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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, October 29, 2013

उर्ख्यळौ दगड़ छ्वीँ बथा

चबोड़्या -चखन्यौर्या -  भीष्म कुकरेती 
     
(s =आधी अ  = क , का , की ,  आदि )
मि उर्ख्यळ से बचिs  कखि जाणु छौ।  पैल हम उर्ख्यळ तैं सम्मान दीणो बान  कि कखि उर्ख्यळ पर खुट नि लग जावन कु कारण से दूर दूर हिटद छा आज इलै फार फार  हिटदा कि कखि उर्ख्यळ हम तैं फ़ोकट मा हमरु भूतकाल , हमर पास्ट नि समळै (याद ) नि द्याओ ! 
मि  अगनै जाण  इ वाळ थौ  कि बेड़ बिटेन उर्ख्यळन आवाज दे।
उर्ख्यळ- भीषम कख छे  मुक लुकैक जाणु ?
मि -कखि ना।   नजीबाबाद से बस आण वाळ च त दूध लीणो जाणु छौं। 
उर्ख्यळ-तुम सब अचकाल अपण पुरण पीढ़ी याने ब्वे -बाब -काका -बाडाउं अर हम उर्ख्यळ या जंदरूं देखि इन भागदां  जन बुल्यां हम क्वी खजि वाळ कुत्ता हुवां धौं ! 
मि -नै नै इन बात नी  च असल मा तुम लोग हम तै भविष्य से वापस लैक सौ साल पैलाक भूतकाल मा ली जांदां।  
उर्ख्यळ- बकबास करणु छे ?  तुमर पुरण पीढ़ी तुम तैं भूतकाल मा ली जांद ?
मि -अर ना ब्याळि मी लाइटरन चिमनी बळणु  छौ त घना ददा चिरडाण  बिसे गेन बल अहा क्या दिन छा जब हम अग्यल से आग जगांद छा अर द्याखो ईं नई पीढ़ी तैं माचिस अर लाइटर से आग जळान्दन ! 
उर्ख्यळ-त इखम घना दादान बुरु क्या ब्वाल ?
मि -अरे आज वैज्ञानिक अन्वेषणु से फायदा उठाणो जमानो ही नी च बल्कणम अफिक नया नया अन्वेषण करणो बगत ऐ गए त हमर पुराणि पीढ़ी हम तै हर समय हमारो भूतकाल याद दिलांद अर हम तै नया जमानो दगड़ नि हिटण दींदी। 
उर्ख्यळ-ह्यां पण अपण संस्कृतिक याद करण अर कराण बुरु च क्या ?
मि -हां !
उर्ख्यळ-क्या मतबल ? मि तेकुण बुलल कि क्या दिन छा जु तु गरमा गरम चपड़ चूड़ों बान म्यार काखम बैठ्यूं रौंद छौ। जनि तेरि ब्वे चूड़ा कूट ना कि तु खंक्वाळ मरणो तयार ! 
मि -हां पण अब जब पोहा चौंळ मिलणा छन त उरख्यळम  बैठणो क्या तुक ? 
उर्ख्यळ-पण अपण भूतकाल ?
मि -सूण ये उर्ख्यळ ! जब मनुष्य का पास उर्ख्यळ नि छा तो मनुष्य अनाज कनकै कुटद छौ ?
उर्ख्यळ-उफ़ ! हम उर्ख्यळ-गंज्यळु मा लोक कथा च बल तब बिचारा मनिख ल्वाड़न अनाज तै पटाळ मा धौरिक अनाज कुटुद छौ।  बिचारा बड़ी परेशानी मा रौंद छौ।     
मि -अर जु हम मनिख इनी अपण पुराणि संस्कृति का चक्कर मा रौंदा त क्या उर्ख्यळ-गंज्यळु खोज हूंद ?
उर्ख्यळ-ना !
मि -जु हम अनाज कुटणो बान पटाळ -ल्वाड़ पर हि चिपक्यां रौंदा त उर्ख्यळ-गंज्यळु प्रचार -प्रसार हूंद ?
उर्ख्यळ-ना 
मि -जु हम ल्वाड़- पटाळ  से अनाज पिसणो ब्यूँत पर चिपक्यां रौंदा त जंदरूं अंवेषण हूंद ? 
उर्ख्यळ-ना . 
मि -जु हम मनिख पुरण गंज्यळ पर चिपक्या रौंदा त गंज्यळs  तौळ  धातु लगद ?  
उर्ख्यळ-ना !
मि -त फिर तू हर बार किलै उलाहना दींदी कि हम उर्ख्यळ-गंज्यळुतै याद कारो , याद कारो ?
उर्ख्यळ-यां पण पुराणि संस्कृति ? 
मि -देख संस्कृति एक बगदी नदी च।  आज हम  फ़्लोर मिल मा जांदा , भोळ नया किस्मौ आटा चक्की आली तो हम तै नई चक्की अंगीकार करण पोड़ल। 
उर्ख्यळ-त इन मा  हमर क्या होलु ?
मि -देख जब कै बि चीजो व्यवहारिक महत्व ख़तम ह्वे जांद त वा चीज कला मा शामिल ह्वे जांद।  जन कि हाथी मा चलण आज  केवल एक कला च।  
उर्ख्यळ- हमर अब उपयोग नि रै गे त हम अब केवल कला युक्त चीज बस्तर ह्वे गेवां ?
मि -बिलकुल अब सिल्वट , उर्ख्यळ-गंज्यळ , लालटेन कला मा शामिल ह्वे गेन।  
उर्ख्यळ-फिर संस्कृति को क्या होलु ?
मि -देख !  संस्कृति क्वी स्थिर चीज नी  च। विज्ञान की  खासियत च कि पुराणि संस्कृति खतम कौरिक नई संस्कृति लाण। नित नया अन्वेषण, प्रयोग  करण ही मनुष्यों असली संस्कृति च।  
उर्ख्यळ-त एक काम कौर मै तैं कै विदेसी म्यूजियम मा धौरि दे। 
मि -किलै ?
उर्ख्यळ-अरे विदेसी लोग द्याखल त सै बल गढ़वाली संस्कृति क्या छे !


Copyright@ Bhishma Kukreti  30 /10/2013 



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