(गढ़वाल, उत्तराखंड,हिमालय से गढ़वाली कविता क्रमगत इतिहास भाग - 218)
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(Critical and Chronological History of Garhwali Poetry, part -218)
By: Bhishma Kukreti
Very less is known about B.S. Panwar.
उलार (प्रशसा बगैर रह नही सकोगे - कविता )
रचना -- बी . ऐस . पंवार
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लपलपि लगुलि सी
लम्बी लम्बी लापी ,
लटक्याळी लटल्यूँ कि
लटकदी झापी /
कर्म्यळि लटुली
सुरम्यळि आँखी ,
रुगबुग्या मुखड़ी
फ्योंळी सी पाँखी।
हंसदि मुखड़ि कु
हैंसल्या रूप ,
माया का मण्डला मा
साँसों की धूप।
टकटकी चखल्यूँ का
गदगदा घोल
रतन्याळी आख्यूं मा
माया का बोल।
झपझपी धौन्पेली का
रमकट फेर ,
ज्वनि की फैड्यूं मा
फंदा कु घेर
Copyright@ Bhishma Kukreti, 2017
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