- बृजेन्द्न् नेगी (सहारनपुर)
मैला-कुच्यला, फट्या खुरदरा हाथ
मट्यण , म्वल्यणा, खरश्यणा गात
खुचिली माँ सिर्फ आंशू अर पीड़ा
खैरी ही जीवन कु एक मात्र रस्ता
जरा ईकी निष्टा त देखा
गुढ्यार माँ बंध्या लैंदा-बैला गोर
द्वि पूली घास कु अट्क्द धार-धार
सासु की गाली अर पतरोल कु डौरल
जम्मा नि दयाख्दी भ्याल अर पाखा
जरा ईकी हिम्मत त देखा
पुंगडी-पटल्यु की धाण-धंदा
वेक मथि नौना-बालों की घिम्साण
द्वि बक्ता की चूल्हा की हलंकार
निकज्जू आदिम की हालत खस्ता
फिर भी इंकू समर्पण त देखा
मैला-कुच्यला, फट्या खुरदरा हाथ
मट्यण , म्वल्यणा, खरश्यणा गात
खुचिली माँ सिर्फ आंशू अर पीड़ा
खैरी ही जीवन कु एक मात्र रस्ता
जरा ईकी निष्टा त देखा
गुढ्यार माँ बंध्या लैंदा-बैला गोर
द्वि पूली घास कु अट्क्द धार-धार
सासु की गाली अर पतरोल कु डौरल
जम्मा नि दयाख्दी भ्याल अर पाखा
जरा ईकी हिम्मत त देखा
पुंगडी-पटल्यु की धाण-धंदा
वेक मथि नौना-बालों की घिम्साण
द्वि बक्ता की चूल्हा की हलंकार
निकज्जू आदिम की हालत खस्ता
फिर भी इंकू समर्पण त देखा
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