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Thursday, September 21, 2017

कॉंग्रेस अपने घावों में लूण , मर्च नहीं घावों में कीड़े डाल रही है (हिंदी लेख )

चाबुक चोट : भीष्म कुकरेती 

         आजकल मेरी बिल्डिंग में किसी की स्थिति खराब चल रही हो तो यह नहीं कहा जाता अच्छा ! उस पर साढ़े साती चल रही रहे है ? बल्कि आजकल कहा जाता है कि उस पर कॉंग्रेस लगी है या उस पर कॉंग्रेस दशा चल रही है। 
    'विपदा समय' का नाम अब कॉंग्रेस हो गया है। 
          जब आदमी पर साढ़े साती लगती है तो आदमी सही करने जाता है वह कार्य उलटा ही हो जाता है।  गलत बोल रहा हूँ तो दिग्गी बाबू को पूछ लो। बेचारे मनमारकर अल्पसंख्यकों को खुस करने बिन लादेन जी बोलते हैं तो कमसंख्यक ममता दीदी के डेरे से निकलते नहीं पर बहुसंख्यक नाराज हो जाते हैं। ना घर का ना घाट का , ना शहर का ना  गाँव का , ना मुसलमानों का ना हिन्दुओं का वाला हिसाब है आजकल कॉंग्रेस का। 
 कहा जाता है कि प्रतियोगी से  बदला लेना हो तो तब बदला लिया जाता है जब मामला ठंडा हो गया हो।  पर कॉंग्रेस का थिंक टैंक इतना बैंकरप्ट हो गया है कि जिस दिन से संसद शुरू हुयी कि कॉंग्रेस ने उसी दिन से व्यवधान मचाना शुरू कर दिया।  जब भी कॉंग्रेस ने ससंद  काम में बाधा डाली उस व्यवधान में जन आकांक्षा  रही ही नहीं और जल्दीबाजी के कारण कॉंग्रेस को रांड (विधवा ) नंगी भी दिखी और गेंहू भी गिर गए वाली स्थिति से गुजरना पड़ा।  
       मार और उसके ऊपर महामार ! एक तो हारी हुयी कॉंग्रेस और उसके ऊपर उपाध्यक्ष राहुल गांधी।  राहुल गांधी को नरेंद्र मोदी भी भाषण लिखकर दें तो भी सोचना तो राहुल गांधी को ही पड़ेगा ना ? जब भी राहुल गांधी ने मोदी विरुद्ध मुंह खोला तो लोगों के मध्य भाजपा विरोधी भावना पैदा तो नहीं हुयी उल्टा लोगों को लगा कि अब हमें मूढ़ , मूर्ख , बेदिमाग नेतृत्व भी झेलना पड़ेगा। 
      कोई भी प्रतियोगिता हो उसमे विरोधी के विरुद्ध विकल्प खोजना होता है।  राजनीति में भी विरोधी के विरुद्ध  विकल्प प्रस्तुत किया जाता है। कॉंग्रेस की असली समस्या भाजपा के विरुद्ध जनता के सामने विकल्प रखना है।  
       नरेंद्र मोदी ने कॉंग्रेस के बहुत से जन आकांक्षा पूर्ति के कार्य छीन लिए हैं चाहे उन्हें नया नाम ही दे दिया हो किन्तु जनता को देने लायक आठ दस लुभावने सपने अब कॉंग्रेस के रहे नहीं।   सब सपने भाजपा के बैंक में जमा हो गए हैं। कॉंग्रेस की हालात ' चूल्हे पर रखे गरम भगोने  छूटे तो आग पर गिरे ' जैसी स्थति से गुजरना पड़  रहा है।  यदि मोदी की योजनाओं  की निंदा करती है जनता की मार खाती है , योजनाओं को अपना बताती है तो जग हंसाई करवाती है , चुप बैठती है तो मरती है। 
      जनता चाहती है भ्रस्टाचार खत्म हो और भ्रष्टाचार  मिटाना कॉंग्रेस के लिए एक सर्वप्रिय विकल्प है।  पर  हाय रे कॉंग्रेसी दुर्भाग्य  ! जब भ्रस्टाचार मणि  लालू यादव , भ्रस्टाचार रत्न मुलायम वंशी और भ्रस्टाचार शिरोमणि करुणानिधि जैसे कहार कॉंग्रेस की डोली उठा फिर रहे हों तो भ्रष्टाचार को कैसे कॉंग्रेस विकल्प बनाएगी।  
