( हत्या, रहस्य , रोमांचक लघु कथामाला - 2 )
कथा संकलन - भीष्म कुकरेती
" ममी ! मि तैं छोड़िक न जा ! मि तैं इखुलि डौर लगद। नि जा। " मि जोर जोर कैक रुणु छौ।
पुलिस वळन ढाढ़स दिलैक ब्वाल ," बेबी ! ममी भौत दूर चंदा मामा का पास चल गे। अब तू अपण मौसि भुंदराक दगड़ रैलि।
मि खल्याण बिटेन रुंद रुंद चौकक तरफ आणु छौ। पुलिस वाळुन मांक शव क्वीलौं (कोयले ) बीच एक लम्बो काठक सन्दूकम बंद कार अर शव लेकि चल गेन।
मि पुरण खल्याणम खड़ु छौ। यांदुंक छोया म्यार मन मा बगणु छौ। मीन कबि बि कल्पना नि करि छे कि मि कबि उखम खड़ु होलु जखम मेरि मांक हत्या ह्वे छे।
सात साल कम नि हूंद। चचिक रैबार पर रैबार आणा रौंद छ अर मि आण से घबराँद छौ। इखि त मांक हत्या …। चचिन मि तैं द्याख अर दौड़िक आयि , मि तैं भिट्याँद , भुकि पींद बुलण मिस्याई , " ये लौड़ी ! मेरी रिंगोड़ी कथगा बड़ी ह्वे गे ?" चचि प्यार से मि तैं रिंगोड़ी बुल्दी छे।
चचिन अगनै ब्वाल "रिंगोड़ी ! तू अब अठारा की ह्वे गे। हु बहु पवितरा अन्वार च। " पवितरा मेरी ब्वेक नाम छौ।
मीन ब्वाल ," हाँ "
चचिन ब्वाल , तेरी याद भौत आदि छे पर तू आदि नि छे। चल अब ऐ गे त खूब याद बिसरलु मि। अच्छा जा मुख हाथ ध्वे ले। रस्ता का धूळ , थकान। "
मीन पूछ , " भै बैणि ?"
" बस आणा ह्वाल " चचिन ब्वाल
मि कमरा मा ग्यों। सात सालुँमा कुछ नि बदल। हाँ जथगा चैन चचिक मतबल अपण ड्यार आणम आणु छौ बेचैनी बि उथगा इ छे। मां की हत्या !
" ये रीमा ! रीमा मेरी प्यारी मौसेरी बैणि ! " मेरी चचेरी बैणि कुंतला आयि अर वीन में पर जोरकी अंग्वाळ मार।
समिण पर घनानंद दादा खड़ु छौ। छुट मा बि दादा मि तैं आत्मीय ढाढस दींदु छौ अर आज बि वै तैं देखिक मि तैं पता नि कखन अजीब से तागत ऐ कि जन बुल्यां म्यर मन मा ब्वेक हत्याक गरु भार खतम इ ह्वे गे ह्वाल धौं ! म्यार मन सुविधाजनक ह्वे गे।
घन्ना दादान हाथ अग्वाड़ी कार अर ब्वाल ," अरे छुटि रिंगवाड़ी ! अब ढाँट रीमा ह्वे गे ! मि दादाक अंग्वाळ पुटुक धंसी ग्यों।
घन्ना दादन पूछ ," रिन्गोड़ी ! सॉरी रीमा ! बडा जी कन छन ?
" बस उनि ! छुट चाचा जी ही दुकान संबाळदन। बुबा जी तो धार्मिक अर सामाजिक कामुं मा दुकान से अधिक व्यस्त रौंदन।
" सुभद्राक क्या हाल छन ? " मीन पूछ
घन्ना दादाक जबाब छौ ," उन्नी वींतैं पागलपन का दौंरा पड़दन। जब बिटेन बोडिक हत्या ह्वे त अचानक कबि कबि बुल्दी कि बोडि वींक दगड बात करदि रौंदि। डाक्टरक बुलण च एक त अर्ध पागल की हालत अर फिर तेरि माँकी मौत से अधिक फरक पड़ गे। "
मि तैं मंज्यूळक कमरा मिल्युं छौ।
मि तैं आण नि चयेणु छौ। माँकी हत्या की तरोताजा याद से मि बिचलित हूणु छौ।
दुसर दिन नास्ता बाद कुंतला आई अर बुलण लग बल मि अर दादा बजार जाणो छंवां। बस द्वैक घंटा मा ऐ जौंला।
मीन कुंतला तैं पूछ कि मांक हत्यारा कु कुछ पता बि चौल ? कुंतलाक जबाब छौ बल पटवारी अर पुलिस अबि बि खोज मा रौंदी। पटवारी साल भर मा एकाद दैं पूछताछौ बान ऐ जांद। पर ....
