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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, March 9, 2015

सांप की कथा -एकालाप, नाटक

सांप की कथा 
                                 लिओनिड ऐड्रेयेव 
                                (रुसी एकालाप एकाँकी ) 
                          गढ़वाली अनुवाद ::: भीष्म कुकरेती 
[(एक स्त्री ताल माँ हिलणि -डुलणि च। स्त्रीक आँख बुज्याँ छन , वींतैं कुछ बि होश नी च जन बुल्यां व सम्मोहित ह्वेक अपण शरीर हिलाणी ह्वा । वा भौत इ सुंदर च , आकर्षक च )
(कुछ क्षणों बाद वींक आँख खुल्दन , वींक मुख पर अर्ध मुस्कान आंद।  वा अपण एक अंगुळि ऊँठ पर धरदी )]
                                                             स्त्री 
             श्श , श्श , श्श।  म्यार नजदीक आवो , भौत नजदीक अर म्यार आंख्युं मा झांको। 
तुम जाणदा छंवां कि म्यार एक आकर्षक व्यक्तित्व च । कोमल , संवेदनशील अर चेतनापूर्ण।  मि अपण समय से   अधिक समझदार छौ। म्यार शालीन शरीर मा इन लोच छौ कि मि अपण शरीर तैं आकर्षक रूप से मूड़ी लींद छौ। तुम तैं म्यार नाच दिखण मा आनंद आलु ।  आलु कि ना ? क्या नाच दिखौं ? क्या क्या एक गोल डीलु जन घ्यारा  मा मुडि जौं ? क्या मि अपण द्रुतगामी चाल दिखौं कि हवा बि शरमै जाव। क्या मि अपण आलिंगन से तुमर स्वागत करूँ ?
           श्श , श्श , श्श।  म्यार नजदीक आवो , भौत नजदीक अर म्यार आंख्युं मा झांको।
अरे म्यार आँखों से दूर किलै दिखणा छंवां ? क्या तुमतैं  मेरी तड़फ भरीं , सीधी अर छिददी नजर नि पसंद नी आणि च ? हाँ हाँ म्यार सर जरा भारी च तो मि धीरे धीरे हिलणु छौं। म्यार सर जरा भारी च तो बि  मि हिल्दु छौं तो मेरी नजर सीधी ह्वे वे जांद। नजीक आवो। मि तेरी गर्मी महसूस करण चांदु। हाँ हाँ ठीक च तु अपण  अंगळयुं से म्यार होशियार माथा पर जोरै  मार मार अर किनारा पर हाथ फिरैल त जु गड्ढा च उखपर ज्ञान भर्युं च अर संध्याकाल  का फूलूं ओस भरीं च। जब म्यार हिलण से हवा हलकदि त उख एक जाळ बणि जांद जैमा आकर्षक सपना भर्यां छन, ध्वनिहीन चाल कु सम्मोहन ! लहराती अर्धस्वर की ध्वनिहीनता ! मि मौन छौं अर हिलोरे लीणु छौं। मि अग्नै दिखणु छौं अर हिलोरे मारणु छौं। मि अपण गर्दन मा कौन सा एक अजीब सि भार लेक बैठ्युं होलु ?
