घपरोळ
प्रवास्युं द्वी ब्यौ आवश्यक ह्वावन !
भीष्म कुकरेती
ब्वालो तुम क्या बुलणा छंवां?
Copyright@ Bhishma Kukreti 31/5/2012
(यह लेख 'पराज' मासिक पत्रिका ,
मुंबई के जनवरी १९९१ अंक में प्रकाशित हुआ था. इस लेख ने मुंबई के
प्रवासियों के मध्य एक बहस शुरू कर दी थी. गढवाली भाषा में प्रकशित लेख यदि
प्रवासियों के मध्य बहस खड़ा कर दे तो यह बडी बात मानी जाती है. मुंबई कई
सामाजिक संस्थाओं कि बैठकों में इस विषय पर खूब चर्चा हुई.शैलसुमन संस्था
की एक बैठक में मै शामिल भी था )
जी हाँ ! हाँ जी ! तुमन बि
बुलण बल यु ढांगूवळो क्या क्या टुटब्याग सिखाणु च बल प्रवासी द्वी ब्यौ
कौरन . भौतुन बुलण बल ये गंगा सलण्या तै असंवैधानिक बात करद शरम ल्याज बि
नि औणि. कै कै न त बोलि दीण बल ये कुटबक्या, कुबोलिक कुकरेती तै कुकराण
(सभा में कही गयी असंगत या भद्दी बात) करद अपण संविधान की याद कतै बि नि
रौंदी- कुजाण ! कुजाण ! यू कुकरेती किलै कुजाति होणु च धौं! कत्युंन बुल न
बल यू कुमत्या ह्व़े गे.कत्युंन कुमणाण (असंतोष) करद, करद बुलण बल ये
कुमनखि कुकरेती क हुक्का पाणि बन्द कारो. कुज्याण कथगा इ लोक मै देखिक इ
अपणा कमरा क किवाड़ इ बन्द करी देला धौं- कुकरेती की कुसुवाणि (असुंदर)
सूरत इ नि दिखे जाओ ! कत्युन न भगार लगै दीण बल जरूर भीष्म कुमौ (दुष्ट
परिवार ) मा पैदा ह्व़े. कति ब्वालाल बल ये पर खबेश लगी गे जो खटरागी ह्व़े
गे . तबी त जब कि हम इक्कसवीं सदी मा पौंछण वळा छंवां अर यू थ्वर्दन्या
हम तै खबेशजुग (मध्ययुग) मा लिजाणो च अर एका बतुं मा ख़ास खुगसाण (पुराणी
वस्तु की गंध) आणि च . कुकरकाटा (जसपुर गाँव का पुराना नाम) का सबि लोक
खुसफुस कारल बल जै भीषमौ पड़ ददा, बूडददा, ददा, बुबा, बाडा न रिवाज होंदा
बि द्वी ब्यौ नि कौरिन वो बुलणो च बल प्रवास्युं द्वी ब्यौ आवश्यक
ह्वावन.
पण मी या राय नि दीणु छौं. ना इ म्यरो मकसद या च
बल तुम छौंद कज्याणि क अबि दौडिक दुसर ड्वाला ल्हें आओ.
असल मा द्वी ब्यौ करणै राय त मै तै म्यरा गाँव बिटेन अयाँ डक्खु भैजी न देई.
ह्वाई क्या च बल मी वैदिन डक्खु दा तै छोड़णो मुंबई
सेंट्रल रेलवे स्टेशन जयुं छौ. गांवक हौरी बि लोक डक्खु दा तै छोड़णो उख
स्टेशन मा अयाँ छ्या. इनी स्टेशन मा इ प्रवास्युं की गढवाल विकास मा
भूमिका, भागीदारी, हिस्सेदारी, मिळवाक पर छ्वीं लगण बिसे गेन. अर बहस करदा
करदा ट्रेन सरकण बिसे गे त डक्खु दा न सब्युं तै सुणान्द सुणान्द जोर से
ब्वाल," हरेक प्रवासी जब तलक द्वी ब्यौ नि कारल तब तलक क्वी बि प्रवासी
गढवाल विकास मा क्वी भूमिका, हिस्सेदारी नि निभै सकुद.एक ब्यौ इख अर हैंको
उख ."इना डक्खु दा न इन बोली अर उना ट्रेन रवाना ह्व़े.
मी घंगतोळ मा
पोड़ी गेऊं बल यू डक्खु दा बोलि त गेयी पण क्या बली गे . मि रंगताणु रौं ,
उपयड़ मा गेऊं ( परेशान होणु रौं ), उधेड़बुन मा रौं, कि डक्खु दा न इन
उदभरि,उपड़ण्गी, उपदरि, उफंदरि, उपरच्यळो, उत्पाती बात कनै करि दे.
