विमलभाई
सरकार ने खूब बदनामी कमाई, राजनेता हेलिकॉटरों में घूमें, मुख्य मंत्री जी ने सरकारी योजनाओं के प्रचार के लिए पैसा दिया चैनलों पर आपदा ग्रस्त लोगांे की व्यथा कथा दिखाई जाती रही। इस बीच बहुत सारे स्वंय स्फूर्त सेवा कर्मियों काम किया जिसकी चर्चा ज्यादा नही हुई।
अपनी समस्याओं को भूलाकर केदारघाटी के त्रिजुगीनारायण गांव के लोगांे ने लगातार अपने घरों से अनाज निकालकर खाना बनाकर यात्रियों को खाना खिलाया। इसी गांव के दर्शनलाल गैरालाजी तीन दिनों तक सोनगंगा पर लकड़ी गिरा कर और तार बांध कर लोगो को पार कराते रहे। गौरीगांव के युवाओं ने नालों पर पुल बांध कर लोगांे को आर-पार कराया और ऐसे में दीपगांव-फाटॅा का 22 वर्षीय युवा श्री बुद्धि भट्ट पैर फिसलने के कारण नदी में बह गया। गुप्तकाशी में सरकार नहीं थी, ना कोई प्रचार था पर स्थानीय लोग जुटे थे खाना बनाकर खिलाने में ताकी केदार घाटी में बाबा के दर्शनों में आये इन आपदाग्रस्त लोगों को भूखे ना रहना पड़े। बदनामी न हो घाटी की। मंदाकिनीगंगा में स्थित केदारनाथजी के रास्ते में बर्बादी आई पर लोगो ने अपनी ओर से जिसकी जो हो सही मदद की।
अलकनंदागंगा में बद्रीनाथजी, हेमकुण्ड साहिब के यात्रामार्ग पर स्थित पाण्डुकेश्वर, जोशीमठ, पीपलकोटी, गोचर, श्रीनगर जैसे छोटे पहाड़ी शहरों में तो बराबर यात्रियों के लिये लंगर चले ही। जिससे जो बन पड़ा वो किया। सरकार से पहले उत्तराखंड के लोगों ने किया।
गोपेश्वर में महिलाओं की रसोई लगी थी जिसे किसी एन.जी.ओ. ने नहीं चालू कराया था। बस गंाव की महिलायें खाना बनाकर भूखे यात्रियों को खिलाना अपना फर्ज मान रही थी। अतिथ्य सत्कार उत्तराखंड की पंरपरा ही है। तो कोई आपदाग्रस्त यात्री भूखे क्यों रहे।
श्रीनगर में जीवीके कंपनी के बांध के कारण 250 परिवारों के घर जमींदोज़ हुए किंतु कंपनी ने आकर लोगों की मदद को झंाका तक नहीं। शहर के लोग जरूर मदद में आगे आये।
गंगोत्री से आने वाले यात्रियों को भी रास्ते के भटवाड़ी, आदि सड़क किनारे के गांवो के लोगों ने जहां हो सका अपनी ओर से भोजन, कहीं बिस्कुट या जो कुछ बन पड़ा खिलाया।
दिल्ली के कालकाजी क्षेत्र में रहने वाले एक सज्जन बताते है कि कैसे वो केदारघाटी में बचकर लौट रहे थे, बुरी दशा थी और कही किसी जगह पर कोई बच्चा मिला जिसने कुछ खाने को दिया साथ में कुछ कपड़े भी दिये। ना उस बच्चे का नाम मालूम ना गांव का, पर वो कैसे भूल सकते है उस जीवनदाता को?
