(गढ़वाल,उत्तराखंड,हिमालय से गढ़वाली कविता क्रमगत इतिहास भाग - 194)
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(Critical and Chronological History of Garhwali Poetry, part -194)
By: Bhishma Kukreti
Satyendra Chauhn published a few Garhwali poems.
Satyendra Chauhan belongs to Tadkeshwar region of Badalpur, Pauri Garhwal. Satyendra Chauhan was born in 1965. The subjects in poems by Satyendra Chauhan are varied as pain of migration, wrong planning and development, imbalance in development . Satyendra shows his anger about wrong happenings in the society frequently.
ये गढ़वाळ तैं क्य दीणा छां ? (गढ़वाली कविता )
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रचना -- सत्येंद्र चौहान
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अपणि यीं जल्मभूमि तैं
ये गढ़वाळ तैं क्य दीणा छां ?
कुरगट्या , सिंपळण्या बाळापन
अर बच्यूं खुच्यूं /जल्मुं कु फ़ुक्युं दानु बुढ़ापु
ज्वानि कु मांड त /दिल्ली बम्बै तैं पिलाणा छां
जुट्ठा भांडा मठैकि /हडल्या चुस्यां आम सि बणिक
द्वी चार दिनों को /दगड़्या का ब्यौ मा आणा छां
कोटद्वार , ऋषिकेश मा उतरिक /सिगरेट सुलकैक चश्मा पैरिक
गुटका का फँक्का मारी /फच्च -फच्च खिड़की बिटेन
लोखुं मुंड मा थुकणा छां
कंडक्टर पुछण लग्युं कि /कख भैजि ?
त एक टिकट देणा /घुघत्याणिखाळ का
काचि हिंदी फुकीक /अफु तैं अंग्रेज चिताणा छां
अपणा घौर मा खयां का /भांडा नि उठौन्दा
इन भाँडो को लेजा ! हे ब्वे ! /वबरा बिटि मंजुला धै लगौंदा !
अपणौ तै लाटा काला माणि क /भै बैण्यों फर औडर चलौणा छां
ब्यौ बरात्यों मा पेकि दारु /गरीब गुरबौं मा लगाणा सौकारु
झांझ का विकास कि चरचा /ल्वतग्यों कि दगड़ चिंतन
ब्वलदी बल कि /जु नि ध्वा अपणु मुक
वू क्य द्यालु हैंका तै सुख
रीत इन अंगळती चलौणा छां।
Copyright@ Bhishma Kukreti, 2017
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