द्वी ब्यौ को मतबल च, अर्थ च , मीनिंग च बल प्रवासी
को एक ब्यौ प्रवास मा अर हैंको ब्यौ गढवाल मा. एक दै मेरो समज मा आई बल
डक्खु दा बुलणो मतलब च बल जब क्वी बि प्रवासी उन्ना- देसन (परदेस) अपण
ड़्यार आलु त गाँ मा मुंडो ठुन्ग मारणो बान एक भली कज्याणि क कुंगळ-
कुंगळ हथ राला अर ठुन्ग मारणो कठोर नंग राला. जब प्रवासी ड़्यार जालो त उख
बि कज्याणि क नरम नरम खुकली राली, अर प्रवासी वीं खुकलिम मुंड धौरिक द्वी
घड़ी झपांक निंद गाडी द्यालों. अहा उख गाँ मा प्रेम रस कि गंगा बौगली.
पण मी जाणदो छौं बल डक्खु दा कबि बि रंगमतो,
रमकण्या, रसीली, रंगीली,सेक्सीली छ्वीं लगान्दु इ नी च . सिंगार या प्रेम
रस से डक्खु दा इनी भाजदो जन आंसू गैस से हड़ताली, पेस्ट कंट्रोल से
कीड़-मक्वड़, बी.जे.पी से मुस्लिम लीग.
पण डक्खु दा क्वी बि बात सुदि कबि नि बोल्दो. फिर मीन
घड्याई जु मै सरीका प्रवासी क एक ब्यौ ड्यारम बि ह्वाओ त क्या क्या
परिवर्तन गढवाळ का गौं मा ऐ जाला. जु हरेक प्रवासी क द्वी ब्यौ होला त उख
क्या क्या बदलाव आई जाला. कुछ ना कुछ भलो त होलू इ.
ह्वाल क्या? जौं पुंगड्यू मा मेरी बूड ददि , मेरी
ददि, मेरी ब्व़े खेती करदी छे, धाण करदी छे अर खार्युंक खारी क्वाद ,
झन्ग्वर,, ग्युं , सट्टी, तोर, उड़द, गैथ उप्जान्दा छ्या ऊ पुंगड़ आज बांज
पड्या छन.ऊं नजीला पुंगड़ो मा आज मळसु फुळणु च या लैंटीना क बुट्या पैदा
हूणा छन. जौं डाँडो पुंड्यू मा ग्युं, गैथ होंदा छा अज उख कुळै या कांडो
झाड उग्याँ छन. जख झंगवर कोदो होंदो छौ उख हिसर -किनग्वड़ जम्याँ छन. हाँ,
हाँ जु म्यार एक ब्यौ ड्यारम गां मा बि होलू याने हरेक प्रवासी क एक ब्यौ
ड्यारम होलू य़ी बांज पड्या गिंवड़, लवड़, लयड़, तुर्यड़, कुदड़, झंगर्यड़,
सट्यड़, मुंगर्यड़, गथ्वड़ अवाद ह्व़े जाला.
कबि मै सरीखा प्रवासीक बड़ा बड़ा तिबारिदार,
जंगलादार , तिभितर्या, तिमंजिल्या कूड़ा होंदा छ्या जौं कूड़ो तै पक्को ढंग
से चिणणो बान हमारा बूड बुड्यो न उड़द , गैथों मस्यटु माटु मा मिलै छौ आज वो
कूड कांडो क कूड बण्या छन. जौं कुड़ो तै लाल माटोन लिपे जांद छौ आज वूं
दिवल्यूं पर बौड़, पिपुळ,कंडाळी क बुट्या जम्याँ छन. जौं चौकूं मा
संग्रांदि दिन औजी नौबत बजाणो आंदा छया आज ऊं चौकूं मा कुकुर बि नि आन्द
.आज चौक-कूड़ आर्कियोलौजिकल सर्वे लैक धरोहर बणण वाळ छन.आज गाँ हडप्पा
संस्कृति का अवशेष जन बौणि गेन.