आज उत्तराखंड के गांवों में विपदा है। केदार घाटी ही नहीं हर नदी, नाले, गाड और गदेरांे ने पूरी तरह से अपनी सत्ता का अहसास कराया है। किनारे के मकानों तक को तोड़ा या समाप्त किया है। पर लोगों ने इसको झेला। अब पुर्ननिर्माण की बात हो रही है। काम भी चालू है। लोगों को सामान दिया भी गया है खूब संस्थाओं ने लोगांे ने सहदय रूप से पानी से लेकर अनाज, कपड़ा, बर्तन सब दिया पर पीड़ा के कठिन समय में उत्तराखंडियों ने जो तीर्थयात्रियों व पर्यटकों की सेवा की रास्ता दिखाया, खाना खिलाया, गर्म कपड़े दिये, सोने को जगह दी उसका मूल्य इसलिए नहीं है चूंकि गांवों में फिर खाने का नहीं बचा। हम कैसे भूल सकते हैं गौरी गांव के युवा बुद्धि भट्ट को।
अलकनंदानदी पर जोशीमठ से आगे गोविंदघाट के ठीक सामने जहां से हेमकुंड साहिब का रास्ता जाता है वहीं संतोष राणा का परिवार रहता है। 16-17 जून, 2013 को विष्णुप्रयाग बांध के कारण आई तेज़ बाढ़ ने अलकनंदा का पुल बहा दिया था। हजारों सिख यात्री पहाड़ी पर फंसे थे व ठंड वर्षा चालू थी। संतोष के 16 खच्चर चलते हैं। उनके लिये घर में चने की 8 बोरियां रखी थी। संतोष के परिवार ने उसे ही उबाल कर भूखे यात्रियों को खिलाया। जो कंबल थे वो भी दिये, जहां तक हो सकता था लोगों को आश्रय भी दिया। केदार घाटी पर ही मुख्य ध्यान होने के कारण कहीं बद्रीनाथ, हेमकुंड साहिब के बारे में सोच भी नहीं था। ऐसे में परेशान लोगों मानसिक रूप से भी दबाव में थे। संतोष संयोगगवश नदी के इस पार ही था। देखा की लोग फंसे है तो वो किसी तरह जोशीमठ पहुंचा बीच में रास्ते टूटे हुये थे। पैदल ही जाना था। वहां उसने स्थानीय थाने में संपर्क किया और रस्से लेकर गोविंद घाट पहुंचा। आई0टी0बी0पी0 वालों की एक रस्सी पहले से पारतक तो थी पर बचाव कार्य नही
शुरु हुआ था। संतोष ने विमलेश पंवार और तेजेन्द्र चौहान आदि के साथ रस्सी दूसरी तरफ डाली और काम शुरु कर दिया। एक तरफ पुलना-भयूदंर गांव को लीलने के बाद लक्ष्मण गंगा भयांनक रूप से आ रही और सामने अलकनंदागंगा उफन रही थी। गोविंद घाट पर गुरूद्वारे की धर्मशाला का बड़ा हिस्सा और अन्य लगभग 25 होटल दुकान-मकान बह जाने केे बाद का दृश्य भयानक हो गया था। गोविंदघाट से उपर जाने की सड़क गायब थी। संतोष के परिवार वाले भी फंसे थे। खेत बह चुके थे, पानी मकान के पास था। रस्से लगने के पहले दिन लगभग 250 यात्रियों को नदी पार कराई गई दूसरे दिन आई0टी0बी0पी0 के जवान भी आ गये और आगे की कमान उन्हांेने संभाली। तब उसने अपने परिवार को पार कराया।
मृदु मुस्कान के साथ बोलने वाला संतोष उत्तराखंड का गौरव है। साहस, धैर्य और समझदारी का सुंदर परिचय संतोष व साथियों ने दिया। जहां पार्टियों के नेताओं के मुस्कुराते चेहरे छपे पोस्टर राहत सामग्री पर जा रहे थे। देहरादून हवाई अड्डे पर टीडीपी और कांग्रेस के नेता वहंा पहुंचे यात्रियों को अपने अपने हवाई जहाज में ले जाने का झगड़ा हो रहा था। वहंा आम उत्तराखंडियों की संस्कृति को बताना भी जरुरी है। बाहरी तत्वों के द्वारा की गई कुछ गलत घटनाओं के कारण अखबारों में यह खबरें आई की आपदा के दौरान लूटपाट हुई, इन सबकी राज्य के बाहर के अखबारों में खूब चर्चा हुई इसलिये गांव-गांव में जो स्वंय स्फूर्त कार्य हुये उनको सामने लाना जरुरी है।
आज उत्तराखंड के गांवों में विपदा है। केदार घाटी ही नहीं हर नदी, नाले, गाड और गदेरांे ने पूरी तरह से अपनी सत्ता का अहसास कराया है। अपने किनारे के मकानों तक को तोड़ा या समाप्त किया है। पर लोगों ने इसको झेला। अब पुर्ननिर्माण की बात हो रही है। काम भी चालू है। लोगों को सामान दिया भी गया है खूब। संस्थाओं ने, लोगांे ने सहदय रूप से पानी से लेकर अनाज, कपड़ा, बर्तन सब दिया पर पीड़ा के कठिन समय में उत्तराखंडियों ने जो तीर्थयात्रियों व पर्यटकों की सेवा की व रास्ता दिखाया, खाना खिलाया, गर्म कपड़े दिये, सोने को जगह दी उसका मूल्य इसलिए नहीं है चूंकि गांवों में फिर खाने का नहीं बचा। हम कैसे भूल सकते हैं गौरी गांव के युवा बुद्धि भट्ट को और संतोष जैसे युवाओं को। जय उत्तराखंड!!!
