गढ़वाली हास्य व्यंग्य
चबोड्या: भीष्म कुकरेती
हौंसि हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा
गैरसैणs नाम वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली ठीक नगर नी च
(s=-माने आधा अ )
अचकाल कथगा लोगुं मांग च बल गैरसैणो नाम बल वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली नगर धौरि द्यावो। नाम बदलणो भारी विरोधी छौं।
अब द्याखो ना ! दूर दराज बिटेन क्वी विधवा अपण पेन्सन पट्टाs कागज़ सुधारणो राजधानी आलि अर इख जब नेता अर औफिसर क्वी बि वीं दुख्यारि काम नि कारल अर उल्टां तंग ही कारल त वीं रंडोळन (विधवान) इन गाळी दीण ," बज्जर पोड़ी जैन ईं चन्द्र सिंह नगरी पर जख दुख्यारो तै बुरि तरां से तंग करे जांदो ." त ए मेरो दगड्यो तुम चांदो बल वीर चन्द्र सिंह तै फोकटम गाळि पोड़न ? इनि हजारों लोग अपण काम कराणों उत्तराखंडऐ राजधानी आला अर जब ऊंको काम नि होलु त विचारों न निरस्याण च अर गाळी वीर चन्द्र सिंह नगरी तै दीण . क्या तुम सहमत छंवां कि चन्द्र सिंह जी गाळि खावन ?
जब पत्रकार रन्त रैबार -खबर-सार द्याला कि उत्तरखंड की राजधानीम नेता अर अधिकारी निवास नि करदन बल्कणम उत्तरखंड की राजधानीम छगटा (ठग), डकैत रौंदन त छगटों, ठगों, अर डकैतों संबंध बगैर बातो वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली दगड़ जुड़ी जालो। जिकुडि पर कथगा बड़ो चीरा लगल, कथगा बुरु लगल जब अखबारम लिख्युं रालो ," चन्द्र सिंह गढ़वाली नगरी नेताओं अर अधिकार्युं नगरी नी च बल्कणम छगटों याने ठगों नगरी च, चन्द्र सिंह नगरी चोर उच्चकों की नगरी च ". क्या वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली चाला कि बगैर बातो वीर चन्द्र सिंह को नाम छगटों या ठगों दगड़ जुड़ल ?
अचकाल जब देहरादूनम सड़कोम जाम लगदो त हरेकक मुख बिटेन गाळि आंदन ," साला ! देहरादून की सड़के चलने लायक नही है ..". अर इनि जब बुले जालो ,' साली चन्द्र सिंह नगरी की सडकें चलने लायक नही .." तब क्या रूणों ज्यूं नि बुल्याल बल बिचारा चन्द्र सिंह गढवाली दुसरो पाप को डंड भोगणा छन!
राजधानीक अपणों बिगरौ हूंद बल इख जमीनै कीमत स्वर्गलोक से बिंडी ह्वे जांद अर खार खैक इनमा लोग इन बोल्दन ," आग लगिन ईं राजधानी पर "फिर जब गैरसैण या वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली नगरम बि जमीनों कीमत विष्णुलोक से जादा इ बढ़लि त लोगुंन रोषम -गुस्साम इन बुलण ," काण्ड लगिन! बुरळ पोड़िन, कीड़ पोड़िन यीं चंद्र सिंह नगरी पर जख खुट धरणो जगा बि नी बचीं।" क्या इन बुरा सम्बोधन भग्यान चंद्र सिंह गढवाली को वास्ता ठीक रालो ?
कै बि राजधानी एक जरूरी लक्छण होंद बल उख पाणि भारि कमि होंद अर तिसा लोग हरदम इन गाळि दीन्दन ," बिजोग पोड़ि जैन यीं राजधानी पर, नरक समै जैन या राजधानी।". इनमा गैरसैणम बि पाणि टापि टापि जरूर ह्वेलि अर तिसा लोगुन गाळि दीणि च बल ,"बिजोग पोड़ि जैन यीं चंद्र सिंह नगरी पर, नरक समै जैन या चंद्र सिंह नगरी !". अब तुमि बथाओ क्या इन गाळि , बुरि बात को संबंध वीर चंद्र सिंह गढवाली दगड़ भलो रालो ?
जैं राजधानिम गंदगी, सड्याण , चिराण, सिलापैण, भ्रष्टाचार , अनाचार , अत्याचार , व्यभिचार आदि नि ह्वावो वा भारतीय प्रदेशों राजधानी नि ह्वे सकदी त इनमा जब लोग खबर पौढ़ल बल "वीर चंद्र सिंह नगरी गू-मूत, कचरा-गंदगी, भ्रष्टाचार , अनाचार , अत्याचार , व्यभिचार की नगरी" त क्या क्या वीर चन्द्र सिंह जी क आत्मा दुखि नि होलि
राजधान्युंम बिजली संकट अति होंद अर जब बिजली जाँदि त गाळि राजधानी ही खादि अर बुले जांद निरपट लगि जैन यीं राजधानी पर . ऊर्जा प्रदेसम बि बिजली कटौति होण इ च त जब उत्ताराखंडै राजधानिम बिजली जालि त हरेक कूड़ बिटेन इन पितीं (दुखी ) आवाज आलि ," सुंताळ पोडि जैन यीं चंद्र सिंह नगरी पर , आग लगी जैन यीं चंद्र सिंह नगरी पर .". इनमा हम सबी भक्तों तै हार्दिक दुःख नि होलु कि विचारा चन्द्र सिंह गढ़वाली बगैर बातों गाळि खाणा छन !
इनि हर पल , हरेक सेकंडम निरास , प्रताड़ित , रुंदा -पित्यांदा , दुखि , रोगिलों लोग बुलणा राला ," चन्द्र सिंह गढ़वाली नगरी को छत्यानास ह्वे जैन ! जा ! चन्द्र सिंह गढ़वाली नगरी डूबि जैन ! जा चन्द्र सिंह गढ़वाली नगरी नरक समै जैन ...." त हम सौब वीर चंद्र सिंह गढ़वाली प्रेम्युं तै बुरु नि लगल ?
त म्यार दिखण से गैरसैणो नाम वीर चंद्र सिंह गढ़वाली नि होण चयेंद .
Copyright@ Bhishma Kukreti 26/01/2013

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