हाँ जु
सबि प्रवास्युं दु दु ब्यौ (एक परदेस मा अर एक गाँ मा) होला त य़ी कूड
खन्द्वार होण से बची जाला. कूड कूड राला जख मनिखों बास ह्वाल ना कि उळकाणो
(उल्लु) बास . आज यि हाल छन बल जख घोड़ी ब्योला तै लिजांदी छे अब वै घोड़ी
मुर्दों तै मड़घट लिजौणौ काम आणि च . सैत च प्रवास्यूं द्वि ब्यौ हूण
से फिर से घोड़ी ब्यौलों तै लिजाणो काम आली अर मुर्दा फिर से मनिखों कंधौं
मा मड़घट जावन ! सैत च प्रवास्यूं द्वि ब्यौ हूण से या भयावह स्तिथि
ख़तम ह्व़े जाली !
पण यक्ष प्रश्न त या च बल विकास अर गढवाल तै आवाद
रखणो बान क्या यो अमानवीय, असंवैधानिक, टुटब्यग्या, कुबगत्या एक मात्र
रस्ता, बाटु बच्यूं च? या गढ़वाल़ो यू दुर्भाग्य च बल पलायन की आंधी त
रुके नि सक्यांदी पण गौंऊँ तै आवाद करणो बान द्वी ब्यौ एक लाचारी समणि च.
प्रवास्युं लाचारी च बल प्रवास अर गढवाल की लाचारी च विकासो बान
प्रवास्यूं शारीरिक भागीदारी. गढ़वालौ विकासो बान प्रवास्यूं शारीरिक
भागीदारीउथगा इ जरोरी च जथगा गढवाल तै हिमाला कि जरोरात. त क्या शारीरिक
भागीदारी, हिस्सेदारी या विकासौ मिळवाको बान प्रवास्यूं मा द्वी ब्यु इ
विकल्प बच्यूं च ? क्या गढवाल तै दुबारो आवाद करणो बान फिर खबेसी जुग मा
जाण पोड़ल ?
मीन खूब घड़याई , स्वाच त पाई कि अरे डक्खु दा को मतलब कुछ हौरि छौ.
ओहो ! डक्खु दा न मै सरीका प्रवासी पर व्यंग
का बाण , तून का भाला, ताना का बरछा, गूढ़ व्यंजना को बसूला चलाई, आक्षेप
की कुलाड़ी नपाई . आक्षेप की या कुलाड़ी वूं प्रवास्युं पर चलये गे जो
समोदर का छाल पर बैठिक गढ़वाल का बारा मा मगरमच्छी अंस्दारी बगाणा रौंदन.
डक्खु दा न व्यंग का बरछा वूं पर्वास्यूं पर मार जो इख सेमिनारो मा गढ़वाल
का विकास का बारा मा खूब भुकदन पण असल मा गढवाळो बाटो बिसरी इ गेन। गूढ़
व्यंजना को बसूला डक्खु दा न वूं मुंबई का प्रवास्युं पर चलाई जौं तै
सिक्षा क बारा मा क्वी ज्ञान इ नी च पण गढवाल विश्व विद्यालय का सिलेबस पर
बडी बडी बहस करदन. डक्खु दा न वूं प्रवास्युं पर तून का भाला चुलाई जु तीस
साल से गढवाल नि गेन पण इख लम्बा लम्बा भाषण दीणा रौंदन कि गढवाल मा
टूरिज्म /पर्यटन उद्योग कनो होण चयेंद.
असल मा डक्खु दा न प्रवास्युं क
द्वी ब्यौ को शब्दों से प्रवास्युं तै एक रैबार दे बल इख मुंबई मा गढ़वाल
विकासौ छ्वीं नि लगावदी अर साल तीन साल मा अपण गाँ जैका विकास मा शारीरिक
भागीदारी निभाओ. समोदर का छाल पर गढ़वाल विकास का बारा मा फ़ोकट मा नि
र्वाओ बल्कण मा साल द्वी साल मा उख जाओ अर थ्वडा इ सै कुछ करो. टूरिस्ट को
तरां उख गढवाल नि जाओ बल्कण मा इन जाओ जन बुल्यां तुमारो उख भरो पूरो
परिवार च.इखम बैठिक 'गढवाल के विकास में प्रवासियों की भूमिका' पर निख्त्ती
भाषण से कुछ नि होण .बल्कण मा जब तलक उख शारीरिक भागीदारी नि निभैला त कुछ
नि ह्व़े सकदो.डक्खु दा को द्वी ब्यौ को असली मन्तव्य त या छौ बल
प्रवास्युं शारीरिक भागीदारी.
मि द्वी ब्यौ त न्हि करि सकुदु पण अपुडु गड़वाळ बौड़ी अइ गेओं। हालांकि गां मा न्हि अउं हजी पण श्री गड़वाळ (श्रीनगर) मा अइ गेओं।
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