(गढ़वाल, उत्तराखंड,हिमालय से गढ़वाली कविता क्रमगत इतिहास भाग - 214)
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(Critical and Chronological History of Garhwali Poetry, part -214)
By: Bhishma Kukreti
Jayanti Prasad Baurai published a few Garhwali poems. Jayanti Prasad Baurai was born in Pachrar of Sawali patti of Pauri Garhwal. His poems are mostly related to Garhwal nature imagery and inspirational.
कंडाळि (गढ़वाली कविता )
रचना -- जयंती प्रसाद बौड़ाई
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मि छौं घास कंडाळि
रैंदु बारामास कंडाळि
तना म्यारू हूंद
पत्ती मेरी हैरी
जलडु मेरो गुणी हूंद
भुज्जी मेरी हैरी
हींग तुड़का लगै कैकि
चूनै रूटी साथ मा
चटपटी सुमर्याण लगदी
स्वाद लगदु जीभ मा
भूत -भूतड़ा भगांदू मी
छैळ -झपेटू जब लगद
छोटा नौनों को सबि अन्याड़
मेरी डैरी को भेज जान्दन
तपदी भारी रूड़ी मॉस
मेरी कंडाळि कखड़ी खैकी
तीस सबकी बुजी जांदा
बाद मा जब बुडे जांद
मेरी छाल काम आंद
मेरा रेशों को कमाल
कनू भलू सुहाणु लगद
थैला ट्वपली भली बणद
Copyright@ Bhishma Kukreti, 2017
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