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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, February 3, 2015

अनार्य /दास हन्ता आर्य राजा

Aryan Kings Killing Anaryan /Das Kings and People 
                                              अनार्य /दास हन्ता आर्य राजा 

                                                       History of Haridwar Part  --50    

                                                         हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग -50                                                                                      
                           
                                                   इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती    
         ऋग्वेद से ज्ञान मिलता है कि जो भी आर्य नरेश दास /अनार्य जनों पर जितना अधिक अत्त्याचार करते थे उनको  आर्य समाज में उतना ही अधिक सम्मान मिलता था।  मनु , नहुष , मान्धाता , कुत्स , पुरूकुत्स , रिजीस्वा , सेपुत्र आदि आर्य राजाओं को अनार्य /दास जनों पर क्रूर अत्याचार से ही सम्मान व प्रसिद्धि मिली।  आर्य लोग अत्याचारी आर्य नरेश को त्रष -दस्यु (दासों को त्रास दाता ) नाम की उपाधि देते थे 
         गुफा वासी   दास जाति वीर जातियाँ थीं। 
         ऋग्वेद में दास विनाश का श्रेय इंद्र , अग्नि आदि देवों को दिया गया है।  याने कि दास वीर साधारण नही थे। 
                         महायुद्ध 
           अनार्य या दास वीर जातियां थीं और सैकड़ों साल आर्यों  अनार्यों के मध्य युद्ध चलते रहे।  अनार्य युद्ध में पारंगत थे और रणनीति का उपयोग बखूबी करते थे। दासों के पास असंख्य दुर्ग भी थे।  जब भी आर्यों का अधिक दबाब बढ़ता था अनार्य अपने दुर्ग छोड़ पहाड़ों में फ़ैल जाते थे। समय आने पर अनार्य आर्यों से बदला लेने अचानक आक्रमण कर डालते थे।  ऋग्वेद व अन्य वैदिक साहित्य में दासों को मायावी याने गुरिल्ला जैसे सैन्य संचालन वाला बताया गया है।  इन पर्वतीय जनों की सेना में स्त्रियां भी हथियार लेकर युद्ध लड़ती थीं और आर्य इन  स्त्रियों का उपहास उड़ाते थे।  अनार्यों के पास जादुई तागत का उल्लेख वैदिक साहित्य में किया गया है।  दासों व आर्यों के मध्य चलने वाले युद्ध का स्मरण सैकड़ों साल तक जीवित रहा और महाभारत में इन युद्धों का वर्णन हुआ है। 

*संदर्भ - ---
वैदिक इंडेक्स
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड  इतिहास - भाग -२
राहुल -ऋग्वेदिक आर्य
मजूमदार , पुसलकर , वैदिक एज 
Copyright@ Bhishma Kukreti  Mumbai, India 28 /1/2015 

Contact--- bckukreti@gmail.com  
History of Haridwar to be continued in  हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास; बिजनौर इतिहास, सहारनपुर इतिहास  -भाग 51  

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