मि त्वे से प्रेम करदु । मै तुमसे प्रेम करती हूँ  I Love You I 
मि हमेशा  एक आकर्षक व्यक्तित्व वळि छौ, अर मि चांदु छौ कि मि तैं संवेदना , कोमलता अर सच्ची तरह से प्यार करे जावु। नजदीक आ। आ । म्यार दांत दिखणि छे ? म्यार  मोहक , सफेद , छुट छुट दांत ? जाणदि छे ना , जब मि तेरी भूकी पींद छौ याने किस करदो छौ त 
तबि मि यूंसे काटदु छौ कट कट। ना ना डा लगाणो ना पर बस कुतरदु छौ कुतरदु। मि तब तक कटणु रौंद छौ जब तक चमकीली रक्त बूंद नि ऐ जांद छौ , जब तक एक किराट  नि आंद छौ जन बुल्या घंटी क गुदगुदीदार आवाज। यु क्षण बड़ो आनंददायक हूंद छौ - हाँ अन्यथा नि ले हाँ।  यदि ऊँतै म्यार काटण पसंद नि छौ जौंक मि भुक्की पींद छौ , जौं तैं मि काटदु छौ तो उ लोग बार बार मीम कटवाणो किलै आंद ? आंद क्या ? अर वो वापस आंद छा। वु एक अनजान सि  शक्ति से बशीभूत ह्वैक वापस आंद छा  जन ज्वार चन्द्रमा कु आकर्षण से खिंचैक आंदन। वु अफु पर काबू नि कर सकद छा।  अर मि भौत बार ऊंकी भुक्कि पींद छौ  अर हर बार रक्तिम ! अर आज ! आज ! मि बस एकि दैं भुक्कि पे सकुद - कथगा बड़ी व्यथा च - केवल एक बार !  केवल एकाकुण बस एक भुक्कि , प्रेमी हृदय, संवेदनशील आत्माओं का वास्ता , प्रेम आकांक्षाओं का अतृप्त प्रेमियों का वास्ता अर प्रेम मिलन का वास्ता एक भुक्कि तो भौत इ कम च।  पर यू मि छौं, एक दुख्यारी जु भुक्कि पींदी पर केवल एक बार , अर म्यार प्रेम का मंगनेर जाणदु च कि म्यार प्रेम - संवेदनशील , वैवाहिक किश का बाद हैंक प्रेम ना। म्यार प्रेम अभूतपूर्व च नैसर्गिक च।  ना भै ना मि त्वे तैं कतै धोका नि द्योलु। ओहो ! रगबगी ना जब मेरी कहानी खतम ह्वे जाली तो अवश्य ही त्वे तैं किस करुल,  तेरी बि भुक्कि प्योलु।
मि त्वे से प्रेम करदु । मै तुमसे प्रेम करती हूँ  I Love You I 
 म्यार आंख्युं मा देख। क्या मेरी आँखि भव्य अर अत्यार्षक नि छन ? क्या कबि तीन इथगा दृढ अर सीधी दृष्टि देख च ? या स्थिर दृष्टि बरछी समान त्यार हृदय तैं चीर दींदि। मि समिण दिखणु छौ अर हलकणु छौं ,मेरी दृष्टि आकर्षित करदि , तेरी डौर-भै  , त्यार प्रेम , तेरी थकावट , तेरी समर्पित तृष्णा सब मि अपणी हरी  आंख्युं मा जमा कैरि दींदु I और नजदीक आ।  आ।  मि अबि रानी छौं अर तू मेरी सुंदरता तैं दिखण बगैर  नि रै सकदी पर एक समय बि छौ जब -आह कथगा आश्चर्यजनक समय ! वै समय का विचार ही घोर यातना दे दींदन -अस्पष्ट , यातनादायी अर आश्चर्यजनक समय ! क्वी बि मै से प्रेम नि करदु छौ।  क्वी बि मि तैं नि पुजद   छौ।  म्यार निर्दयतापूर्बक उत्पीड़न ह्वे, कीचड़ माँ कुचेल्यों ग्यों , मेरी हंसी उड़ाए गे- ये मेरी ब्वे ! उ समय आश्चर्यजनक अर पीड़ादायक छौ। भौत सा मादे एक !  भौत सा मादे एक ! 
मीन ब्वाल कि नजदीक आ , ब्वाल च कि ना ?
