(गढ़वाल, उत्तराखंड,हिमालय से गढ़वाली कविता क्रमगत इतिहास भाग - 217)
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(Critical and Chronological History of Garhwali Poetry, part -217)
By: Bhishma Kukreti
Less is known about Kamla Vidyarthi except that the poem was published in a magazine Halant , Dehradun. Her uses of phrases are apreciable
माँ न ब्वाल (स्त्री स्वाभिमान , प्रेरणा )
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माँ न मिथैं , पाटि की रणाघुसि मा
कमेड़ा कु समोंदर दिखायी
अंक -आखरुं की दुनिया मा /माँन
आख्यौं न तोलणु सिखायी
माँ न ब्वालि निसु मुक्क नि रैणु
बेबात कि बात नि सैणु
समणि रैण , नि लुकाणि मुखड़ि
झेंकड़ा ही सै , पर खड़खड़ु रैणु
माँ न ब्वाल अफरि रीढ़ हूण चैंद
अफरि विपदा अफरा छंदा सैंण
माँ न ब्वाल सगोडै लगुली तरां
बाड़ का पिछनै ऐंचा -ऐंची रौण
माँ न ब्वाल बुरा वक्तै रोपणि लगौण
आंसू पेणा हरेलि सि रैण
मेरि लाटि हैंसणु सीख ले
बिना बातै संगरांद बजौण
माँ न ब्वाल ...
सौजन्य - श्रधेय -बी मोहन नेगी
(Ref-हलन्त अगस्त 2004 )
(Ref-हलन्त अगस्त 2004 )
Copyright@ Bhishma Kukreti, 2017
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