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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, May 27, 2012

बाँध की विभीषिका पर आधारित गढ़वाली कविता : डाम

त्वे भी डाम
मी भी डाम
कन्न कपाल लग्गीं यी डाम
सरया पहाड़  जौंल  डाम

कैक मुख आई  पाणि
कैकी लग्ग मवसी  घाम
छोट्ट छोट्टा व्हेय ग्यीं मन्खी
बड़ा बड़ा व्हेय ग्यीं यी डाम

कक्खी बुगाई सभ्यता युन्ल
कक्खी  बोग्दी गंगा थाम
तोडिक करगंड पहाड़
छाती मा खड़ा व्हेय गईं यी  डाम

उज्यला बाटा  दिखैक झूठा
कन्न अन्ध्यरौं पैटीं यी डाम
कुड़ी पुंगडी खैकी  हमरी 
कन्न जल्मीं यी जुल्मीं  डाम ?

तैरीक अफ्फ गंगा रुप्यौं की
डूबै  ग्यीं हम थेय यी डाम
बुझे  की भूख तीस अप्डी
सुखै  ग्यीं हम्थेय यी डाम

मन्खी खान्द मंस्वाग द्याख
यक्ख सभ्यता खै ग्यीं यी डाम
साख्युं कु जम्युं  ह्युं संस्कृति
चस्स चुसिऽक गलै ग्यीं  यी डाम

त्वे भी डाम
मी भी डाम
सरया मुल्क डमै ग्यीं यी डाम !
सरया मुल्क डमै ग्यीं यी डाम !


रचनाकार : गीतेश सिंह नेगी ,सर्वाधिकार सुरक्षित

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