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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, June 25, 2013

कनु असगुनी बसगाळ

कविता : नरेन्द्र गौनियाल 

हे विधाता यु कनु असगुनी बसगाळ,
 बद्री केदार मा  यु कनु  आई काळ.
 हजारों लोगों कि चलि गेई जान,
 लाखों बेघर, बिन खान पान.
 हिमालै की धरती मा कनु प्रलय ऐगे,
 बोगि गीं मनखि कनु  रगड़ पड़ी गे .
 ज्यूंदा मनखी बि गाड मा बोगि गीं.
 रूंदा किलांदा माट मा दबि गीं 
 कबि नि देखि  इनु प्रलय भयंकारी,
 इनि आफत य महा विनाशकारी .
 हे नारायण हे शिव भोलेनाथ,
  रक्षा करो हम सब छां अनाथ .


      सर्वाधिकार  @नरेन्द्र गौनियाल

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