मि अपण बिस्तर मा पोड़िक याद करणु छौ कि माँ तैं बांधिक तैं बांधिक खचाक खचाक से मारे गे छै अर अबि तक खूनी नि पकड़े। मि भोत देर तक इनि रौं फिर कुछ अजीब सि सहन्ति बि ऐ। मि खिड़किक तरफ औं। मि इनि खिड़की खुलण चाणु छौ कि दरवाजा परन आवाज आइ ," ना ना !नि खोल। सावधान हाँ ! खिड़की खुललि त वींन भैर भाग जाण "
मेरी चचेरी बैणि सुभद्रा द्वारम खड़ी छे।
"अरे सुभद्रा तू ? तीन त डरै इ दे। " मीन ब्वाल।
सुभद्रान ब्वाल ," देख हाँ मि सच बुलणु छौं। वींन बाहिर चल जाण "
इन बोलिक सुभद्रा चलि गे। बिचित्र बात कि 'वींन भैर चलि जाण '। क्वा होली 'वा' वींन ?
दुफरा मा म्यार पसंदक खाणक बण्यु छौ। खाणक खैक मि थुडा देर सियुं रौं। कुछ आवाजों से मि बिजि ग्यों। काकी सुभद्रा तैं समजाणि छे अर सुभद्रा पर पागलपनक दौरा पड़्यूं छौ तो कुछ बि बखणि छे। फिर जब बिजु त क्या दिखुद कि म्यार पलंग का समिण एक कागज छौ कागज मा म्वासन लिख्युं छौ -जन तेरी मा मोरी , तीन बि मरण।
कागजक अर्थ छौ जैन बि मेरी मा मारी वु इखि छौ।
मेरि समज मा नि आयि कि कागज दिखौं कि ना ? अर कै तैं दिखाण ? चाची तैं ? कुंतला तैं ? घन्ना दादा तैं ? सुभद्रा तैं दिखैक त कुछ बि फैदा नी च , पागल जि च। यदि मि कागज वै तैं इ दिखै द्योलू जैन माँ की हत्या कार तो ? अर मी कागज कै तैं बि नि दिखै सकदु चौ।
मि कुछ देरौ कुण भैर ग्यों , फिर ख्ल्याण बि ग्यों। माँकी याद जि ऐ गे छै …
जब मि अपण कमरा मा औं त सुभद्रा भितर छे।
वींन मि तैं दिखदि ब्वाल ," मीन बतै छौ कि अब तेरी बारी च फिर बि … "
"क्या मतबल ?" मीन घबरैक पूछ।
सुभद्रान ठंडी आवाज मा ब्वाल ," अब तेरी बारी च। यदि वींक दगड ह्वे सकद त त्यार दगड़ बि ह्वालु "
मीन द्याख कि कमरामा एक घौण अर फरसा वळ दाथि बि पड़ीं छे।
मि तैं गुस्सा आयि कि मेरी मांक हत्यारिन खड़ी च ," तो तीन मेरि मां मार ?" मीन सवाल कार।
"हाँ मीनि चाची तैं मार अर अब तेरि बारी च। " सुभद्राक जबाब छौ।
सुभद्रा रुक नी। वींन बताइ , " जब मि अर तू दगड़ि खिल्दा छया अर मि पर पता नि क्या ह्वे जांद छौ अर मि तितैं झंडमंडै दींद छौ अर फिर रुण लग जांद छौ अर फिर शांत ही ना अर्ध वेहोशी मा चल जांद छौ अर इन बार बार हूंद छौ। तो एक दिन चाची मेरी ब्वै तैं समजाणि छे बल - भूली सुभद्रा पर पगलपनक दौरा पड़द। यीं तैं पागलखाना भिजण मा इ फैदा च। "
सुभद्रान सांस ल्याइ। फिर बुलण लग " अर मीन व बात सूण आल छे कि ब्वे बि मि तैं पागलखाना भिजणो तयारी ह्वे गे। मि तैं बोडी अर त्वे पर भौत गुस्सा आयि। "
मि।," अर तीन मेरी मांक कतल कार ?"
सुभद्रा ," हाँ "
मीन बोल - पर माँ तैं त बांधिक मरे गए छौ ?"
" नही। जब बोडि गौड़ पीजाणि छे तो मीन घौणन बौड़िक मुंड पर चोट कार। फिर बोडिक तै लह्सोरिक खल्याणम लौं अर फिर ग्यूं कटण वळ फरसान गिँडाइ कट , कट , कट … "
सुभद्रा किराई , " अब तेरी बारी च। " वीन घौण उठाइ …
इथगा मा पैथर बिटेन घन्ना दाकी आवाज आई, " कुंतला ! तू पटवारी तैं बुला। मि यीं हत्यारिन सुभद्रा तैं संबाळदु … "
मि बेहोश ह्वे गे छौ।
मि बेहोश ह्वे गे छौ।
होश आण पर पता चल कि सुभद्रान मि पर घौण चलाइ अर चोट से कम डौरन ज्यादा मि बेहोश ह्वे गे छौ , पर चोट अधिक नि छे। घन्ना दादान सुभद्रा तैं पकड़ दे छौ।
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