डा . बलबीर सिंह रावत
"अतिथि देवो भव" की भावना भारतीय संस्कृति में बहुत प्राचीन है। आज के सन्दर्भ में अतिथि वोह है जो किसी के घर आता है और जो किसी क्षेत्र में आता है वो प्र्यट्टक कहलाता है। जहां तक आगंतुक के स्वागत और सत्कार का प्रश्न है , दोनों में कोई भेद नहीं है। प्र्यट्टन अब एक उद्द्योग बन गया है और इसके दो मुख्य वर्ग हैं, अंतरराष्ट्रीय और घरेलू . घरेलु, यानी डोमेस्टिक, प्रयट्टन के भी अपने उपवर्ग हैं, जैसे धार्मिक, सैलानी ,खेलकूद/साहसिक , स्वास्थ्य और घुमंतू/मनोरंजन । इन उपवर्गों के अपने उद्दयेश हैं , अपनी अपनी आवश्यक्ताएं हैं , और मेजमान क्षेत्र का यह उद्देश्य रहता है की आगंतुकों को हर प्रकार की सुविधाएं मिलें, उन्हें अपने अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए कोई कष्ट न हो। वे इतने प्रसन्न हों की क्षेत्र की यादें संजोने के लिए, अपनी अपनी सामर्थानुसार, क्षेत्र के प्रतीतात्मक साजो सामोन की खरीददारी भी जम कर करें । इस सब का अर्थ हुआ कि प्रयट्टन अब केवल धर्म या शौक नहीं रह गया है, यह एक बहुत बड़ा उद्द्योग हो गया है। इस उद्द्योग के कई स्वाधीन घटक हैं, जो अपने अपने दायरे में तो स्वाधीन हैं, लेकिन प्रयट्टकों और क्षेत्र के हितों की दृष्टि में एक दुसरे से सम्बन्धित हैं, हर एक घटक के सफल और आकर्षक संचालन के सम्मिलित प्रभाव से की दोनों की संतुष्टि का आकार निर्धारित होता है। ये घटक हैं :-
1.परिवहन व्यवस्था :अब भी लगभग 90% प्रयटक रेल से ही उत्तराखंड के चार रेल द्वारों तक आते हैं, यहाँ से आगे वे बसों, टेक्सियों द्वारा ही आगे की यात्रा पर जा पाते हैं। यह व्यवस्था भले ही कुछ सुधरी है है लेकिन, अब भी यात्रियों की चहेती नहीं बन पायी है। सुबह सुबह लम्बी लाइनें, अनिश्चितता, भीड़ के कारण सूचनाओं तक न पहुंचपाना, और इस कारण उत्पीडन की सम्भावना, परिवार के सदस्यों की चिंता . कई दिल की धड़कने बढाने वाली शंकाओं से (उत्तराखंडी लोगों के भले आचरण के बदौलत) निजात पाने पर आगे बढ़ने पर सड़कों के मोड़, रास्ते में कम समय का ठहरना, और शाम तक गंतव्य पड़ाव में रुक कर रात्रि विश्राम का प्रबंध करना , वोह भी किसी अनजान जगह पर।
आज की इलेक्ट्रोनिक सुब्धा के प्रयोग से आवागमन, रात्रि विश्राम, आगे की यात्रा और वापसी की यात्रा सब क ही टिकेट में हो सकती है। तो क्यों न यह अतिथि सत्कार का महत्वपूर्ण अंग बना दिया जाय?
