(गढ़वाल,उत्तराखंड,हिमालय से गढ़वाली कविता क्रमगत इतिहास भाग - 188 )
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(Critical and Chronological History of Garhwali Poetry, part -188)
By: Bhishma Kukreti
Dhan singh published a few Garhwali Poems.
Dhan Singh Rana was born in 1960 in Lata village, Joshimath, of Chamoli Garhwal. His poems are of illustrating the danger of development without any thinking in Garhwal and migration from Garhwal.
सड़क किलै चौड़ी ह्वेगे ? (अनुभव जनित कविता )
रचना -- धन सिंह राणा
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गौं को अंत ऐ गे -सड़क तबी चौड़ी ह्वेगे
खून पसीना बगाई -नौना पढ़ाई लिखाई पढ़ाई
नौकरी लगाई -अधिकारी बणाई -सबी तख बसी ग्याई
आज सबी देस रैगे
कैन रोजगार कारण छोड़ी -क्वी भूखो भाजा आयी नी बौड़ी
चीज बस्त से नाता तोड़ी -सैंतण कैन बाछी गौड़ी
हालात ही आज यना ऐगे
धारा मंगरा सरकारी ह्वेग्या -घाट समसान अब नी रैग्या
पुंगड़ा अधिग्रहण ह्वेग्या -कूड़ो पर बुलडोजर लैग्या
गौं पहाड़ी से सब बौगीगे
जागर झुमेला मशीन लगोण्या -ब्लास्ट बाजा भोंकरा बजोण्या
देशी परदेश्यो को कुंभ कैदार -कुल अपणो बग्वाळ नचोण्या
ऐगे सची कलजुग ऐगे
माँ का लालो खड़ा ह्वावा धरती की लाज बचावा
विनाश तैं दूर भगावा अपणू भाग्य खुद बणावा
पूछण को वक्त ऐगे -सड़क किलै चौड़ी ह्वेगे।
Copyright@ Bhishma Kukreti, 2017
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