मेरे पैदा होते ही
मेरी माँ ने
सुख की जगह
पीड़ा महसूस की थी
घर के लोग
खुश नहीं थे
मन मसोसकर पाला था
माँ खेतों में
काम पर जाती थी
मै बिस्तर पर लुढ़कती
घंटों तक
भूखी -प्यासी रोती थी
दांत निकलने से पहले ही मुझे
कपला चटाना शुरू करा दिया था
क्योंकि मेरी माँ को देर तक
खेतों में काम करना था
कुछ दिन में ही
मेरे लिए दूध भी सूख गया था
अभी मै
सालभर की भी नहीं हुयी थी
मेरा भाई हो गया
अब क्या था
मै तो जैसे कूड़ा हो गई थी
मेरी माँ अब
हर घंटे में
काम छोड़कर आती थी
मेरे भाई
अपने बेटे को
खूब दूध पिलाती थी
देख देखकर
दूध पीने का मन तो मेरा भी होता
लेकिन जब पीना था
तब नहीं मिला
अब क्या मिलता
कुछ बड़ी हुई तो
भाई की जूठन
पाकर
खाकर
तृप्त हो जाती
दिनभर उसकी
देखरेख करती
कुछ और बड़ी हुई तो
स्कूल के साथ
कई जिम्मेदारियां
समझने लगी
घर के कामकाज
करने लगी
तब मुझे
अपने भाई के साथ भी
कंचे,गिट्टी,पिट्ठू
नहीं खेलने दिया गया
मैंने खेलने की जिद की तो
माँ ने कहा -
उसकी देखादेखी मतकर
तू लड़की है
मै तब
लड़की होने का
मतलब नहीं समझ सकी
कुछ और बड़ी हुई तो
कई निषेध
साथ में जुड़ते गए
यह नहीं करना
वहाँ नहीं जाना
उस से नहीं मिलना
मै पूछती
माँ बापू !
सिर्फ मुझे ही
क्यों मना करते हो
भाई को क्यों नहीं ?
हर बार जबाब मिलता
अरे !तू लड़की है !
मै ना समझ
तब भी नहीं समझ पाई
कुछ और बड़ी हुई
बड़ी मिन्नत के बाद
स्कूल के बाद कॉलेज जा पाई
लेकिन गई क्या
आते जाते
बस में
ऑटो में
पैदल भी
मुझे अहसास हो गया
सचमुच मै लड़की हूँ
लेकिन मुझे अभी भी
मालूम नहीं हुआ
लड़की होना
क्यों गुनाह है
क्यों अभिशाप है
मुझे क्यों
अपना बचपन
अपना यौवन
अपना जीवन
अपने ढंग से जीने का
हक़ नहीं
क्योंकि मै लड़की हूँ ?
डॉ नरेन्द्र गौनियाल narendragauniyal@gmailcom
मेरी माँ ने
सुख की जगह
पीड़ा महसूस की थी
घर के लोग
खुश नहीं थे
मन मसोसकर पाला था
माँ खेतों में
काम पर जाती थी
मै बिस्तर पर लुढ़कती
घंटों तक
भूखी -प्यासी रोती थी
दांत निकलने से पहले ही मुझे
कपला चटाना शुरू करा दिया था
क्योंकि मेरी माँ को देर तक
खेतों में काम करना था
कुछ दिन में ही
मेरे लिए दूध भी सूख गया था
अभी मै
सालभर की भी नहीं हुयी थी
मेरा भाई हो गया
अब क्या था
मै तो जैसे कूड़ा हो गई थी
मेरी माँ अब
हर घंटे में
काम छोड़कर आती थी
मेरे भाई
अपने बेटे को
खूब दूध पिलाती थी
देख देखकर
दूध पीने का मन तो मेरा भी होता
लेकिन जब पीना था
तब नहीं मिला
अब क्या मिलता
कुछ बड़ी हुई तो
भाई की जूठन
पाकर
खाकर
तृप्त हो जाती
दिनभर उसकी
देखरेख करती
कुछ और बड़ी हुई तो
स्कूल के साथ
कई जिम्मेदारियां
समझने लगी
घर के कामकाज
करने लगी
तब मुझे
अपने भाई के साथ भी
कंचे,गिट्टी,पिट्ठू
नहीं खेलने दिया गया
मैंने खेलने की जिद की तो
माँ ने कहा -
उसकी देखादेखी मतकर
तू लड़की है
मै तब
लड़की होने का
मतलब नहीं समझ सकी
कुछ और बड़ी हुई तो
कई निषेध
साथ में जुड़ते गए
यह नहीं करना
वहाँ नहीं जाना
उस से नहीं मिलना
मै पूछती
माँ बापू !
सिर्फ मुझे ही
क्यों मना करते हो
भाई को क्यों नहीं ?
हर बार जबाब मिलता
अरे !तू लड़की है !
मै ना समझ
तब भी नहीं समझ पाई
कुछ और बड़ी हुई
बड़ी मिन्नत के बाद
स्कूल के बाद कॉलेज जा पाई
लेकिन गई क्या
आते जाते
बस में
ऑटो में
पैदल भी
मुझे अहसास हो गया
सचमुच मै लड़की हूँ
लेकिन मुझे अभी भी
मालूम नहीं हुआ
लड़की होना
क्यों गुनाह है
क्यों अभिशाप है
मुझे क्यों
अपना बचपन
अपना यौवन
अपना जीवन
अपने ढंग से जीने का
हक़ नहीं
क्योंकि मै लड़की हूँ ?
डॉ नरेन्द्र गौनियाल narendragauniyal@gmailcom
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आपका बहुत बहुत धन्यवाद
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