    मंहगाई एक विकल्प है किन्तु मंहगाई अभी सर के ऊपर नहीं गुजर रही है तो मंहगाई हथियार नहीं बन सकती। 
    बेरोजगारी एक विकल्प हो सकता है। पर बेरोजगारी में अभी उतना दम नहीं है कि मोदी को लोहे के चने चबाने पड़ें। 
    जब बंदा  विकल्पहीन हो जाय तो वह खुदा  से दुआ माँगता है या गाली बकता है।  जो  दिग्गी बाबू ,  तिवारी  बुद्धिजीवी श्रीमती  मृणाल पांडे के ट्ववीटों से साफ़ झलकता है। ऐसे ट्वीट कुछ नहीं अपने घावों में नमक , मिर्च की जगह विषैले कीड़े डालने जैसे हैं।  
    भाजपा से सीखकर कॉंग्रेस ने सोसल मीडिया मे मोदी विरुद्ध जुमले उठाने शुरू किये किन्तु यहां भी कॉंग्रेसी भाजपा जैसे एग्रेसिव  लड़का  से हर पल मार खा रही है।   कॉंग्रेस ने भाजपा से सप्सल मीडिया प्रयोग उतना ही सीखा  जितने में कॉंग्रेस को नुक़साब हो। 
  सोशल मीडिया में कॉंग्रेसी  या समर्थक बुद्धिजीवी जैसे मंगलेश डबराल भाजपाइयों के लिए एक शब्द प्रयोग करते हैं   'भक्त'।    बुद्धि को कचरापेटी  में  रखकर लिखने वाले बुद्धिजीवी बिसर जाते हैं कि दुनिया का सबसे बड़े सकारात्मक शब्दों में भक्त भी एक बड़ा सकारात्मक शब्द है।  भक्ति अंधी हो या सादी  दोनों सकारात्मक विशेषण हैं और कॉंग्रेस समर्थन करने वाले बुद्धिजीवी समझते हैं वे तीर चला रहा हैं। जबकि  भाजपा हेतु अमृत वर्षा है। मेरी राय है कि कॉंग्रेसियों को भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए भक्त शब्द कभी भी प्रयोग नहीं करना चाहिए।   
    फिर सोसल मीडिया में कॉंग्रेसियों ने एक शब्द प्रयोग किया 'फेंकू'।  लगता तो शब्द नकारात्मक है किन्तु वास्तव में हम अपने जीवन में मूर्खों की जगह फेंकुओं को अधिक तबज्जो देते हैं क्योंकि फेंकू सपने दिखाता है।  कॉग्रेसियों को कैसे भरोसा हो गया कि फेंकू जैसे  सकारात्मक शब्द से वे मोदी से  लोहा ले सकेंगे ? 
   कॉंग्रेसी नेताओं को तो  संगठन को सही करना था तो वे मोदी से  टक्कर लेने में पस्त हो रहे हैं।  स्वास्थ्य विज्ञान भी कहता है कि जब मनुष्य बीमार हो तो उसे कुस्ती से दूर रहना चाहिए और अपने शरीर (संगठन ) को हृष्ट पुस्ट बनाना चाहिए , किन्तु बीमार कॉंग्रेस दंगल में उतर गयी है। हर सड़क पर गधे बैठे हैं इस शहर का क्या होगा ?
   ताकतवर द्विदलीय राजनीति हेतु भारत को भी ताकतवर कॉंग्रेस चाहिए किंतु जब कॉंग्रेस ही दवा की जगह तेज़ाब पीने को उतारू है तो श्याम सिंग पटवारी नीति -माणा जाकर भी क्या कर लेगा ? 

20/9 /2017 Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India 
*लेख की   घटनाएँ ,  स्थान व नाम सत्य  नहीं  हैं । लेख में  कथाएँ , चरित्र  , स्थान सत्यता दिखाने  हेतु उपयोग किये गए हैं।

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