उ में से प्रेम किलै नि करदा छा ? क्या मि तब आज जन आकर्षक जीव  नि छौ ? बस तब मीमा कपट , धूर्तता अर दुर्भावना नि छे , मि तब सौम्य , सरल अर सुहृदयी छौ अर तब आश्चर्यचकित करण वळु नाच नाचदु छौ।  पर ऊंन मि तैं यातना  दे , त्रास दे , उन मि तैं आग मा जळै I ऊँ भारी भरकम जंगली जानवरूं , घटिया जानवरूंन मितै पतेड़ , मींड, उंक भारन मि तैं तौळ दबै   . .. बड़ा दातुंन अर बड़ा बड़ा खूनी जबड़ों -जिबाड़न मि तैं चीर अर ये शक्तिहीन दुखदायी  समय मा मीन बळु काट, माटु घूळ - मि निराशा मा बस मोरणि वाळ छौ I 
 मि हर रोज दबण से अधमरु ह्वे जांद छौ। हर दिन मि हताश ह्वेक मरण लैक ह्वे जांद छौ। आह ! क्या त्रासदी को समय छौ।  त्वे तैं मी पर दया नि आदि ? उ जंगळ   वै समौ तै याद नि करदु पर मि तैं त याद आंद च।  म्यार नजदीक आ , मि तैं सुविधा दे , आनंद दे , मि - घायल , दुखी , प्यारा जू सुंदरता से नाच बि सकद I
 
मि त्वे से प्रेम करदु । मै तुमसे प्रेम करती हूँ  I Love You I            

तू मीतै समजदी छे - है ना ? तू यखुली छे ? मि अपण रक्षा कनकै करदु छौ ? मीम तब यि छुट छुट शानदार सफेद दांत छा जु केवल भुकि पीणो का वास्ता इ छया। तो मि इथगा बड़ा बड़ा  जानवरूं से कनै रक्षा करदु छौ ? उ त अब मि अपण गौळ मा इथगा भारी मुंड बुकणु छौ, मेरी नजर सीधी च अर मेरी नजर अब रौबीली च, पर तब म्यार मुंड भौत हळकु छौ मेरी आँखि गिंजगिंजी।  तब मीम क्वी बिष नि छौ। अब म्यार मुंड इथगा भारी च कि येतैं सीधो नि रख सकद I मि अपण शरीर देखि देखि बड़ी  हों अर म्यार कपाळ मा द्वी गारि छन जु मेरि आँखि छन। शायद चमकदी गारी मूल्यवान छन पर कोमल आंख्युं जगा यूँ  आंख्युं तैं अळगैक लिजाण कठण च किलैकि यी म्यार मस्तिष्क दबाणा रौंदन। म्यार मुण्डकण भौत कठिन च ! मि अग्नै दिखणु रौंद अर हलकणु रौंद। मि त्वै तैं हौरू धुंध मा दिखणु छौ , तू भौत दूर छे। नजदीक आ - आ अर मेरी अंग्वाळ बौटी ले,  आ गले लग जा।  तू भौत तागतवर छे - है ना ? आ अपण तागत दिखा। मि कम्पणु छौं , थरथराणु छौं। 
   पता च ना मि दुःख मा बि बिगरैलि छौं। मि प्यार का कारण इ कमजोर छौं। मेरी पुतळी देख; मि यीं तैं सिकड़ुल अर चौड़ करुल , अर एक नैसर्गिक चमक द्योलु -रात मा टिमटिमांदा गैणा, हरेक कीमती पथरों याने रंगीन पथरों जन हीरा , पन्ना की हरित कांति पुखराज को पीली रंगीनियाँ , मणी टर्न की लालिमा वळ विनोद च।  मेरी आंख्युं मा झाँक।  मी राणि छौँ-  मि अफुं तैं ताज पैराणु छौं - जु चमकणु च , जळणु च , आभायित हूणु च - जु तेरी स्वतंत्रता , जीवन छें ल्याल -अर वा च बिष। यु बिष की एक बून्द I  

इन कन ह्वै ?मि नि बोलि सकुद। म्यार त्यार प्रति क्वी बुरु भाव नी च , कै हौर दगड़ बि नी च। भौतुं मादे एक !
