(गढ़वाल, उत्तराखंड,हिमालय से गढ़वाली कविता क्रमगत इतिहास भाग - )
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(Critical and Chronological History of Garhwali Poetry, part -)
By: Bhishma Kukreti
Banwari Lal Sundriyal belongs to Patganv, Pauri Garhwal. Banwari Lal Sundiyal published a couple of poems.
भूत भ्रष्टाचार को (गढ़वाली व्यंग्य कविता )
-रचना -- बनवारी लाल सुंदरियाल
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मी भूत भ्रष्टाचार को
कैरो मेरी वन्दना
ल्याव -ल्यावा झट कमीशन
या छ मेरी अर्चना।
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आज होंदी छ्वीं मेरी
गौं गौळो हर धार मा
दफ्तरों का ध्वार मा
अफसरों का द्वार मा।
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तेरो यदि क्वी काम छ
पैलि म्यार नाम ले ,
एक हाथ दाम दे
हैंक हाथ काम ले।
मी भूत भ्रष्टाचार को।
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ल्याव पव्वा हाथ म /तब करूलो बात मी
नोट दे कुछ साथ म
द्योंलो त्यारु साथ मी।
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जैन कैरी बुरै मेरि
वेकि फ़ैल पोड़ी गैरि ,
चांजू -पाँजू कैरि द्यूंलो
अपणी पूजा ले कि रौलों।
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कमीशन को हौंसिया छौं
रौन्सिया छौं दारु को
परेत छौं मी घूस को
गाँव को ना धार को।
ल्याव -ल्यावा झट कमीशन
या छ मेरी अर्चना।
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(Ref-उड़ घुघती उड़ , पृष्ठ -86 )
Copyright@ Bhishma Kukreti, 2017
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