(गढ़वाल,उत्तराखंड,हिमालय से गढ़वाली कविता क्रमगत इतिहास भाग - 192)
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(Critical and Chronological History of Garhwali Poetry, part -192)
By: Bhishma Kukreti
Kula nand Ghanshala is more famous for creating and staging Garhwali plays. Kula Nand Ghanshala created more than fifteen Garhwali dramas.
Kula Nand Ghanshala was born in Sankar, Pabo Block of Pauri Garhwal in 1963. His poems are sharp satire on unnecessary copying of western culture.
लब मैरिज (गढ़वाली कविता )
रचना -- कुलानन्द घनशाला
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जिठाणा कु भैसाब , सासू कू मांजी ,
मेरु नौ लेकि , भट्योन्दी छ
अपणा बूबा कु कुजाणी क्या ब्वलदि
पर मेरा बुबा कु पापा बुलणी छ
नँगा मुंड मा पल्लू धनु , धोती पैरण नि आंदि
टी शर्ट -जींस पैरण मा जरा बि नि शरमांदी
झुकी सेवा लगौण मा कमर चसक पड़ जांदी ,
गाळी अर गिच्चा चलौण मा द्वी हाथ अगाड़ी जांदी।
बिना सौ सलाह का जब मर्जी मैत भाजी जांदी ,
फिक्वाळ सी घूमघामी , ब्यखुनी हाथ हलकैकी ऐ जांदी
काम काज कनु बुनै लुचड़ी आई हो , टुप से जांदी।
अर पकायूं खाणू सबसी पैली खै जांदी
जरा कुछ ब्वलणे त बिना बाजौ का ही नचण बैठी जांदी
मां -बैणी गाळ घात - देकि धौं धौं कै घिरे जांदी
गाड़-फाळ , डाळा -फांस जैहर खाण की धमकी तक दे जांदी
कि दहेज़ अर वीं निर्भागी मैरिज की याद दिलै जांदी।
मिन बोली चूची ब्यो त ब्यौ ही छ
दुनिया से बाकी बात थ्वड़ी होईं छ
वींन गुर्रौ सी ठप -ठपाक मारी खबरदार ,
ब्यो नी हमारी त लब मैरिज होइँ छ।
शुभ दिन शुभ घड़ी देखी हाथ जोड़ी बोली मिन
चुची नारी त देवी कु रूप होंदु
वीन जुता की सी ठक्क चोट मारी
हाँ नर भी त वींकु भगत होंदु।
Copyright@ Bhishma Kukreti, 2017
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