विमलभाई
सरकार ने खूब बदनामी कमाई, राजनेता हेलिकॉटरों में घूमें, मुख्य मंत्री जी ने सरकारी योजनाओं के प्रचार के लिए पैसा दिया चैनलों पर आपदा ग्रस्त लोगांे की व्यथा कथा दिखाई जाती रही। इस बीच बहुत सारे स्वंय स्फूर्त सेवा कर्मियों काम किया जिसकी चर्चा ज्यादा नही हुई।
अपनी समस्याओं को भूलाकर केदारघाटी के त्रिजुगीनारायण गांव के लोगांे ने लगातार अपने घरों से अनाज निकालकर खाना बनाकर यात्रियों को खाना खिलाया। इसी गांव के दर्शनलाल गैरालाजी तीन दिनों तक सोनगंगा पर लकड़ी गिरा कर और तार बांध कर लोगो को पार कराते रहे। गौरीगांव के युवाओं ने नालों पर पुल बांध कर लोगांे को आर-पार कराया और ऐसे में दीपगांव-फाटॅा का 22 वर्षीय युवा श्री बुद्धि भट्ट पैर फिसलने के कारण नदी में बह गया। गुप्तकाशी में सरकार नहीं थी, ना कोई प्रचार था पर स्थानीय लोग जुटे थे खाना बनाकर खिलाने में ताकी केदार घाटी में बाबा के दर्शनों में आये इन आपदाग्रस्त लोगों को भूखे ना रहना पड़े। बदनामी न हो घाटी की। मंदाकिनीगंगा में स्थित केदारनाथजी के रास्ते में बर्बादी आई पर लोगो ने अपनी ओर से जिसकी जो हो सही मदद की।
अलकनंदागंगा में बद्रीनाथजी, हेमकुण्ड साहिब के यात्रामार्ग पर स्थित पाण्डुकेश्वर, जोशीमठ, पीपलकोटी, गोचर, श्रीनगर जैसे छोटे पहाड़ी शहरों में तो बराबर यात्रियों के लिये लंगर चले ही। जिससे जो बन पड़ा वो किया। सरकार से पहले उत्तराखंड के लोगों ने किया।
गोपेश्वर में महिलाओं की रसोई लगी थी जिसे किसी एन.जी.ओ. ने नहीं चालू कराया था। बस गंाव की महिलायें खाना बनाकर भूखे यात्रियों को खिलाना अपना फर्ज मान रही थी। अतिथ्य सत्कार उत्तराखंड की पंरपरा ही है। तो कोई आपदाग्रस्त यात्री भूखे क्यों रहे।
श्रीनगर में जीवीके कंपनी के बांध के कारण 250 परिवारों के घर जमींदोज़ हुए किंतु कंपनी ने आकर लोगों की मदद को झंाका तक नहीं। शहर के लोग जरूर मदद में आगे आये।
गंगोत्री से आने वाले यात्रियों को भी रास्ते के भटवाड़ी, आदि सड़क किनारे के गांवो के लोगों ने जहां हो सका अपनी ओर से भोजन, कहीं बिस्कुट या जो कुछ बन पड़ा खिलाया।
दिल्ली के कालकाजी क्षेत्र में रहने वाले एक सज्जन बताते है कि कैसे वो केदारघाटी में बचकर लौट रहे थे, बुरी दशा थी और कही किसी जगह पर कोई बच्चा मिला जिसने कुछ खाने को दिया साथ में कुछ कपड़े भी दिये। ना उस बच्चे का नाम मालूम ना गांव का, पर वो कैसे भूल सकते है उस जीवनदाता को?
