(एक गढवली लघु कथा, पूर्णतः काल्पनिक)
आज बुढ्या जी कु सराध छ बल, ब्वारीन फजल्यैकि नयै धुयै द्यु बत्ती जलैं ससुरा जी की पैली पैली सराध मनौणा वास्ता विधि अनुरूप भोजन त कैबर्यौं तैयार कैर्याली, हे दस बजि गेनी, बामण फोन पर ब्वनु बल "बस पौंछी ग्यौं मी पौंछी ग्यौं...पौंछणु वालु छौं" बस बस कैरि ऊ डेढ घंटा से ज्यादा खैगी, बुढड़ी मनै मन स्वचणी कख म्वरि होलु रै यु बामण त कबर्यौं अपड़ा स्वच्याँ पर पछतै दै द्यव्तौं नौं ल्ये अफुतैं अफी हड़काणी ..
आज बुढ्या जी कु सराध छ बल, ब्वारीन फजल्यैकि नयै धुयै द्यु बत्ती जलैं ससुरा जी की पैली पैली सराध मनौणा वास्ता विधि अनुरूप भोजन त कैबर्यौं तैयार कैर्याली, हे दस बजि गेनी, बामण फोन पर ब्वनु बल "बस पौंछी ग्यौं मी पौंछी ग्यौं...पौंछणु वालु छौं" बस बस कैरि ऊ डेढ घंटा से ज्यादा खैगी, बुढड़ी मनै मन स्वचणी कख म्वरि होलु रै यु बामण त कबर्यौं अपड़ा स्वच्याँ पर पछतै दै द्यव्तौं नौं ल्ये अफुतैं अफी हड़काणी ..
क्या कन बुनै बुढड़ी तैं भूखौ कबलाट... औ बल थ्वड़ा शुगुरू बढ्यूँ आजकल, चला भै पंडित जी बी पौंछी गेनी अब त, पंडित नियमानुसार मंत्र तंत्र पर बी लगि गेनी... बुढड़ी औफार इनै उनै बटैं कन्यौ तैंं बुलै ल्हैया जी, पंडित जीन बुढड़ी तैं समझै "बोड़ी जी ल्ह्या तुम धैर्या ह्वाँ अपुड़ा हथौंन..ल्ह्या यु कौआ बंठौं छ, अर यु छ गौड़ी बंठौं अर यु कुकुरौ बंठौं...बुढड़ी रकर्यांद रकर्यांद छत मा गै अर जन्नी वींन छत मा कौआ बंठौं धैरि वास्तव मा भै, तन्नी एक कौआन स्वां प्रसाद मति डैप मारी... बुढड़ी मनै मन स्वचणी "दा बुढ्या मी सी ज्यादा ठाठ त त्यरा छन रै"
गिच्चु भितिरी गुणगुणाट करदी करदी जन्नी बुढड़ीन अपड़ू पछनै ब्वारी तैं खड़ी देखी त ब्वारी दिख्यां ब्वन बैठ "चल बाबा आज तेरू ससुरा जी त बड़ा खुश ह्वैगैनी खुशी बात छ" ब्वारीन बी प्रसाद सपोड़ुदु कौआ तैं द्वी हत्थ जोड़ी भौत देर तक आशीर्वाद मांगी, बुढड़ीकी आँख्यौं मा पाणी भ्वरेगी झणी क्या सोची...........
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स्वरचित/**सुनील भट्ट**
16/09/2017
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