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चबोड़ , चखन्यौ , ककड़ाट ::: भीष्म कुकरेती
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चबोड़ , चखन्यौ , ककड़ाट ::: भीष्म कुकरेती
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(कुरुराज सम्राट युधिष्ठर का शयनकक्ष )
पाराशर ऋषि - कुंती पुत्र युधिष्ठिर ! इथगा रात अर मि तै बुलाइ अर उ बि अपण शयनकक्ष मा ?
युधिष्ठर -ऋषिवर ! जब चिंता का निवारण न ह्वावो त क्या दिन , क्या रात या क्या सिंघासन।
पाराशर - ज्ञानी युधिष्ठिर ! चिंता तो युधिष्ठिर से दूर भगदि त क्योंकर चिंता ?
युधिष्ठिर -हे गीता विद्वान ! हे सर्वश्रेष्ठ मनोविज्ञानौ विद्वान ! मनुष्य कथगा बि ज्ञानी हो कुछ क्षण इन आंदन जब चिंता दूर नि हूंदी।
पाराशर - धर्मराज ! मि तैं तुम सरीका क्षत्रिय द्वी कारणों से भट्यांदन या तो मनोविज्ञान याने गीता का गूढ़ रहस्य जाणनो या गीता तै कार्यावनित करणो बान क्वी षटराग करणो बान।
युधिष्ठिर - हे मनोविज्ञान ज्ञानी ! हे गीता ज्ञानी ! आज तुम से खटराग की अपेक्षा च।
पाराशर - चक्रवर्ती सम्राट ! याने आज धर्म से अलग पथ अन्वेषण की अपेक्षा च ?
युधिष्ठिर - सांख्य योग विद्वान! तुम अन्तर्यामी छंवां।
पाराशर - धीर महापुरुष ! यदि युधिष्ठिर जन धीर अधीर हो त स्थिति बि अवश्य अति जटिल ही ह्वेली ।
युधिष्ठिर -हे आत्मसुझाव याने गीता गुरु ! स्थिति अति जटिल च।
पाराशर - हे परम शिष्य ! विषय तै पूरा सम्भाषित कारो , समझाओ, बिंगाओ ।
युधिष्ठिर - मनोविज्ञान का सर्वश्रेष्ठ गुरु श्री ! तुम जणदा इ छंवां बल राजनीतिविज्ञान गुरु श्रीकृष्ण का सुझावानुसार हमन विभिन्न क्षेत्रों मा भारत पुराण लिखणो काम विभिन्न व्यासों तै दे। प्रत्येक व्यास तै राज्य वेतन पर कुशल लिपिक याने गणेश दिए गेन।
पाराशर -हां ! जां से कि भारत का इतिहास अक्षुण रावो अर साथ साथ कुरु वंश याने पांडव वंश की सकारात्मक कीर्ति सदा अमर रावो अर इतिहास सदा ही पांडवों साथ रावो।
युधिष्ठिर - पराम् ज्ञानी ! सत्य वचन।
पाराशर - त कठिनाई क्या आयी।
युधिष्ठिर - पितामह व्यास समेत सभी व्यास पांडवुं इतिहास सकारात्मक रूप से लिखणा छन याने तुलना मा ताऊ श्री अर स्व भ्राता दुर्योधन तै खलनायक बणैक लिखणा छन।
पाराशर -हां इतिहास मा महानायक बणन हो तो तुलना मा कै ना कै तैं खलनायक आरोपित करण अत्यंत आवश्यक हूंद। पुरुषोत्तम राम राम तबि ह्वेन जब विद्वान रावण अर ऊंका संपूर्ण कुल तै कलंकित करे गे। कलंकित शत्रु उत्पादन से ही पुरुषोत्तम की उतपति हूंद।
युधिष्ठिर -हाँ सर्वज्ञाता महाऋषि ! किन्तु गंगा -नयार संगम याने बणेलस्यूं आश्रम का व्यास अपण माह्भारत खंड मा दुर्योधन भ्राता तै खलनायक नी बणाना छन अपितु सत्य लिखणा छन।
पाराशर - राजन ! मीन बि सूण कि गंगा -नयार संगम आश्रम जु बणेलस्यूं की धरती मा च का प्रखर व्यास श्री दुर्योधन तै सुयोधन सिद्ध करणा छन अर दुर्योधन श्री तै महान प्रशासक सिद्ध करणा छन।
युधिष्ठिर -हाँ ! मेरी तुलना मा दुर्योधन तै अधिक प्रजासेवी , कुशल प्रशाशक अर न्यायप्रिय बताणा छन।
पाराशर - कुंती पुत्र ! यदि सत्य सुणनै तागत च त बोलुं ?
युधिष्ठिर - ऋषिराज ! सत्य ही ब्वालो आज।
पाराशर -पांडव विरोध छोड़ द्यावो तो सुयोधन तुम से अधिक सयोग्य प्रशासक छौ , प्रजावत्सल छौ , प्रजा कुण वास्तव मा न्याय दायी छौ। हिमालय पर एकि दोष च कि वु अति शीतल हूंद अर सुयोधन कु एकि दोष छौ कि वु अति पांडव विरोधी छौ। किन्तु गद्दी का वास्ता वास्तव मा सुयोधन का प्रत्येक कार्य सही ही छौ। कुछ बि गलत नि छौ। बस शकुनि की रणनीति का समिण रणनीति राज श्रीकृष्ण की रणनीति अधिक कामयाब रणनीति साबित ह्वे।
युधिष्ठिर - योइ त संताप च। हम पांडव न्याय का कारण नि जीतां , सुयोधन अन्याय का कारण नि हार अपितु सदा ही श्रीकृष्ण की रणनीति शकुनि से अधिक कारगार छे। यदि या बात भारत पुराण याने इतिहास मा लिखे जाली तो हम पांडवों तै क्वी नि पूजल अपितु भविष्य मा भारतवासी सुयोधन की ही पूजा कारल।
पाराशर - युधिष्ठिर ! जब कि तुमर उद्देश्य महाभारत लिखवाणो बिगळयूं ही च। तुम चांदा कि कुंती अर माद्री पुत्रों तै पांडु का न्यायिक अर धर्मनिष्ठ पुत्र माने जाव जांसे हस्तिनापुर पर तुमर अधिकार सामाजिक , धार्मिक और न्यायिक दृष्टि से बिलकुल सही साबित हो।
युधिष्ठिर -हां।
पाराशर - युधिष्ठिर ! तुमर महाभारत लिखवाणो उद्देश्य साफ़ बल तुमर हरेक सुजन या दुर्जन रणनीति व कार्य तैं पुण्य अर धर्म नीति बताये जाय अर सुयोधन की हर नीति , कूटनीति व कार्य तै दुश्चरित्र , अधार्मिक अर अन्यायी कार्य सिद्ध करे जावो।
युधिष्ठिर -तुम से क्या लुकाण।
पाराशर -अर तेरी स्वयम की अनिर्णय क्षमता तै धर्म नीति का नाम दिए जावो , अनिर्णय से जनित प्रशाशन हीनता तै धार्मिक प्रशासन नाम दिए जाय। है ना ?
युधिष्ठिर -हूं हूं ...
पाराशर - युधिष्ठिर ! हर युद्ध मा जितण वळ हमेशा इतिहास -पुराण रचवांदो अर अफ़ु तै सत्यशील , न्यायप्रिय अर धार्मिक सिद्ध करवांदो अर विरोधी तैं अन्यायी साबित करवांदो त त्वी बि जित्यूं राजा छै तो तू बि वी करणु छै। रामकाल मा इतिहास लिखणो साधन नि छा तो रामचंद्रन श्रुति विशेषज्ञों से अपण इतिहास रचवाये। तुमम लिखवाणो साधन छन तो महाभारत रचवाणो छंवां अपण हिसाब से अपण कीर्ति अक्षुण रखवाणो वास्ता। राजकुल रीति सदा चली आयो अपण इतिहास अफिक लिखवावो।
युधिष्ठिर - ऋषिराज ! किन्तु बणेलस्यूं का व्यास श्री त अड़चन पैदा करणा छन। दुर्योधन खंड लिखणै उत्तरदायित्व त बणेली व्यास श्री का पास च अर वो दुर्योधन तै सुयोधन सिद्ध करणा छन।
पाराशर - अर युद्ध मा जित्युं युधिष्ठिर चांदो कि सुयोधन तै दुर्जन दुर्योधन नाम से कुप्रसिद्ध करे जाव।
युधिष्ठिर -हाँ ऋषिराज।
पाराशर - तो शाम दंड भेद की नीति अपणावो।
युधिष्ठिर -तुम तो सुविज्ञ छंवां। व्यास विद्वान हून्दन। वूं पर आम नीति , कूटनीति नि चलदी।
पाराशर -न्है। एक नीति हमेशा हरेक पर लागु हूंद।
युधिष्ठिर -क्या ऋषिराज !
पाराशर -हड्डी दिखावो , रान दिखाओ अर बखर खलाओ।
युधिष्ठिर - बिंगण मा नि आयी गुरुदेव !
पाराशर - बणेलस्यूं का इतिहासकार व्यास श्री तै मध्य हिमालय राजा सुबाहु तै बोलिक बणेलस्यूं , मनियार स्यूं का स्वामित्व दे द्यावो अर आश्रम का आसपास द्वी चार अति आधुनिक मेनकाओं तै छोड़ि द्यावो।
युधिष्ठिर -नयार -गंगा संगम का व्यास श्री तै बणेलस्यूं , मनियार स्यूं का स्वामित्व तो ठीक च किन्तु आधुनिक मेनका क्या धर्म विरुद्ध नि होलु ?
पाराशर - चक्रवर्ती सम्राट ! युद्ध , राजकरणी अर प्रेम मा हर नीति धर्मनिष्ठ ही हूंदी। यदि तुम चांदा कि बणेली व्यास श्री तुम तै सक्षम प्रशासक व सुयोधन तै दुर्जन सिद्ध कारो तो बणेली व्यास श्री तै भूमि , स्त्री व अन्य वर्जित सुविधाओं से भ्रष्ट करवावो। अर हां ! बणेली व्यास श्री का गणेश श्री तै बि कुछ गाँव दे देन। यूं वर्जित सुविधाओं से लतपत ह्वेक प्रत्येक व्यास वी लिखद जु राजा चांदो।
युधिष्ठिर - जो आज्ञा गुरुदेव।
पाराशर - अच्छा तो मि चलदो छौं।
युधिष्ठिर - भोळ नकुल आपक आश्रम मा आप तै दर्शन द्यालो। प्रणाम गुरुदेव।
पाराशर - सदा प्रसिद्ध भव :
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13/10 / 2017, Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India
*लेख की घटनाएँ , स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल हौंस , हौंसारथ , खिकताट , व्यंग्य रचने हेतु उपयोग किये गए हैं।
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