दुसरे, इस धार्मिक याता के रास्तों में कई अन्य महत्व पूर्ण स्थल भी पड़ते हैं। क्यों न इनको भी मुख्या यात्रा का हिस्सा बना कर, इच्छुक यातियों को वहां रुकने, पूजा पाठ करने तथा उस स्थल पर बिभिन्न सांस्कृतिक कार्य कर्म दिखाए जायं ? इन स्थलों पर उत्तराखंड के हस्तशिल्प की वस्तुएं और स्थानीय महत्व के प्रतीक मेमेंटो बना कर अतिथियों को बेचने की व्यवस्था कर सकते है।
चूंकि, बसें, टेक्सिया , तेल पेट्रोल डीजल, सब बाहर से आता है, तो उत्तराखंड में केवल चालाक, परिचालक का वेतन ही रुकता है इस परिवहन उद्द्योग से तो इसके साथ हस्तशिल्प, कुटीर और लघु उद्द्योगों और सांस्क्रतिक कार्यक्रमों को जोड़ कर प्रति आगंतुक अधिक आय की जा सकती है।
2.सांस्कृतिक कार्यक्रम : रात्रि में हर पड़ाव, चट्टी में धार्मिक सान्स्कृतिक कार्य कर्म आयोजित किये जा सकते हैं, स्थानीय सांस्कृतिक दल सगठित करके, ऐसे कार्यक्रम बनाना, संचालित करना आसन काम है, बसरते की स्थानीय प्रमुख लोग दिलचस्पी लें और परिवहन व्यवस्था सा थे दे और जो यात्री ऐसी सुविधा का लाभ लेना चाहते हों उन्हें प्रोत्साहित किया जाय।
3.स्थानीय महत्व के मेंमेंटो : ए प्रतीक फोटो, वाल हैंगिंग, ऊनी/सूती/रेशमी वस्त्र, बांस/रिंगाल/ नलई, धातु इत्यादि, स्थानीय उपलब्ध सामानों से बनाए जा सकते हैं। हाँ, ए उत्पाद आकर्षक और स्थानीय मोतिभों से सुअज्जित होंगे तो ही आकर्षक होंगे, और बिक सकेंगे।
4.हस्त शिल्प , कुटीर और लघु उद्द्योग : उत्तराखंड को प्रकृति ने इतनी बहुलता से नाना प्रकार की आकर्षक बनस्पतियों, रंग बिरंगे फूलों पत्तियों और नदी पर्वतों के लुभावने दृश्यों से परिपूर्ण किया हुआ है की इन में से अति सुन्दर और लुभावने आकारों को उपरोक्त उद्दोग्यों की वस्तुओं में उकेर कर बड़े पैमाने में उत्पादन करके हर आगंतुक से औसतन 3,000/- की अतिरिक्त आय अर्जित की जा सकती है लेकिन इसके लिए पहल सरकार को ही करनी होगी क्योंकि, इस प्रदेश के लिए ऐसा स्वरोजगार नया नया है तो प्रवेश की झिझक अर्कार ही मिटा सकती है। एक बार यह नईं व्यवस्था चल पड़े तो फिर कई कई स्थानीय उद्द्यमी अपने आप इसे आगे बढायेंगे। हाँ इस में डिजाइन, रंग बस्तु का आकर, वजन, और उपयोगिता का समिश्रण विशिष्ट और आकर्षक होना जरूरी है।
5.प्रयट्टक गाइड और एस्कोर्ट दल: आदर्शनीय तो यह होता की जिन प्रदेशों से अधिक संख्या में यात्री आते है उनके पमुख अखबारों, व अन्य मीडिया में उत्तराखंड के दर्शनीय धार्मिक और अन्य स्थानों में अधिक से अधिक संख्या में आने का आमंत्रण, समय से कुछ पाहिले शुरू क्या जाय और वहीं से उनके ग्रुप बना कर उनके साथ उत्तराखंड के एस्कोर्ट आयन जो रास्ते में ही सबब को सूचित करें और उनकी यात्रा में सहयोग के लिए परिवहन व्यवस्था से तालमेल इस प्रकार बिथायं की उत्तराखंड के रेल स्टेशनों पर आते ही उन्हें गाइड मिलें और गंतव्य तक पहुचाने में सहायक बने। ऐसी व्यवस्था में श्री बद्रीनाथ, केदारनाथ मंदिर कमेटियां , कैलाश यात्रा प्रबंधक, नंदा देवी राज जात संयोजक और अन्य सभी सम्बंधित संस्थाएं तथा दोनों विकास निगम मिल कर , हाथ मिला कर, व्यवस्था करने की पहल करें तो हर आगंतुक बार बार आना चाहेगा।
6.स्थानीय एक दो घंटे के ट्रिप; हमारे मुख्य यात्रा मार्गों पर कई आत्यन्त दश्नीय स्थल पड़ते है उनतक जाने के लघु काल व्यवस्था की जा सकती है , विशेष कर ऐसे यात्रियों के लिए जो अपने छोटे बड़े वाहनों से आते हैं . उन्हें सूचना और मार्गदर्शन चाहिए, और इसकी व्यवस्था आक्रना मूषिक काम नहीं है।
