(गढ़वाल, उत्तराखंड,हिमालय से गढ़वाली कविता क्रमगत इतिहास भाग -247 )
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(Critical and Chronological History of Garhwali Poetry, part -247)
By: Bhishma Kukreti
Harishchandra Bahuguna published a few Garhwali poems in periodicals.
-रचना -- हरिश्चन्द्र बहुगुणा (वर्तमान -कालिंकाखाल , पौड़ी गढ़वाल )
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अबि न त कबि -
जरूर खौन्लु मि
कुछ खट्टी कुछ मिट्ठी
अर यनि बि ह्वे जालो
मि नी बि खै सकुल त
क्वी क्वी त जरूर चाखला।
खाला।
सैंति पाळि कि नेळि - गोडि कि पाणि डाळि कि
बानि -बानि कि डाळि -बोटि
खट्टा -मिट्ठा लिम्बा सन्तरा
कागजी अमरुद
सुखी बि त दुखि बि
कन नि
अपड़ा मूळा -आफी घूळा
इन कतै ना
आफु क्वी ना , औरूं कू बि
बगतै कि मजबूरी अर
भागै भताङ्ग से -
अब मि उख नी बि छौं त क्या ?
मेरा गौं का खाला
मेरा मुल्का का खाला
दुखि -सुखि , बाटा का बट्वै खाला
औंदा -जांदा , क्वी न क्वी
गूणी -बांदर , दाना सयाणा
मेरी डाळि -बोटि एक आस।
(उड़ घुघुती उड़ , पृष्ठ 133 )
Copyright@ Bhishma Kukreti, 2017
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