- बृजेन्द्र नेगी (सहारनपुर)
पलायन कैकी
देसुन्दका रंग-ढंग देखि
हवेग्या वैथे रक् रयाट
बोली छोड़ी कि
संस्कृति भूलिकी
जब
हर्च ग्या पछ्याण
तब खुज्याणु
अपणी बोली की अपण्यास
कखी संस्था बनाणु , कखी सभा
कभी सम्मलेन कर्द, कभी उत्तराखंड संध्या
पर आखिर कब तक
जब तक च वेकि साँस
किलैकी----?
वेकि अग्नेई जो पीड़ी बणयी
वीं थै अपणी पछ्याण
नि बथइं
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