(गढ़वाल, उत्तराखंड,हिमालय से गढ़वाली कविता क्रमगत इतिहास भाग - 207)
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(Critical and Chronological History of Garhwali Poetry, part -207)
By: Bhishma Kukreti
Suresh Snehi published a few Garhwali verses in periodicals.
Suresh Snehi was born in Sunana Chauras , Kilkeshwar, Tehri Garhwal in 1975.
हाय रे बरखा !(गढ़वाली कविता )
रचना -- सुरेश स्नेही
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रुमझुम -रूमझुम बरखी बरखा , बढ़गे गाड गदेरौं मा पाणी
कैकी डोखरी , कैकी पुंगड़ी बगगे , पाणी मा आस पुराणी
हाय रे बरखा नी औण पै तू फेर।
सरगै किड़कताळयून डौर लगदी , तबर्यूं बरखा हौर लगदी
बीदा द्यो को बजर पोड़िगे , कूड़ी बी देखा खँद्वार ह्वेगे
हाय रे बरखा नी औण पै तू फेर।
कखी त गौं का गौं बगी गैनी , पीड़ी पिस्त्यान्यूं तक नऊ मिटि गैनी
कैंका गोरु भैंसा नी रैनी , सीबी पाणी मा रामदी गैनी
हाय रे बरखा नी औण पै तू फेर।
पक्का डांडा बी रौला बणी गैनी , उबाणा मा बि बौला बणि गैनी
कखि त गौं का गौं ह्वेगिन खाली , उजड़ीगे फसल बग गैनी डाळी
हाय रे बरखा नी औण पै तू फेर।
सौण भादो को गिगड़ाट देखा , कूड़ै पठाळयूं को थर्राट देखा
बूड़ बुड्यों को रकर्याट देखा , गाड गदन्यूं को स्वींसाट देखा
हाय रे बरखा नी औण पै तू फेर।
Copyright@ Bhishma Kukreti, 2017
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