- डा. बलबीर सिंह रावत
आज कल यह शब्द राजनैतिक गलियारों में बहुत सुनने में आ रहा है। इस शब्द का शब्दकोशीय अर्थ है पर्वतक काम करना, चली आ रही लीक से हट कर कुछ नए विचार , नईं पद्धति या नया उत्पादन
(आउटपुट) देना। इनोवेशन आविष्कार या सुधार नहीं है , यह एक नवीन सोच, नवीन प्रकार से वांछित लक्ष्य तक पहुंचे का नया तरीका है। इसका उदहारण है अमेरिका की सिलिकॉन घाटी की अद्भुत प्रगति। इन्नोवेश की कुछ पूर्व शर्ते होती हैं, जैसे, जो प्रचलित है उस से असंतोष पनप कर उसे बदलने की इच्छा का जागृत हो कर इतना बलवती होते जाना की प्रचलित पद्धति के स्थान पर नयी, अधिक सफल और अधिक फलदायी पद्धति को स्थापित करना।
इसके लिए जो कौशल आवश्यक है वह है, वर्तमान का सटीक आंकलन कर पाना , उस पर नया लाने के लिए समुचित ज्ञान /कौशल/हुनर का होना और ईतना सक्षम होना की बदलाव से कोई समय, सामर्थ और साधनो का ह्राष न हो । उपरोक्त सिलिकॉन घाटी के उदहारण को देखने से पता चलता है की जब शोक्ले सेमीकंडक्टर कम्पनी के कार्मिकों में असंतोष पनपा तो उनके प्रवर्तक विचारों ने संचार विज्ञान में क्रांति ला दी और सिलकोंन घाटी के संचार उद्द्योगों की अभूतपूर्व सफलता ने उनकी किस्मत ही पलट दी । और इसका श्रेय जितना इन असंतुष्ट कार्मिकों को जाता है उतना ही उस कम्पनी को भी जाना चाहिए जिसने असंतोष को जन्म देने की भूमिका बनायी।
असंतोष पनपने की भूमिका बांधते है निम्न कारण :-
१. यह और वह कमियों का बने रहना ,
२. लक्ष्यों का निर्धारण न होना या गलत होना ,
३. कार्मिकों और अधिकारियों के कामों में कमियों का होना , चाहे यह उनके काम में आवशयक कौशल की कमी के कारण हो, या उन्हें कम संसाधनों के मिलने के कारण हो या उनमे अपने कर्तव्य निभाने की इच्छा में कमी के कारण हो, या इन सब के मिश्रण के कारण हो।
४. जो स्टेक होल्डर्स हैं , जिनके के हित दांव पर लगे होते है , वे ही लापरवाह हों।
जब किसी सृजनशील, सामर्थवान और कौशाल युक्त व्यक्ति/ व्यक्तियों के समूह को उपरोक्त कमियों के कारण असंतोष होता है तो वह इन को आमूलचूल बदल देने के बारे में सोचता है, आपस में विचार विमर्श होता है , एक राय बनती है और तब शुरू होता है शृंखलाबद्ध काम - विचार का सम्पूर्नीकरण > इन्नोवेशन >विस्तृतीकरण > लक्ष्यनुसार प्राप्तिकरण।
इस प्रथा में सरकार को भी एक फर्म , एक संस्था, मान कर चलते हैं। जिस पर मैक्रो स्तर के आयाम प्रभाव डालते हैं और जिसका माइक्रो स्तर केवल सुधार ही नहीं माँगता, संचालन पद्धति में आमूलचूल परिवर्तन भी माँगता है। योजना आयोग स्थान पर नीति आयोग बनाना इसका उदाहरण हो सकता है।
अपने उत्तराखंड के संदर्भ में देखे तो हम सब को उपरोक्त चारों कमिया मुह बाए चिढ़ा रही हैं , विशेष कर नं . २ और नं ४ । लक्ष हैं केवल बजट के पैसे समाप्त करना। प्राप्तिके लक्ष्य हैं ही नहीं । और जिनके हित दांव पर लगे हैं वे है केवल जनता, जो असंगठित , इनोवेशन विहीन , लापरवाह और संतुष्ट लगती है। एक दो असंतुष्ट लोग चिल्लाते हैं, उनकी छोटो छोटी लग अलग तूतियों की आवाज, स्ररकारी प्रचार के नगाड़ों के शोर में सुनायी नहीं देती . प्रशासन और कायदाये विभागों के लोगों का कोई निर्धारित उत्तर्दायितव और अकाउंटेबिलिटी ( कमियों की भरपाई ), प्रोत्साहन का कोई प्रावधान है ही नही।
यह वही सिलकों घाटी की शौक्ले सेमीकंडक्टर कंपनी की तरह की फर्म है।
देश , समाज के सही और स्थायी विकास के लिए सरकार रुपी संस्थाओं को चलाने वाले उनके चीफ एक्जीक्यूव ऑफिसर्स, प्रधान मंत्री, मुख्य मंत्रियों, सभी मंन्त्रियों , सांसदों और सभी सचिवों, निदेशकों और विभागाध्यक्षों के इनोवेटिव हुए बगैर हम कुछ इस प्रकार की कृति होंगे जिसके पैर तो २१ वीं सदी में आ गए हैं लेकिन सिर ( मष्तिष्क ) और हाथ (कार्य शैली ) सामंती /उपनिवेशवादी युग के १८ वीं १९ वी सदी में ही अटक के रह गए हैं।
क्या मोदी जी का इन्नोवेशनिज्म इन तक फ़ैल पायेगा ? कब तक फैलेगा ? या इनमे से कोई बेचैन असंतुष्ट, लाल बत्ती के पीछे भागने के बजाय, इनोवेटिव होने के लिए अपनी काबिलियत अपना ज्ञान समर्थ को बढ़ायं। है कोई माधो सिंह भंडारी इनके बीच ?
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