मि ज़िंदा रौं अर कष्ट भुगणु रौं। मि चुप रौं। मि दिन काटणु रौं। जब बि छुप सकुद छौ मि लुकि जांद छौ ; मि जल्दी जल्दी से रींगिक भजदु छौ। पर ऊंन निर्दयता से मि तैं दबाइ अर रवै बि नि सकुद छौ।  ऊंन मि तैं दबाइ ! मि सुंदर आंसू बगांद छौ -मि रोई नि सकुद छौ; अर म्यार नाच गतिवान हूंद गे अर अधिक आकर्षक हूंद गे । अन्धकार मा , अकेला मा , मि अपण हृदय मा दुःखका नाच नचदु छौ , वु म्यार नाच का तिरष्कार करदा छा अर मौक़ा मिलण पर मार सकद छा । अचाणचक म्यार मुंड बड़द गे अर भारि हूंद गे - आचर्यजनक च ना ! म्यार मुंड भारी हूंद गे ; छुट अर सुंदर, उनि जन होशियार अर सुंदर ; यु भौति भारी हूंद गे , मीन अपण गौळ धरती तरफ झुकाइ अर अपण कोमल शरीर तैं त्रास दे ।   अब त आदत पड़ि गे; पैल पैल त परेशानी ह्वे अर बड़ो दुखदायी छौ । मि तैं लग मि मरण वाळ छौं। पर मि नि मोर।   बचि ग्यों। 
अर तब अचाणचक ....   अब म्यार न्याड़ आ अब  … मेरी आंख्युं मा झाँक।  शश श्श ! श्श!, श्श ! 
अर अचाणचक म्यार शरीर भारी ह्वे गे - यु कडकडु अर अजीब ह्वे गे -इख तक कि मी बि डौर ग्यों। मि अफु से इ डर गे छौ ! मि इना ऊना मुड़न अर झंकण चाणु छौ पर मे से नि ह्वे I मि खाली अग्वाड़ी इ देख सकुद छौ जन कि आज -मि आंख्युं से असर कर सकुद छौ ; मि जड़वत ह्वे गयों - म्यार आंखुं तैं देखिक हौर जन बि जड़वत पत्थर जन ह्वे जांदन।  म्यार आखुं मा त देख !

मि त्वे से प्रेम करदु। मेरी कथा पर नि हौंस।  यदि तू हंसली तो मि नराज ह्वे जौलु।  तू हँसलि त मीन त्यार नि हूण। मि अपणि  जिकुड़ी हृदय फ़ाड़िक दिखाण चाणु  छौं, म्यार संवेदशील हृदय, मि अपण सर्वस्व दिखाण चाणु छौं , अपर अस्तित्व बि ! त्वै तैं मि अपण दुःखभोग समजाण चाणु छौं। मी एक युगलबंदी करण चाणु छौं , परिपूर्ण युगल   ... पर यु संभव नी च।  किन्तु मेरी सब कोशिस बेकार छन - मि इखुलि छौं।  मीन हमेशा इखुलि य रौण। मेरी पैलि अर आखरी भुक्कि  तरंगित, लहरांदु  दुःख च, रंज च , शोक च  - अर जैसे मि प्रेम करदु उ इखम नी च अर मीन फिर से अपण प्रेम खुजण , अर यदि मि तैं परिचित स्वर सुण्याल त फिर से मीन अपण कथा शुरू से लगाण - म्यार हृदय ये तैं न सहन नि कर सकद, अर बिष मि तैं उत्पीड़ित करद अर म्यार मुंड हौर बि गर्रु ह्वे जांद। क्या मि हताशा मा बि सुंदर नि छौं ? नजदीक आ , नेड़ आ। 
मि तेरी भुक्कि लीणो बिलकुल तयार छौं।
