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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, October 29, 2013

पलायन क्या च ?

 चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती 
     
(s =आधी अ  = क , का , की ,  आदि )
पलयन एक भयंकर घटना होलि तबि त जु सद्यनौ कुण   प्रवासी ह्वे जांदन अर जु प्रवासी बणणो आतुर्दि मा रौंदन वु द्वि चटेलिक  पलायन तैं गाळि  दीणा रौंदन। 
पलायन गाळि दींणै चीज च। पलायन तैं गाळि दीणो पाखंड हरेक पहाड़ी करणु रौंद। पलायन  समज से परे च।
पहाड़ों से पलायन इन पंक (कीचड़ ) च जै मा  हरेक पहाड़ी पँचक्रीड़ा करदो  पण दगड़ मा दुसरो कुण बुलद तू पलायन नि कौर ! 
हरेक पहाड़ी पलायन की पंचकोशी यात्रा वास्ता सदा तत्पर रौंद पण बाद मा सरकार से निवेदन बि करद बल या  पंचकोशी यात्रा बंद हूण चयेंद।  
पहाड्यूं  आर्थिक दशा सुधारणो बान पलायन पंचकषाय (पांच वृक्षों का मिश्रित कसैला द्रव्य ) दवा च पण दगड़म जनि दशा ठीक हूंद रोगी यी दवा तै थू थू करण बिसे जांद। 
पलायन से पैल प्रवास पंचरंगा सुपिन हूंद पण जनि सुपिन सही ह्वे जांद हम प्रवास तै बेबसी नाम दे दींदा। 
हम सब पहाड़ी पलायन का पंथी छंवां फिर बि पलायन तैं अभिशाप बुलदवां। 
हम पलायन रुकणो बान पक्षाभास (झूठी अर्जी ) करदां असल मा क्वी नि चांदो कि पलायन पर पक्षाघात रोग लग जावो । 
हम पलायनै  अगली पंक्ति मा खड़ ह्वैक पैथर वाळु  तै अड़ान्दा कि पलायन नि कारो।
पलायन तैं रुकणो बान हरेक माथापच्ची करदो पण व्यवहारिक स्तर पर क्वी बि पलायन  रुकणो पचड़ा मा अफु नि पड़ण चांद।
जब बि क्वी  विरोधी दल मा हूंद त वै तैं पहाड़ो से पलायन रुकणै  फिकर पड़ी रौंद अर जनि वो मंत्री -संतरी बौण जांद पलायन क्वी समस्या ही नि रै जांद।
पलायन रुकणो विषयों पर भाषण अवश्य हूँदन पण सरकारी योजनाउं  मा पलायन रुकणो बान क्वी सटीक पॉलिसी , प्लानिंग , योजना नि होंदन।  
कवियों -लेखकों -विचारकों बान पलायन एक विशेष अर लाडलो विषय च अर इलै हरेक कवि -लेखक -विचारक पलायन तै अनुभव करणो बान मैदान मा बंगलो खोज मा रौंद। 
पलायन एक अनाथ , कोढ़ी बच्चा च जै पर सब तै केवल दया आंद।
पलायन सब तैं परिमूढ़ करद पण सबि पलायन का कब्जा मा हि रौण चांदन । 
फेस बुक मा उजड़ी कुड़ी , टुटि तिबारी -डिंडळि कि फोटो like करणै चीज च अर वांक समाधान पर जब क्वी कुछ ल्याखो त वै लेख तैं क्वी  नि पढ़दो।   
पलायन की बात करण असल मा मजाक , मसखरी अर मजा लीणो एक माध्यम च।   



Copyright@ Bhishma Kukreti  29 /10/2013 



[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य;सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...]

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