(गढ़वाल,उत्तराखंड,हिमालय से गढ़वाली कविता क्रमगत इतिहास भाग -196 )
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(Critical and Chronological History of Garhwali Poetry, part -196)
By: Bhishma Kukreti
Bhagat Singh Bhandari was born in 1967 in Ampata, Tehri Garhwal. Bhagat Singh Bhandari published a few Garhwali poems.
म्यारू कसूर छह क्या (गढ़वाली कविता )
रचना -- भगत सिंह भंडारी
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जलम लेण द्यावा मैं तैं औण द्या ईं धरती मा
मेरा जलम सी दुःखी किलै तुम बोला मेरु कसूर छ क्या।
पीढियां बटि मेरी पूजा होंदी मेरा बिना कुछ बि नी
सृष्ठि चलदी मेरा वजै सी मी छौं त संसार बि
पर आज दुन्या मा सबसे जादा होणू मेरु फ़तूर छह।
जन्म सी पैली खतरा मैं तैं , जन्म का बाद बि खतरा छ
खतरै मा कटद मेरु , उमर साठ चाहे सतरा छह
इनी चललू चक्कर त यो दुनिया को बुरु दस्तूर छ।
जनि डाळी पनपदी हवा देंदी औंदा जांदा पँथ्यों तैं
तनि मैं भी छौं मेरी आस करा भै ईं धरती मा औण कैं
मेरा जलम सी दुखी किलै तुम बोला मेरु कसूर छ क्या।
देर सबेर बगत -बेबगत काम बिना मेरा चलण्या नी।
आदि शक्ति को रूप छौ मैं , मैं बिना पार लगण्या नी।
जाणो बूझीक आँखी मुझीक रखि सकल्यामैं दूर क्या।
कन्या छौं मैं , बैण बि छौं , मां की ममता छौं
जगत जननी छौं , पालनहार मैं , सावित्री छौं , सीता छौं
दुर्गा रूप धरी कै मैन कथगौं का दुःख दूर कर्या।
Copyright@ Bhishma Kukreti, 2017
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