण सौकुं।
भगवन तुंगनाथ जी - यु त तेरी स्वार्थी इच्छा च। मि तै भौत सा हौर दिवतौं जन कि विश्वकर्मा आदि की आवश्यकता बि होलि अर इनमा देर बि ह्वे सकद। तू इन वर मांग जाँसे तेरी इ ना मेरी बि छविवृद्धि हो।
विधायक जीन भौत देर तक विचार कार अर ब्वाल -जी , मि पिछ्ला कथगा इ सालुं से विधायक छौं अर मि जनता कि नि सुणदु। जनता से उदासीन रौंद। जब जनता तैं मेरी भारी जरूरत हूंद तो मि दिल्ली या देहरादून मा हुन्द। मि तै वर द्यावो कि मि संवेदनशील ह्वे जौं अर जनता की सबि समस्याऊं हल कर सकुं।अर जब बि जनता तैं मेरि जरूरत पोड़ मि वूंक बीच मा रौं।
भगवान तुंगनाथ जीन सोचिक ब्वाल - अच्छा तो इन बता कि मंत्री बणणो कुण कु मंत्रालय चयाणु च?
भगवान तुंगनाथ ( स्वतः )- नेताओं तै संवेदनशील बणाण ? सच्ची बात या च कि म्यार बासक बात बि नी च।
27 /3/15 ,Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India
*लेख की घटनाएँ , स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल व्यंग्य रचने हेतु उपयोग किये गए हैं।
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