आज उत्तराखंड के गांवों में विपदा है। केदार घाटी ही नहीं हर नदी, नाले, गाड और गदेरांे ने पूरी तरह से अपनी सत्ता का अहसास कराया है। किनारे के मकानों तक को तोड़ा या समाप्त किया है। पर लोगों ने इसको झेला। अब पुर्ननिर्माण की बात हो रही है। काम भी चालू है। लोगों को सामान दिया भी गया है खूब संस्थाओं ने लोगांे ने सहदय रूप से पानी से लेकर अनाज, कपड़ा, बर्तन सब दिया पर पीड़ा के कठिन समय में उत्तराखंडियों ने जो तीर्थयात्रियों व पर्यटकों की सेवा की रास्ता दिखाया, खाना खिलाया, गर्म कपड़े दिये, सोने को जगह दी उसका मूल्य इसलिए नहीं है चूंकि गांवों में फिर खाने का नहीं बचा। हम कैसे भूल सकते हैं गौरी गांव के युवा बुद्धि भट्ट को।
अलकनंदानदी पर जोशीमठ से आगे गोविंदघाट के ठीक सामने जहां से हेमकुंड साहिब का रास्ता जाता है वहीं संतोष राणा का परिवार रहता है। 16-17 जून, 2013 को विष्णुप्रयाग बांध के कारण आई तेज़ बाढ़ ने अलकनंदा का पुल बहा दिया था। हजारों सिख यात्री पहाड़ी पर फंसे थे व ठंड वर्षा चालू थी। संतोष के 16 खच्चर चलते हैं। उनके लिये घर में चने की 8 बोरियां रखी थी। संतोष के परिवार ने उसे ही उबाल कर भूखे यात्रियों को खिलाया। जो कंबल थे वो भी दिये, जहां तक हो सकता था लोगों को आश्रय भी दिया। केदार घाटी पर ही मुख्य ध्यान होने के कारण कहीं बद्रीनाथ, हेमकुंड साहिब के बारे में सोच भी नहीं था। ऐसे में परेशान लोगों मानसिक रूप से भी दबाव में थे। संतोष संयोगगवश नदी के इस पार ही था। देखा की लोग फंसे है तो वो किसी तरह जोशीमठ पहुंचा बीच में रास्ते टूटे हुये थे। पैदल ही जाना था। वहां उसने स्थानीय थाने में संपर्क किया और रस्से लेकर गोविंद घाट पहुंचा। आई0टी0बी0पी0 वालों की एक रस्सी पहले से पारतक तो थी पर बचाव कार्य नही
शुरु हुआ था। संतोष ने विमलेश पंवार और तेजेन्द्र चौहान आदि के साथ रस्सी दूसरी तरफ डाली और काम शुरु कर दिया। एक तरफ पुलना-भयूदंर गांव को लीलने के बाद लक्ष्मण गंगा भयांनक रूप से आ रही और सामने अलकनंदागंगा उफन रही थी। गोविंद घाट पर गुरूद्वारे की धर्मशाला का बड़ा हिस्सा और अन्य लगभग 25 होटल दुकान-मकान बह जाने केे बाद का दृश्य भयानक हो गया था। गोविंदघाट से उपर जाने की सड़क गायब थी। संतोष के परिवार वाले भी फंसे थे। खेत बह चुके थे, पानी मकान के पास था। रस्से लगने के पहले दिन लगभग 250 यात्रियों को नदी पार कराई गई दूसरे दिन आई0टी0बी0पी0 के जवान भी आ गये और आगे की कमान उन्हांेने संभाली। तब उसने अपने परिवार को पार कराया।
मृदु मुस्कान के साथ बोलने वाला संतोष उत्तराखंड का गौरव है। साहस, धैर्य और समझदारी का सुंदर परिचय संतोष व साथियों ने दिया। जहां पार्टियों के नेताओं के मुस्कुराते चेहरे छपे पोस्टर राहत सामग्री पर जा रहे थे। देहरादून हवाई अड्डे पर टीडीपी और कांग्रेस के नेता वहंा पहुंचे यात्रियों को अपने अपने हवाई जहाज में ले जाने का झगड़ा हो रहा था। वहंा आम उत्तराखंडियों की संस्कृति को बताना भी जरुरी है। बाहरी तत्वों के द्वारा की गई कुछ गलत घटनाओं के कारण अखबारों में यह खबरें आई की आपदा के दौरान लूटपाट हुई, इन सबकी राज्य के बाहर के अखबारों में खूब चर्चा हुई इसलिये गांव-गांव में जो स्वंय स्फूर्त कार्य हुये उनको सामने लाना जरुरी है।
आज उत्तराखंड के गांवों में विपदा है। केदार घाटी ही नहीं हर नदी, नाले, गाड और गदेरांे ने पूरी तरह से अपनी सत्ता का अहसास कराया है। अपने किनारे के मकानों तक को तोड़ा या समाप्त किया है। पर लोगों ने इसको झेला। अब पुर्ननिर्माण की बात हो रही है। काम भी चालू है। लोगों को सामान दिया भी गया है खूब। संस्थाओं ने, लोगांे ने सहदय रूप से पानी से लेकर अनाज, कपड़ा, बर्तन सब दिया पर पीड़ा के कठिन समय में उत्तराखंडियों ने जो तीर्थयात्रियों व पर्यटकों की सेवा की व रास्ता दिखाया, खाना खिलाया, गर्म कपड़े दिये, सोने को जगह दी उसका मूल्य इसलिए नहीं है चूंकि गांवों में फिर खाने का नहीं बचा। हम कैसे भूल सकते हैं गौरी गांव के युवा बुद्धि भट्ट को और संतोष जैसे युवाओं को। जय उत्तराखंड!!!
विमलभाई
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आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments