चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती
अदबुडेड़ याने मिडल एज जब आंद त पता इ नि चल्दो बल हम अदबुडेड़ आयु मा छंवां कि बुडे गेवां। जनता की भारी मांग पर अदबुडेड़ याने मिडल एज की पछ्याणक बताणु छौं !
(s =आधी अ = क , का , की , आदि )
अदबुडेड़ याने मिडल एज जब आंद त पता इ नि चल्दो बल हम अदबुडेड़ आयु मा छंवां कि बुडे गेवां। जनता की भारी मांग पर अदबुडेड़ याने मिडल एज की पछ्याणक बताणु छौं !
जब तुम तैं लग बल तुमर सरैल धोकादारी करणु च त समजण चएंद तुम अदबुडेड़ ह्व़े गेवां।
जब बि तुम तैं लग बल तुम तैं छोड़ि सबि जवान छन तो इक मा सुचणै जरोरात नि रै जांद कि तुम अदबुडेड़ ह्व़े गेवां।
जब तुमर खुचर्याट करण पर बि टिकेट कलक्टर रेल मा तुम तै वरिष्ठ नागरिक वळ डिस्काउंट की सुविधा नि द्यावो तो अवश्य ही तुम अदबुडेड़ याने मिडल एज मा ही छंवां !
जब छुटि दिन याने रवि वारौ खुणि दिन मा घुमणा जगा तुम सीण पसंद करदा त मानी लेवा कि अब तुमारि अदबुडेड़वी च।
अदबुडेड़ वा वय ह्वे जब तुम तैं लगद कि अब दुनिया मा जणणन (ज्ञान ) कुण कुछ नि रयुं च।
अदबुडेड़ आयु मा विरोधी लिंग मा उथगा आकर्षण नि हूंद जो आकर्षण कुछ साल पैल दिखेंदी छे। याने की जब दिल मा "कुछ कुछ होता है " भाव पैदा हूण बंद ह्वे जावन तो मनण चएंद कि तुमर उमर अदबुडेड़ की च।
अदबुडेड़ मा आखर छुट दिखेण मिसे जांदन।
अदबुडेड़ आयु मा विरोधी लिंग मा उथगा आकर्षण नि हूंद जो आकर्षण कुछ साल पैल दिखेंदी छे। याने की जब दिल मा "कुछ कुछ होता है " भाव पैदा हूण बंद ह्वे जावन तो मनण चएंद कि तुमर उमर अदबुडेड़ की च।
अदबुडेड़ मा आखर छुट दिखेण मिसे जांदन।
जब अपण कर्याँ कामु तै तुम भुलि जावो तो समजो कि अब अदबुडेड़ छंवां।
जब मृत्यु से डौर लगण बिसे जावो तो समजो कि तुम मिडल एज का ह्वे गेवां।
जब बि तुम तैं अपण नजरौ चश्मा खुज्याणम दिक्कत हूण बिसे जावो तो समजी ल्यावो कि तुम अदबुडेड़ ह्व़े गेवां।
जब बि कै जनानी /मर्द से आकर्षण ह्वावो बि अर तुम तै लगद कि तुमम वै जनन /मर्द से मिलणो समय नी च त समज लीण चएंद कि तुम अदबुडेड़ ह्व़े गेवां।
जब तुमर बच्चा तुम पर कम ध्यान दीण बिसे जावन तो इखमा द्वी राय नि ह्वे सकदन कि तुम अदबुडेड़ ह्व़े गेवां।
जब तुम तैं बाथरूम को बड़ो आइना माँ अपण छवि झूटी लगदि तो मानि ल्यावो कि तुम अदबुडेड़ ह्व़े गेवां।
जब तुम " जवान रहने के सौ नुक्से " जन किताब पढ़ण पसंद करदा तो मानि ल्यावो कि तुम अदबुडेड़ ह्व़े गेवां।
[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी के जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के पृथक वादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण वाले के भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य;सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...]
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