एक दैं मि जंगळम नयाणु छौ - मि तैं साफ़ सफै पसंद च - यु एक सभ्य जन्म कु चिन्ह च अर मी बार बार नयेंदुं।  पाणि मा नयाँद अर नाचद दैं मीन अपण प्रतिछाया द्याख अर अपण अप्रतिम सुंदरता पर मि मोहित ह्वे ग्यों। मि सुंदर चीजुं शौक़ीन छौं  ! अचाणचक मीन अपण कपाळ मा हौर जन्मजाति आभूषणो दगड एक नयो चिन्ह द्याख  … एक आशचर्यजन्य चिन्ह  … शायद ये इ चिन्ह से मुंड गर्रु ह्वे , चेतनाशून्य दृष्टि ह्वे अर गिछ पुटुक मीठो सवाद। म्यर कपाळ मा एक चौबट्या, गहरा रंगौ चिन्ह च -बिलकुल इखम -देख। नजीक आ। क्या यु आश्चर्यजनक नी च? वै समय मि नि समज; मि तैं भलु लग , मीन स्वाच यु सुंदर च।  पर वैदिन इ , वै दर्दनाक दिन ही , जैदिन चौबट्या चिन्ह आयि , म्यार पैली भुक्कि अंतिम बण गे , मेरी भुक्कि प्राणघातक ह्वे गे
मि अबि बि हलाहल तैं चख सकुद
। मि त्वैकुण तयार करणु छौं।  मि तैं बेशकीमती रत्न आभूषण पसंद छया पर ये म्यार विष से अधिक बेशकीमती क्या ह्वे सकुद। एक अणु बरोबर बूंद। तीन कबि द्याख च ? कबि ना , कबि  ना। पर तू दिखलि !   पता च एक छुटि सि बून्द बणाणो बान कथगा दुःख भुगण पड़द , कथगा गुस्सा पैदा करण पोड़द , कथगा शक्ति नष्ट करण पोड़द , तब जैक एक अणु बरोबर विष की बूँद बणद   ! मि राणी छौं ! यीं छुटि सि विष की बूंद का दगड़  मि मृत्यु बि रखदु अर म्यार राज्य सीमाहीन च ,इख तक कि दुःख बि सीमाहीन च ,इख तक कि मृत्यु बि सीमाहीन च। मि राणी छौं ! मेरी दृष्टि निष्ठुर च , निर्दयी च निर्मम च ! म्यार नाच अलौकिक च !  मि बिगरैलि छौं ! कईयों मादे , भौतुं मादे !
आ नजीक आ , और नजीक आ , मेरी कथा समाप्त नि ह्वे। 
वैदिन वै शापित जंगळ मा मि धीमी गति से चौल , हरो राज्य मा।  मि राणी छौ अर राणी जन  नजाकत से मि दैं तरफ झुक , बैं तरफ झुक । अर वु भागि गेन ! राणी जन मि अपण प्रजाक समिण झुकु - अर वु विचित्र लोग भाजि गेन। वु किलै भागिन ? मेरी आंख्युं मा झांक। क्या त्वै तैं उख डरौण्या चीज दिख्ये -एक भयंकर चमक अर मांश।  क्या त्वे तै डॉ लगणु च ? क्या म्यार ताज की किरण से तयार आँख बुजेणा छन ? क्या तू जड़वत हूणि छे ? क्या तू कखि ख्वै गे ? मि अब अपण आखरी नाच नाचलु -तौळ नि गिर। मि कुंडली मा बैठलु , मि कंचुळ तेजी से चलौलु अर मि अपण कडकड़ो शरीर से त्वे तैं पकड़लु -एक सौम्य पर मजबूत अंग्वाळ। ले मि ऐ ग्यों ! मेरी केवल एकि भुक्कि स्वीकार कौर , वैवाहिक भुक्कि - प्रताड़ित जीवों कुण या  भुक्कि सबसे शोकप्रद भुक्कि च। भौत सि भुक्क्युं मादे एक भुक्कि ! भौत सि भुक्क्युं मादे एक भुक्कि ! 

झुक !
मि ते से प्रेम करदु !
अब मर ! 
मर !
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