7.स्वास्थ्य सुविधा : इस दिशा में सरकार सचेत है, फिर भी, अगर दिन रात की सेवा व्यवस्था और उसका प्रचार भली भांति हो, अम्बुलेंस और अस्पताल में तुरंत इलाज का प्रबंध हो तो हर यात्रे आश्व्स्थ हो कर यात्रा का पूरा आनंद ले सकेगा।
अन्य प्रकार के प्रयट्टन: इन क्षेत्रों के आगंतुक, सैर सपाटे, मनोरंजन,खेल कूद और रिक्रिएशन के लिए आते हैं। साहसिक खेलों में पर्वता रोहन और राफ्टिंग के अलावा कई और खेल हैं जिन्हें उत्तराखंड में लाना है। उदाहरण के लिए हेंग ग्लाइडिंग . गहरी नदी घाटियों के आस पास ऐसे कई पर्वत शिकार हैं जहां से ग्लाइडर कूद कर उड़न भ सकता है और गह्न्तो पूरी घाटी के लुभावने दृश्य देख सकता है।
इसके अलावा एक अति आकर्षक, अनछुवा क्षेत्र है, "शामिल हो जाओ " प्रयटन . टूरिस्ट लोज होते हैं जो बांस से भी बनाए जा सकते हैं, और आस पास स्ट्रॉबेरी इत्यादि मौसमी फलों के खेत, अतिथियों को फलों की पंग्तिया , या प्रति किओ के हिस्सा बी से स्वयं तोड़ कर लाओ, लेजाओ , करके, बेचा जाता है। बांधों और झीलों के आस पास मत्स्य आखेट को भी आकर्षक बनाया जा सकता है . बाकी समय में आस पास के क्षेत्रों में घूमना, फोटोग्राफी करना, पिकनिक मनाना इत्यादि मनोरंजन के कार्य आयोजित होते हैं। रात को केम्प फायर में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते हैं। एक दल हफ्ते दो हफ्ते के लिए आता है। फलो के बाग़ स्थानीय किसानो के हो सकते हैं और अप्रैल से सितम्बर तक तैयार होने वाले फलों के बाग़ विभिन्न प्रजातियों के फलों के लगाए जा सकते है। ऐसे पर्यटक स्थलों पर खेलकूद की प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जा सकती हैं।
आजकल उत्तराखंड कई स्थानों पर 70-80 कमरों के टूरिस्ट लोज यहाँ वहाँ बन रहे है और इसकी खबर टूरिस्ट विभाग को शायद ही होगी। ऐसे सभी आकर्षक - अनाकर्षक लोजों में आधार भूत सुवोधाओं का यथोचित मान दंड, जैसे, स्वच्छ जल, मल मूत्र की, कूड़े कछ्दे की सही निकासी और आस पास की सुन्दरता को बनाए रखने का, होना चाहिए। पर्यटकों की और क्षेत्र प्रदेश और देश की सुरक्षा के प्रबंध, विशेष कर सीमान्त मंडलों तथा बांधों, पुलों, सैनिक और पुलिस ठिकानों इत्यादि महत्वपूर्ण स्थानों की सुरक्षा का समुचित प्रबंध इन लौजों पर होना अत्यंत आवश्यक है। इसलिए इनका टूरिस्ट, पर्यावरण और आंतरिक सुरक्षा विभागों में पंजीकरण कराया जाना और नक़्शे पास कराया जाना अनिवार्य रूप से आवश्यक होंना चाहिए।
ऐसे उभरते आकर्षक स्थलों में से चुन कर भावी स्थानीय औद्द्योगिक केन्द्रों की स्थापना भी हो सकती है और आने वाले समय में ये छोटे शहरों का भी आकार ले सकते हैं,बशर्ते की आयोजक शुरू से ही इन्हें आकार लेने में सुनियोजित रूप से मार्गदर्शक और सहायक हों।
स्वास्थ्य प्रयट्टन भी एक अत्यंत आकर्षक व्यवसाय हो सकता है, बशर्ते इसे , जगह, सुविधा, लाभ और शान्ति की संभावनाओं को देने वाला उद्योग बनाया जाय। एक बार देश के इच्छुक लोगों का विश्वास जम जाय तो लाभ स्वयम ही पीछे पीछे आयेगा।
अंत में : उपरोक्त सुझाओं पर गंभीर मनन और उसमे वांछित नए आयाम जोड़ कर यदि एक सम्पूर्णता की प्लानिंग करके बृहद स्तर पर शुरू किया जाय तो निसंदेह उत्तराखंड का प्रयटन संसार भर का चहेता आकर्षक क्षेत्र बन सकता है।
डा . बलबीर सिंह रावत।
No comments:
Post a Comment
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments