(गढ़वाल, उत्तराखंड,हिमालय से गढ़वाली कविता क्रमगत इतिहास भाग - 246)
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(Critical and Chronological History of Garhwali Poetry, part -246)
By: Bhishma Kukreti
Editor of Ud Ghughti Ud informs that Rakesh Chandra Nautiyal lives in Araghar, Dehardun and published a few Garhwali poems.
दुन्यां कि तर्प पीठ (गढ़वाली कविता )
-रचना -- राकेश चन्द्र नौटियाल
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(s =आधी अ )
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गांधीजि का बांदर
उकतैs ग्ये छया
बुढ्या ह्वेगि छा
जबरि बिटिs
एकान आँखा
हैङ्कान गिच्चु
अर तीसरान कन्दूड़
बुजि छा।
ज्यू कन्न ल्हेगी छौ
वूं कु दुन्यां तैंs
देखण सुणण कु
दुन्यां कि छुई बत्त
ल्हगौण कु।
करि फैसला ऊँन
नि रण अब यख
आँखा मूंजीक
गिच्चू बूजीक
अर कन्दूड़ बन्द कौरिक।
तिन्नी बांदर अब
देखण ल्हगी छा
रंग दुन्यां का।
सुणण ल्हगी छा
बत्त दुन्यां कि।
गांधी जि का टैम बिटिs
भौत बदले गै छै दुन्यां
भलैs कि ना
जाsदा बुरैs कि ह्वेगि छै दुन्यां
गरीब -गुरबौं पर राज
कन्न ल्हगी छै दुन्यां।
सत्य प्रेम अहिंसा छोडीक
अत्याचारि ह्वेगि छै दुन्यां
सत्यमेव जयते का निस
असत्य पुजण ल्हेगी दुन्यां।
एको ब्रह्म द्वितीय नास्ति पर
भगवान लडौणी छै दुन्यां
राम राम बिसरैक
रावण राज चलौणी छै दुन्यां।
बांदर ह्वेगिन उदास
बूजी दिनेन ऊँन अपणा
गिच्चा , आँखा अर कन्दूड़
अर निरासेक बैठि गैनी
दुन्यां कि तर्प फेरीक पीठ।
(उड़ घुघुती उड़ , पृष्ठ १०९ )
Copyright@ Bhishma Kukreti, 2017
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