(गढ़वाल, उत्तराखंड,हिमालय से गढ़वाली कविता क्रमगत इतिहास भाग - 203)
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(Critical and Chronological History of Garhwali Poetry, part -203)
By: Bhishma Kukreti
Vijjay Butola is social worker and participates in various social activities as Uttarakhand Cine Awrds.
Vijay Butola was born in 1975 in Amoli, Barjula, Tehri Garhwal. Vijay Butola published a few poems. Readers liked the most his poetries related to imagery.
याद भौत औंदन वू प्यारा दिन जब होदू थौं (गढ़वाली कविता )
रचना -- विजय बुटोला
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काली चाय मा गुडु कु ठुंगार पूषा का मैना चुला मा बांजा का अंगार कोदा की रोटी पयाजा कु साग बोडा कु हुक्का अर तार वाली साज
चैता का काफल भादों की मुंगरी जेठा की रोपणी अर टिहरी की सिं गोरी पुषों कु घाम अषाढ़ मा पाक्या आ म हिमाला कु हिंवाल जख छन पवित्र चार धाम
असुज का मैना की धन की कटाई बैसाख का मैना पूंगाडो मा जुताई बल्दू का खंकार गौडियो कु राम् णु घट मा जैकर रात भरी जगाणु
डाँडो मा बाँझ-बुरांश अर गाडियों घुन्ग्याट
डाँडियों कु बथऔं गाड--गदरो कु सुन्सेयाट सौंण भादो की बरखा, बस्काल की कु रेडी घी-दूध की परोठी अर छांच की परे डी
हिमालय का हिवाँल कतिकै की बगवा ल
भैजी छ कश्मीर का बॉर्डर बौजी रं दी जग्वाल चैता का मैना का कौथिग और मेला बेडू- तिम्लौ कु चोप अर टेंटी कु मेला
ब्योऊ मा कु हुडदंग दगड़यो कु सं ग मस्क्बजा की बीन दगडा मा रणसिंग दासा कु ढोल दमइया कु दमोऊ कन भालू लगदु मेरु रंगीलो गढ़वा ल-छबीलो कुमोऊ
बुलाणी च डांडी कांठी मन मा उठी ग्ये उलार
आवा अपणु मुलुक छ बुलौणु हवे जा वा तुम भी तैयार
चैता का काफल भादों की मुंगरी जेठा की रोपणी अर टिहरी की सिं
असुज का मैना की धन की कटाई बैसाख का मैना पूंगाडो मा जुताई
डाँडो मा बाँझ-बुरांश अर गाडियों घुन्ग्याट
डाँडियों कु बथऔं गाड--गदरो कु
हिमालय का हिवाँल कतिकै की बगवा
भैजी छ कश्मीर का बॉर्डर बौजी रं
ब्योऊ मा कु हुडदंग दगड़यो कु सं
बुलाणी च डांडी कांठी मन मा उठी
आवा अपणु मुलुक छ बुलौणु हवे जा
Copyright@ Bhishma Kukreti, 2017
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