भीष्म कुकरेती
श्री नरेंद्र सिंह नेगी के उत्तराखंडी गायन में महराजा बनने के पीछे श्री नेगी का कवि होने का भी बड़ा हाथ है। गायकी का शास्त्रीय ज्ञान व कविता का पूर्ण ज्ञान नेगी जी की गायन शैली के लिए एक संबल रहा है।
श्री नरेंद्र सिंह नेगी के सबसे बड़ी विशेषता है कि उनके गीतों में सामयिकता का होना। सामयिकता गायक को समाज से जोड़ने में सबसे बड़ा सहयाक गुण है।
सामयिक गायकी से गायक समाज से सीधा जुड़ जाता है और यही कारण है कि हिन्दुतान के मुर्शिकी के महान स्तम्भ श्री नरेंद्र सिंह नेगी के गीत उन प्रवासी युवाओं को भी भा जाते हैं जिन्हें गढ़वाली बोलनी भी नही आती है और इसके गवाह हैं उन प्रवासी युवाओं के मोबाइल में स्थित नेगी जी के गीतों के बोल या संगीत के रिंग टोन।
'बण भी सरकारी तेरो मन भी सरकारी तिन क्या समझण हम लोगुन की खैरी ...आण नि देन्दि तु सरकारी बौण , गोर भैंस्युं मिन क्या खलाण .."
स्वत: ही आम महिलाओं को नेगी जी से जोड़ देता है . समाज के सभी वर्गों में ग्रेट इन्डियन सिंगर की बड़ी पैठ है तो इसका एक मुख्य कारण है कि श्रेष्ठ गायक नरेंद्र जी सामयिक विषयों को संवेदनशील तरह से उठाते हैं .उनके गीत केवल शब्द चातुर्य से भरे नही होते हैं बल्कि उन गीतों में समाज और सामयिकता होती है जो नेगी जी को अन्य गायकों से अलग कर देते हैं . नेगी जी के गीतों के बोलों में सामयिकता मात्रि शक्ति और युवा शक्ति को नेगी जी से जोड़ने में कारगार सिद्ध हुयी है।
गैरसैण का राजधानी बनना , उत्तराखंड के पहाड़ियों के लिए एक भावुकता भरा प्रतीक है और गायकी के शिरोमणी नरेंद्र सिंह नेगी ने -
तुम भि सुणा मिन सुणियालि गढ़वाल ना कुमौं जालि
तुम भि सुणा मिन सुणियालि गढ़वाल ना कुमौं जालि
उत्तरखंडै राजधानी बल देहरादून रालि
दीक्षित आयोगन बोल्यालि
हाँ दीक्षित आयोगन बोल्यालि
.ऊंन बोलण छौ बोल्यालि हमन सुणन छौ सुण्यालि ..
जब ऐसा जैसा सामयिक और जन आन्दोलन का गीत गाया तो महान गायक अपने आप ही जन भावना से जुड़ बैठे . इस तरह के सामयिक गीतों ने श्री नेगी जी को जन गीतकार बनाया .
आज पहाड़ों से पलायन के कारण पहाड़ी अपनी धरती से दूर हो गये हैं . अपनी धरती से दूर होने के बाद प्रत्येक मनुष्य अपनी जड़ों को खोजता है , अपने इतिहास को खोजना उसकी विडम्बना बन जाती है . इसी जन भावना को श्री नेगी जी ने समझा और तभी तो उनकी गायकी में ' बावन गढ़ों को देश मेरो गढवाल ' फुट पड़े . आज भी गढ़वाल हो या विशाखापट्टनम आपको प्रवासियों को नेगी जी द्वारा गीत 'बावन गढ़ो का देस , भड़ो का देस ' का गीत सुनते मिल जायेंगे।
किसको नही पता की डा रमेश निशंक के राज में भ्रष्टाचार किस उंचाई पर चढा . जन भावनाओं के प्रति संवेदनशील कवि -गायक श्री नरेंद्र सिंह नेगी का एल्बम ' अब कथगा खैल्यु " रिलीज हुआ तो राजकीय गलियारों में भूचाल आ गया . जनता खुले आम इस गाने को सुनाकर अपने मन की बात राजनेताओं तक पंहुचाने में सफल हो गयी . और यही है श्री नेगी जी के प्रसिद्ध होने का असली राज - जनता की भावनाओं को समझना और उसकी बोल में गाना लिखना और गीत गाना .
जनता केवल दूसरों की कहनियों में व्यंग्य सुन्ना पसंद नही करती अपितु अपने को भी आयने में देखना पसंद करती है तभी तो श्री नरेंद्र सिंह नेगी का सामयिक गीत ' मुझको पहाड़ी मत बोलो मै देहरादूण वाला हूँ,देहरादूण वाला हूँ ' उतना ही प्रसिद्ध हुआ जितना कि श्री नारयण दत्त व श्री निशंक के राज की खिल्ली उड़ाते गीत। जनता ने अपनी खिल्ली उड़ाने वाले गीतों को भी वही महत्व दिया जो कि उसने दूसरों की खिल्ली वाले गीतों को दिया . और इसका मुख्य कारण है की नेगी जी समय , समाज और सामयिकता को महत्व देते हैं . इसी तरह श्री नेगी जी के दसियों गीत समय की पुकार वाले हैं
मेरी दृष्टी में श्री नरेंद्र सिंह नेगी की गायन प्रसिधी में जितना योगदान उनका सुरीला गला , उनका संगीत में माहरथ , और उनका कवि होने में है उससे कहीं अधिक योगदान श्री नेगी का समाज की नब्ज पहचानने व् गीतों में सामयिकता लाने का है . सामयिकता भारत के महान गायक श्री नरेंद्र सिंह नेगी को समाज से सीधा जोड़ देती है .
Copyiright@ Bhishma Kukreti 21/1/2013
Kukreti ji dhanyawad!!! Aapke vichar bilkul sateek hain, Negi ji to Uttarakhand ke sangeet ke betaaj badshah hain Bhagwan unko lambi umra pradan kare !!!
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