उत्तराखंडी ई-पत्रिका की गतिविधियाँ ई-मेल पर

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Thursday, February 12, 2015

हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर इतिहास संदर्भ में देवासुर संग्राम

Devasur War in context History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur

                                                    हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर इतिहास संदर्भ में देवासुर संग्राम
                                                                        History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  Part  --58     

                                                                    हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग -58                                                                                                                  

                                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती   
     आर्यों से पर्वतीय असुरों ने कई युद्ध किये और वैदिक काल के सैकड़ों साल तक उनकी वीरता की गाथाएं समाज में गाती जाती रहीं थीं। अतः इनका वर्णन परवर्ती वैदिक साहित्य में आना आश्चर्य नही दिलाता। 
                                                               देवासुर संग्राम 
 प्रजापति दक्ष का राज्य उत्तराखंड से लेकर मध्य प्रदेश तक फैला था।  दक्ष  राजधानी कनखल (हरिद्वार ) थी।  दक्ष की तेरह  कन्याओं विवाह कश्यप से हुआ था।  इन कन्याओं में से - अदिति , दिति , दनु और खसा से देवता , दैत्य , दानव , यक्ष , रक्ष संतति  हुए। 
दानवों में सौ भाई हुए जिनमे हिरण्यक शिपु , हिरण्याक्ष  वृषपर्वा अति वीर हुए है। असुरों  में तेरह महाबली -व्यंश , शल्य आदि हुए। असुर -दानवों की संख्या लाखों -करोड़ों में थी। 
देवता दानवो -असुरों -दैत्यों के सौतेले भाई थे। वीरता और समृद्धि में दैत्य बढ़चढ़कर थे कि  के लिए इंद्र को आना पड़ता था और विष्णु को अवतार  पड़ते थे। 
देवासुर संग्राम हिमालय में हुआ था। जिसमे देवताओं को कई  कष्ट सहने पड़े थे। 
 पराक्रमी व अस्त्र सश्त्रों से सुस्सज्जित थे। 
असुरों में निम्न वीरों का पराक्रम प्रसिद्ध हुयें हैं -
नमुचि 
शंबर 
कुजम्भ 
वित्र 
वृषपर्वा 
असुर पर्वतीय माया के विशषज्ञ थे।  पर धातु से बने थे।  
असुरों  चरित्र वास्तव में सभ्य चरित्र वाला था। 
महाभारत में गंगाद्वार (हरिद्वार , कनखल , भृगुश्रृंगी -भृगुखाल (हरिद्वार से सटा उदयपुर पट्टी , पौड़ी गढ़वाल ) वर्णन विस्तार से हुआ है।  भेद की पराजय के बाद  हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर व उत्तराखंड में ऋषियों का पदार्पण हुआ और उन्होंने यहां कई आश्रम बनाये थे। 

** संदर्भ - ---
वैदिक इंडेक्स
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड  इतिहास - भाग -२
राहुल -ऋग्वेदिक आर्य
मजूमदार , पुसलकर , वैदिक एज 
Copyright@
 Bhishma Kukreti  Mumbai, India  11 /2/2015 

Contact--- bckukreti@gmail.com  
History of Haridwar to be continued in  हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास; बिजनौर इतिहास, सहारनपुर इतिहास  -भाग 59   


History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ; History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ; History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ; History of Telpura Haridwar, Uttarakhand ; History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ; History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ; History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand ; History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand ; History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ; History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ; History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ; History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ; History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ; History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar; History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;History of Bijnor; History of Nazibabad Bijnor ; History of Saharanpur
कनखल , हरिद्वार का इतिहास ; तेलपुरा , हरिद्वार का इतिहास ; सकरौदा ,  हरिद्वार का इतिहास ; भगवानपुर , हरिद्वार का इतिहास ;रुड़की ,हरिद्वार का इतिहास ; झाब्रेरा हरिद्वार का इतिहास ; मंगलौर हरिद्वार का इतिहास ;लक्सर हरिद्वार का इतिहास ;सुल्तानपुर ,हरिद्वार का इतिहास ;पाथरी , हरिद्वार का इतिहास ; बहदराबाद , हरिद्वार का इतिहास ; लंढौर , हरिद्वार का इतिहास ;बिजनौर इतिहास; नगीना ,  बिजनौर इतिहास; नजीबाबाद , नूरपुर , बिजनौर इतिहास;सहारनपुर इतिहास 

No comments:

Post a Comment

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments